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खरे उतरे जलवायु वैज्ञानिकों के निष्कर्ष

इंग्लैंड के ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय की जलवायु परिवर्तन शोध इकाई के निष्कर्षों की स्वतंत्र समीक्षा करने वाली समिति का कहना है कि जलवायु वैज्ञानिकों ने पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ काम किया है। समीक्षा समिति का कहना है कि “वैज्ञानिकों के निष्कर्षों में कोई त्रुटि नहीं है लेकिन उन्होंने अपने काम की पूरी जानकारी देने में कोताही बरती है और निष्कर्षों का बचाव करने की कोशिश की है।”

कोपनहेगन के जलवायु शिखर संमेलन से पहले पिछले साल इस जलवायु परिवर्तन शोध इकाई की कंप्यूटर प्रणाली में सेंध लगाकर किसी ने पिछले तेरह सालों के लगभग एक हज़ार इमेलों को इंटरनेट पर प्रकाशित कर दिया था। जलवायु परिवर्तन की वैज्ञानिकता पर भरोसा न करने वालों के अनुसार ये इमेल सिद्ध करते हैं कि इस इकाई मे काम करने वाले जलवायु वैज्ञानिक तापमान में बढ़ोतरी न दिखाने वाले आँकड़ों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे थे या दबा रहे थे। ताकि जलवायु परिवर्तन की दलील कमज़ोर न पड़े।

विरोधियों का यह भी कहना है कि जलवायु परिवर्तन शोध इकाई के वैज्ञानिक अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए जलवायु परिवर्तन के आँकड़ों की ख़ामियों को छिपा रहे थे और उन पर गंभीर सवाल खड़े करने वाले शोधपत्रों को शोधपत्रिकाओं में प्रकाशित नहीं होने दे रहे थे ताकि उन पर वैज्ञानिकों की नज़र ही न पड़ सके। कुछ का मानना है कि इन इमेलों से आईपीसीसी के जलवायु परिवर्तन संबंधी निष्कर्षों पर सवाल खड़े होते हैं।

इन आरोपों से ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय की जलवायु परिवर्तन शोध इकाई ही नहीं वरन समूचे जलवायु परिवर्तन विज्ञान की साख गिर गई थी और कोपनहेगन में जलवायु संधि नहीं हो सकी थी। आलोचना से घबरा कर ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय ने नागरिक सेवा के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी सर म्योर रसल की अध्यक्षता में ‘क्लाइमेटगेट’ नाम से कुख्यात हुए इस पूरे मामले की स्वतंत्र छानबीन के लिए एक समीक्षा समिति बैठाई थी जिसने महीनों तक लीक हुए इमेलों और जलवायु परिवर्तन का समर्थन और विरोध करने वाले सैंकड़ों वैज्ञानिकों के बयानों की समीक्षा करने के बाद अपने निष्कर्ष दिए हैं।

जलवायु परिवर्तन के समर्थक इस समीक्षा के निष्कर्षों को जलवायु वैज्ञानिकों की जीत के रूप में देख रहे हैं जबकि आलोचक इन्हें लोगों के जलवायु विज्ञान से उठते भरोसे के रूप में देख रहे हैं। ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय की जलवायु परिवर्तन शोध इकाई की जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में पूरी दुनिया मे धाक रही है। इसीलिए जलवायु परिवर्तन का वैज्ञानिक आकलन करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था आईपीसीसी ने इस इकाई द्वारा तैयार किए गए जलवायु परिवर्तन के आँकड़ों को अपनी रिपोर्टों का आधार बनाया था।

जलवायु परिवर्तन शोध इकाई के इमेल लीक होने से उपजे क्लाइमेटगेट विवाद की इससे पहले दो समीक्षाएँ और चुकी हैं। मार्च के अंत में ब्रितानी संसद की विज्ञान व तकनोलोजी समिति ने शोध इकाई को अपने काम में और खुलापन और पारदर्शिता लाने और सूचना अधिकार कानून का पूरी तरह आदर करने का सुझाव दिया था। इसी तरह अप्रेल में हुई एक अन्य समीक्षा में शोध इकाई को वैज्ञानिक आँकड़ों को लेकर बेहतर तालमेल रखने की सलाह दी थी। लेकिन किसी भी समीक्षा में किसी किसी तरह की बेईमानी का कोई सबूत नहीं मिला है।

ईस्ल एंग्लिया विश्वविद्यालय की जलवायु परिवर्तन शोध इकाई की समीक्षा से पहले इसी सप्ताह संयुक्त राष्ट्र की संस्था आईपीसीसी के जलवायु परिवर्तन के आकलन की पहली बड़ी और स्वतंत्र समीक्षा के निष्कर्ष भी प्रकाशित हुए हैं जिनमें कहा गया है कि “आईपीसीसी के जलवायु परिवर्तन के आकलन में ऐसी कोई त्रुटियाँ नहीं मिली हैं जिनसे आकलन के मुख्य निष्कर्षों पर कोई फ़र्क पड़ता हो।”

आपको याद होगा हिमालय के कई हिमनदों के 2035 तक पूरी तरह सूख जाने की प्रबल संभावना और उत्तरी अफ़्रीका में बारानी खेती की उपज 2020 तक घट कर आधी रह जाने जैसी भविष्यवाणियाँ करने के कारण आईपीसीसी के चौथे जलवायु परिवर्तन आकलन की विश्वव्यापी आलोचना हुई थी। आईपीसीसी के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र पचौरी से इस्तीफ़ा देने की माँगें की गई थीं और संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने मार्च में आईपीसीसी की रिपोर्टों में पाई गई भूलों की स्वंतत्र एवं वैज्ञानिक समीक्षा कराने का ऐलान किया था।

इस समीक्षा की रिपोर्ट तो अभी आनी है लेकिन हॉलैंड की सरकारी पर्यावरण एजेंसी के वैज्ञानिकों के दल ने अपनी समीक्षा की रिपोर्ट दे दी है। आईपीसीसी के जलवायु परिवर्तन आकलन में पाई गई भूलों से चिंतित होकर हॉलैंड की सरकार ने अपनी पर्यावरण एजेंसी के वैज्ञानिकों को स्वतंत्र रूप से आईपीसीसी के आकलन की समीक्षा पर लगाया था।

हॉलैंड के पर्यावरण वैज्ञानिकों को आईपीसीसी के जलवायु परिवर्तन आकलन की लगभग एक हज़ार पन्नों की रिपोर्ट में केवल बारह त्रुटियाँ मिली हैं जिनमें हिमालय के हिमखंडों के सूखने और उत्तरी अफ़्रीका में बारानी खेती की उपज आधी होने वाली भविष्यवाणियाँ शामिल हैं। आईपीसीसी इन भूलों के लिए पहले ही माफ़ी माँग चुकी है।


हॉलैंड के वैज्ञानिकों ने आईपीसीसी की रिपोर्ट के लगभग एक लाख कथनों में से 23 की स्पष्टता पर भी सवाल उठाए हैं। लेकिन कुल मिला कर हॉलैंड के वैज्ञानिकों को कोई ऐसी वैज्ञानिक त्रुटि नहीं मिली है जिसकी वजह से आईपीसीसी के जलवायु परिवर्तन आकलन के निष्कर्ष प्रभावित होते हों। आईपीसीसी ने हॉलैंड के पर्यावरण वैज्ञानिकों की समीक्षा की रिपोर्ट का स्वागत किया है