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खाद्य सुरक्षा के दबाव में कार्बन उत्सर्जन घटाना चुनौती

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। देश की खाद्य सुरक्षा के दबाव में भारत का कृषि क्षेत्र कार्बन उत्सर्जन घटाने की हालत में नहीं है। सबके लिए भोजन मुहैया कराना फिलहाल प्राथमिकता है। हालांकि उत्सर्जन को कम करने के लिए जैविक खेती और भूमि प्रबंधन, जल संरक्षण व नाइट्रोजन का उपयोग कम करने की जरूरत है। पशुओं के बगैर जैविक खेती संभव नहीं है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचने के लिए परंपरागत देसी प्रजातियों को प्रोत्साहित करने की सख्त जरूरत है।

भारत में होने वाले कार्बन उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 17.6 फीसद है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के महानिदेशक डॉ. एस अयप्पन के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र की कुल हिस्सेदारी में सबसे बड़ा हिस्सा पशुओं का है। पशुओं से करीब 56 फीसद उत्सर्जन होता है। धान की खेती से 18 और अन्य 23 फीसद उत्सर्जन मिट्टी प्रबंधन से होता है। इस पर काबू पाने के उपाय किए जा रहे हैं। मगर भारी आबादी के लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराना अपने आप में बड़ी चुनौती है।

सबको भोजन देने की सरकार की योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बन चुका है। इसके तहत देश की 67 फीसद आबादी को अति रियायती दर में अनाज उपलब्ध कराया जाना है। इसके लिए 6.10 करोड़ टन से अधिक खाद्यान्न की जरूरत हर साल पड़ेगी। दूसरी बड़ी चुनौती भारत की असिंचित खेती की है, जो पूरी तरह मानसून पर निर्भर है। लगातार पिछले चार सीजन से खेती सूखे प्रभावित है। मानसून के इस रूखे व्यवहार को जलवायु परिवर्तन से ही जोड़कर देखा जा रहा है।

बुवाई रकबा, पैदावार और उत्पादकता घटी है। मौसम से पैदा होने वाले इस जोखिम से निपटना आसान नहीं है। जलवायु परिवर्तन जैसी मुश्किलों से निपटने के लिए ही कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए जैविक खेती पर जोर दिया जा रहा है। खेती की इस विधा से कार्बन उत्सर्जन घटता है।

जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाले नुकसान को रोकने के लिए परंपरागत बीज और पशुओं की देसी प्रजातियां कारगर साबित होती है। देसी नस्ल के पशुओं से ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम होता है। जलवायु परिवर्तन से बढ़ने वाली गरमी को सहने की क्षमता इन प्रजातियों में होती है।

नाइट्रोजन खाद के बेतहाशा प्रयोग से भी कार्बन उत्सर्जन अधिक होता है। इसके प्रयोग की विधि पर ध्यान देने की जरूरत है। ग्रीन हाउस गैसों में मीथेन की हिस्सेदारी 14 फीसद है, जिसका सर्वाधिक उत्सर्जन पशुओं और धान की खेती से होता है। उचित तौर तरीके अपनाकर इसका उत्सर्जन कम किया जा सकता है। पशुओं के बगैर जैविक खेती की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

खेत में प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन को बढ़ाना, ज्यादा नाइट्रोजन के प्रयोग से बचना, जुताई व फसल अवशेषों का प्रबंधन और कम जुताई से इसे नियमित किया जा सकता है। पशु प्रबंधन, चरागाह व चारे की उपलब्धता होनी चाहिए।

मिट्टी प्रबंधन में उर्वरता बढ़ाने के लिए पोषक तत्वों का उपयोग, देशी व जैविक खादों का प्रयोग, मृदा संरक्षण तकनीक से मिट्टी से कार्बन व खनिज लवण को कम करना, फसल अवशेषों का उचित उपयोग व जल संरक्षण से कार्बन उत्सर्जन पर काबू पाया जा सकता है।