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खतरा: बारिश में और देरी हुई तो पूरे साल रोना पड़ेगा

बारिश का इंतजार और मानसून की दगाबाजी हर साल की तरह इस बार भी जारी है। जुलाई में भी बारिश का इंतजार ही हो रहा है। इस बार पूरे भारत में सालाना औसत (163.5 मिली मीटर) से 29 प्रतिशत कम बारिश हुई है। 
जून के अंत में देश में सिर्फ एक मेट्रोलॉजिकल सब-डिवीजन में ही बरसात औसत से ज्यादा हुई है जबकि जून 2011 में 16 डिवीजन में बरसात ने यह औसत पार किया था। इस बार आठ डिवीजन में बरसात सामान्य हुई है जबकि पिछले साल दस डिवीजन में ऐसा हुआ था। 
बरसात की कमी का असर देश के 86 प्रतिशत हिस्से पर है। 27 मेट्रोलॉजिकल डिवीजन में औसत से बेहद कम बारिश जून माह में दर्ज की गई। इस कमी को दूर करने के लिए मानसून को पूरे देश में बरसना होगा लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। ऐस भी हो सकता है कि मानसून को अपनी रफ्तार पकड़ने में 15 जुलाई तक का वक्त लग जाए। 
बारिश की कमी का असर खेती पर दिखना शुरु हो गया है। धान की बुआई पर मानसून की बेरहमी की बुरी मार पड़ी है। पिछले साल इस वक्त तक देश में 41.5 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान रौप दिया गया था लेकिन इस बार अभी तक मात्र 30.72 लाख हेक्टेयर पर ही धान की बुआई हुई है। पिछले साल जून के अंत तक 22.05 लाख हेक्टेयर में मोटा अनाज बोया गया था जो कि इस बार मात्र 10.42 लाख हेक्टेयर ही है। वहीं दालों और तिलहन की बुआई में भी पिछले साल के मुकाबले भारी कमी आई है। 
बुआई आने वाले एक-दो हफ्तों में अपने शिखर पर होगी और इस दौरान बारिश बेहद महत्वपूर्ण हो जायेगी। अभी तक रूठा मानसून अगर दो हफ्ते और बेरहम रहा तोखेती पर बुरा असर पड़ेगा। 
चिंता की सबसे बड़ी बात जून माह में हुई कम बारिश है। जून में बारिश की कमी से आने वाले वक्त में भी मानसून के रूठे रहने के आसार नजर आ रहे हैं। इस बार जून में 115.5 मिली मीटर बारिश हुई है जो कि साल 2009 को छोड़कर सबसे कम है। 2009 में बारिश मात्र 85.1 मिली मीटर रही थी। 
भारतवर्ष में बरसात के वितरण के आंकड़े भी निराशाजनक है। पूर्व और पूर्वोत्तर जोन को छोड़ककर, जहां बरसात का औसत सालाना औसत के नजदीक रहा है, देश भर के अन्य तीन मेट्रोलॉजिकल क्षेत्रों में बरसात के औसत में भारी कमी आई है। पश्चिम- उत्तर में इस बार जून में बारिश सामान्य से 69 प्रतिशत कम, मध्य भारत में 39 प्रतिशत कम और दक्षिण भारत में 29 प्रतिशत कम रही है। 
हालांकि सबसे ज्यादा बारिश का वक्त अभी आगे हैं और मानसून अगले पखवाड़े में कैसा बर्ताव करता है यह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होगा। इस दौरान बारिश खरीफ की फसल की बुआई और उगाई के लिए बेहद जरूरी होती है। मौसम विभाग ने जुलाई में सामान्य से 98 प्रतिशत और अगस्त में सामान्य से 96 प्रतिशत बारिश होने का अनुमान जताया है। यदि मौसम विभाग का अनुमान सही साबित होता है तो देश को राहत मिल सकती है। 
हालांकि ध्यान देने वाली बात यह भी है कि पश्चिमोत्तर में जून में बारिश में 69 प्रतिशत की कमी रही है। इस क्षेत्र के लिए जून में बारिश का दीर्घावधि औसत सिर्फ 69.4 मिली मीटर है इसलिए इस क्षेत्र में मानसून की चिंता से दूर नहीं रहा जा सकता। हालांकि अन्य चार मेट्रोलॉजिकल जोन में भी बारिश संतोषजनक नहीं रही। पूर्व और पूर्वोत्तर जोन की सात डिवीजन में से तीन में इस बार बारिश सामान्य से कम रही है। जबकि पश्चिमोत्तर में सभी 9 डिवीजन में बारिश सामान्य से बेहद कम रही है जबकि दक्षिण में दस में से 6 डिवीजन में बारिश का औसत सामान्य से कम रहा है।