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खाकी वर्दी पर लग रहे दाग कौन धोएगा- सुभाषिनी सहगल अली

उत्तर प्रदेश में महिला उत्पीड़न की इतनी घटनाएं घट रही हैं कि अगर कोई छोटी-सी आशा की किरण उजागर होती है, तो उसे देखने और दिखाने की कोशिश की जानी चाहिए। न्याय की पथरीली राह में ये छोटी उपलब्धियां मील के पत्थर का काम करती हैं।

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के मामले अनगिनत हैं, पर विरोध की हिम्मत कम ही महिलाएं जुटा पाती हैं। उत्पीड़न करने वाले हर तरह से शक्तिशाली होते हैं। वे या तो अधिकारी होते हैं या पैसे अथवा संपर्क से प्रभावशाली। या अपराध जगत से उनका संबंध होता है। नेताओं, पुलिस अधिकारियों, बड़े प्रशासनिक अधिकारियों से लड़ना तो असंभव ही मालूम पड़ता है। पुलिस विभाग के बारे में अक्सर खबरें छपती हैं कि उच्चाधिकारी से लेकर सिपाही तक महिला अधिकारियों, कर्मचारियों, सिपाहियों इत्यादि का शोषण करते हैं। पर इन मामलों को सार्वजनिक करने की हिम्मत जुटा पाना पीड़ित महिलाओं के बस के बाहर होता है।

ऐसे में शायद पहली बार पुलिस विभाग की किसी महिला ने किसी अधिकारी के खिलाफ मामला उठाने की हिम्मत की है। मेरठ में उत्तर प्रदेश पुलिस का ट्रेनिंग स्कूल है, पीटीएस। वहां सब इंस्पेक्टर अरुणा राय हॉस्टल की वार्डन और साइबर क्राइम की शिक्षिका का काम करती हैं। पीटीएस के निरीक्षक डीआईजी डी पी श्रीवास्तव थे। विगत 14 अप्रैल को उन्होंने अपने दफ्तर में अरुणा को बुलाकर उससे आपत्तिजनक व्यवहार किया। अरुणा ने उसी वक्त उन्हें टोका। इसके बाद वह अरुणा से फोन पर बात करने की कोशिश करने लगे। इन बातों की शिकायत अरुणा ने अपने वरिष्ठ अधिकारी से की।

इसके बाद, उससे समझौता करने का प्रयास डीआईजी की तरफ से होने लगा। उसे धमकियां भी मिलने लगीं। उसके पानी का कनेक्शन काट दिया गया और उसकी छुट्टी की अर्जी भी ठुकरा दी गई। अपने पति का समर्थन मिलने के बाद अरुणा ने डीआईजी के खिलाफ कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून के अंतर्गत लिखित शिकायत कर दी।
डीआईजी की गिरफ्तारी हुई और उनका निलंबन भी हो गया। कुछ माह बाद उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया, पर विभागीय जांच चलती रही। दो अगस्त को जांच कमेटी ने, जिसकी अध्यक्ष एडीजी सुतपा सान्याल थीं, डीआईजी को दोषी पाया। अब उनके खिलाफ सरकार को कार्रवाई करनी है। लेकिन आश्चर्य यह कि जांच समिति की रिपोर्ट आने के बाद डीआईजी का निलंबन वापस ले लिया गया!

यह तय है कि अरुणा के साहसी कदम के बाद पुलिस विभाग में तमाम पीड़ित महिलाएं अपने साथ हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठाने लगेंगी। यह प्रसंग इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अभी तक यही समझा गया था कि अपराधी पुलिसवालों तक कानून के हाथ नहीं पहुंच सकते। जिन पर समाज की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, अगर वही अपने मातहत महिलाओं का उत्पीड़न करेंगे, तो समाज की शोषित महिलाओं को कौन बचाएगा? इसलिए इस मामले में दोषी पाए गए पुलिस अधिकारी के खिलाफ मामूली अपराधियों से ज्यादा सख्ती किए जाने की जरूरत है। नौकरी के बाहर तो उन्हें किया ही जाना चाहिए, कठोर दंड भी देना चाहिए।