Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/खस्ताहाल-स्कूली-शिक्षा-से-संकट-में-छात्रों-का-भविष्य-7156.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | खस्ताहाल स्कूली शिक्षा से संकट में छात्रों का भविष्य | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

खस्ताहाल स्कूली शिक्षा से संकट में छात्रों का भविष्य

इंदौर के पास स्थित देपालपुर में स्कूली शिक्षा के नाम पर सरकारी खानापूर्ति सामने आई है। इस विकासखंड में ऐसे कई स्कूल हैं, जो एक ही शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। यह खबर एक तरह से पूरे देश की निराशाजनक तस्वीर पेश करती है।

12 लाख शिक्षकों की कमी है देशभर में

50 प्रतिशत स्कूलों साफ पीने की सुविधा नहीं

60 प्रतिशत स्कूलों में टॉयलेट बहुत ही खराब स्थिति में

30 प्रतिशत स्कूलों में न तो बैठने की व्यवस्था है और न ही ब्लैकबोर्ड


गिरोता गांव में खुला शासकीय हायर सेकंडरी स्कूल शिक्षा के प्रति सरकार की गंभीरता की पोल खोल देता है। यहां हायर सेकंडरी स्कूल तो खोल दिया गया, लेकिन प्रशासन स्टाफ भेजना भूल गया। स्कूल एक ही शिक्षक के भरोसे चल रहा है। वे भी इसी माह रिटायर होने वाले हैं।

मध्यप्रदेश ही नहीं देश के अधिकांश राज्यों में हालात जुदां नहीं हैं। कहीं स्कूल है तो शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है। कहीं शिक्षक आते हैं, पर स्कूल भवन नहीं है। केंद्र सरकार के साथ ही तमाम राज्य सरकारें हर साल अभियान चलती हैं, करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन देश में शिक्षा का स्तर नहीं सुधर पा रहा है।

सन् 2013 में पेश योजना आयोग की रिपोर्ट सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता की गंभीर तस्वीर पेश की गई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2006 में निजी स्कूलों में प्रवेश लेने वाले छात्रों का आंकड़ा 18.7 फीसद था, जो 2013 में बढ़कर 29 फीसद हो गया।

मणिपुर और केरल जैसे कुछ राज्यों में लगभग 70 प्रतिशत छात्र निजी स्कूलों में हैं। उत्तर प्रदेश में भी इसका अनुपात लगभग 50 प्रतिशत है। ऐसे राज्य जहां सरकारी स्कूलों में नामांकन ज्यादा है, वहां छात्रों को प्राइवेट ट्यूशन पर निर्भर रहना होता है। जैसे कि बिहार व ओडीशा में केवल 8.4 प्रतिशत और 7.3 प्रतिशत छात्र निजी स्कूलों में है और क्रमश: 52.2 प्रतिशत और 51.2 प्रतिशत छात्र प्राइवेट ट्यूशन ले रहे हैं।

अव्यवस्था की वजह

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ ही उत्तरप्रदेश, राजस्थान, और बिहार उन राज्यों में शामिल हैं, जहां स्कूली शिक्षा की हालत बहुत खराब है। हर जगह समस्या एक सी है। कहीं भवन नहीं है तो कहीं शिक्षक। जहां शिक्षकों की नियुक्ति है, वहां यह देखने वाला कोई नहीं है कि वे कब आ रहे हैं और कितना पढ़ा रहे हैं। बच्चों के लिए पीने का पानी नहीं हैं। शौचालयों का बंदोबस्त नहीं है। मिड डे मील के नाम पर भ्रष्ट मजे लूट रहे हैं।

स्कूलों में शिक्षकों के पढ़ाने और छात्रों के सीखने का स्तर बहुत नीचे है। बच्चों के लिए मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के तहत सभी स्कूलों में 6 से 14 वर्ष के बच्चों को समीपवर्ती स्कूलों में दाखिला दिया जाना आवश्यक है, लेकिन इसका पालन गंभीरता के किसी राज्य में नहीं होता। केंद्र सरकार सर्व शिक्षा अभियान के तहत हर राज्य को कई सौ करोड़ रुपएदेती है, लेकिन राज्य सरकारें उक्त फंड का सही इस्तेमाल नहीं करती हैं।

दूसरी की किताब नहीं पढ़ सकते पांचवीं के छात्र

एनुअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन (असर) रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार 6 से 14 साल आयुवर्ग के बच्चों की शिक्षा का स्तर सुधारने में असफल रही है।

गैर सरकार संगठन प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की रिपोर्ट्स के अनुसार, पढ़ने, लिखने और गणित की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं देखा गया। यूपीए सरकार के शासन के नौ साल में इसकी स्थिति और बदतर हो गई।

कक्षा दूसरी के स्तर की किताबें पढ़ सकने वाले कक्षा पांचवीं के सभी बच्चों के अनुपात में 2005 के बाद 15 प्रतिशत की गिरावट आई है।

इसी तरह कक्षा आठवीं के छात्रों के अनुपात में भी इसी अवधि के दौरान लगभग 23 प्रतिशत की गिरावट आई।

स्कूलों में नामांकन का स्तर 2005 के 93 प्रतिशत की तुलना में अब 97 प्रतिशत हो गया है।

जब 2005 में गांवों में निजी स्कूलों में दाखिले का आंकड़ा 17 फीसद था, जो 2013 में बढ़कर 29 फीसद हो गया।

भारत के 550 ग्रामीण जिलों में हुए सर्वे में पाया गया कि शिक्षा के अधिकर ने भी शिक्षा के परिणाम के सुधार में मदद नहीं की। यह कानून गुणवत्ता की कीमत पर दाखिलों की संख्या बढ़ाने पर ध्यान केंद्रीत कर रहा है।

यूं बदल सकती है तस्वीर

सरपंच ने अपने खर्च पर नियुक्त किए शिक्षक - शिक्षकों की कमी का रोना हर जगह रोया जाता है। ऐसे में यूपी के सिद्धार्थनगर के एक गांव की सरपंच प्रेमावती का प्रयास मिसाल है। सरकारी शिक्षा को पटरी पर लाने में नाकाम महकमा को सबब सिखाते हुए उन्होंने प्राइवेट व्यवस्था के अनुरूप शिक्षा की डोलती नाव को सहारा दिया है।

ग्राम शादीजोत में प्राथमिक विद्यालय में सात महीने से कोई अध्यापक नहीं था। गांव के 242 बच्चों की शिक्षा पर ग्रहण लगता नजर आया, जिसे देख सरपंच आगे आईं और अपने स्तर से दो प्राइवेट अध्यापक नियुक्त कर दिए।

बच्चे नहीं गए स्कूल तो सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं - जिस परिवार के बच्चे स्कूल नहीं जाएंगे उस परिवार को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा। यूपी में कुशीनगर जिले में बच्चों को स्कूल तक ले जाने के लिए यहां के डीएम लोकेश एम ने यह अनूठी पहल की है।

साफ निर्देश जारी कर दिया है कि जो अभिभावक अपने मासूम बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे उनको मिलने वाली कल्याणकारी योजनाओं पर रोक लगा दी जाएगी। इसके लिए बैठक कर अधिकारियों को बाकायदा सख्त निर्देश भी जारी कर दिया है। ऐसे में अब अभिभावक खुद बच्चों के नामांकन को लेकर आगे आने लगे हैं।