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खाद्य सुरक्षा मुद्दे पर भारत अपने रुख पर अडिग

नई दिल्ली। खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर भारत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में अपना रुख नरम करने के मूड में नहीं है। अपनी इस राय से सरकार ने अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी के नेतृत्व में भारत के दौरे पर आए प्रतिनिधिमंडल को भी अवगत करा दिया है। फिलहाल, अमेरिका ने इस मुद्दे पर बीच का रास्ता निकलने की संभावना भी जताई।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और जॉन केरी के बीच हुई बातचीत में डब्ल्यूटीओ के बाली वार्ता में तय हुए व्यापार समझौते को लेकर भी चर्चा हुई। भारत तब तक इस समझौते पर हस्ताक्षर करने को तैयार नहीं है जब तक विकासशील देशों को खाद्यान्न पर सब्सिडी को लेकर छूट मिले और इस मसले पर स्थायी समाधान निकालने का रास्ता साफ हो।

जॉन केरी के साथ हुई द्विपक्षीय वार्ता में विदेश मंत्री ने केवल इतना ही कहा कि जेनेवा में इस मामले में बातचीत जारी है। उसके नतीजों की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अलबत्ता केरी ने कहा कि अमेरिका भारत की चिंताओं को खारिज नहीं करता। उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है इस मामले में कोई बीच का रास्ता निकल आएगा।

इस क्रम में जॉन केरी ने वित्त मंत्री अरुण जेटली से भी मुलाकात की। दोनों के बीच द्विपक्षीय व्यापार के साथ डब्ल्यूटीओ से जुड़े मुद्दों पर भी बातचीत हुई। बाद में अमेरिकी वाणिज्य मंत्री पेनी प्रिट्जकर और वाणिज्य राज्य मंत्री निर्मला सीतारमण की मुलाकात में भी इस पर चर्चा हुई। बैठक के बाद सीतारमण ने द्विपक्षीय बातचीत को अच्छा बताया और कहा कि दोनों देश कई मामलों में आगे बढ़े हैं।

वैसे, व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने के मामले में भारत ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है कि खाद्य सुरक्षा और सब्सिडी के मुद्दे पर स्थायी समाधान के ठोस आश्वासन के बाद ही बात आगे बढ़ सकती है। इस मामले में भारत ने गतिरोध समाप्त करने के उद्देश्य से जेनेवा में कुछ नए प्रस्ताव भी भेजे हैं। लेकिन, इन प्रस्तावों में भारत के मूल रुख में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

भारत इस समझौते में कुछ और भी संशोधन चाहता है। मसलन, खाद्य सब्सिडी के लिए आधार वर्ष (1986-88) तय करना। भारत महंगाई, मुद्रा की कीमत में बदलाव को ध्यान में रखते हुए सब्सिडी का स्तर तय करने के लिए दबाव बना रहा है।

रूस के खिलाफ प्रतिबंधों में भारत साथ नहीं

भारत ने रूस के खिलाफ अमेरिका समेत पश्चिमी मुल्कों की लामबंदी में शामिल होने से इन्कार कर दिया है। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी के साथ रणनीतिक वार्ता के बाद साझा प्रेस वार्ता में सुषमा स्वराज ने कहा कि विदेश नीति एक होती है। वह बार-बार बदलती नहीं।

दरअसल, उनसे पूछे गया था कि क्या मलेशियाई विमान को मिसाइल हमला कर गिराने की घटना के बाद रूस के खिलाफ सख्त होते प्रतिबंधों में भारत भी साथ आएगा? वहीं, केरी का कहना था कि अगर भारत साथ आता है तो अच्छा ही होगा। हालांकि, उन्होंने इस मसले पर रुख तय करने का फैसला भारत पर ही छोड़ने की बात कही।

यूक्रेन-रूस के बीच कई महीने से जारी सीमा-विवाद के बाद यूरोपीय संघ और अमेरिका ने रूस के खिलाफ कई प्रतिबंध लगाए हैं। बीते दिनों मलेशियाई यात्री विमान को यूक्रेन में रूस समर्थित विद्रोहियों द्वारा मार गिराने के बाद से प्रतिबंधों को अधिक कड़ा कर दिया गया है।

भारत यूक्रेन-रूस विवाद पर ज्यादा प्रतिक्रिया देने से बचता रहा है। रूस के साथ करीबी रणनीतिक साझेदारी और व्यापक सैन्य सहयोग के मद्देनजर भारतीय खेमा इसमें अपने हाथ नहीं जलाना चाहता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में रूस को भारत का हर-मौसम दोस्त बताते हुए नजदीकी सहयोग की बात कह चुके हैं।

इजरायल-फलस्तीन विवाद को लेकर भारत और अमेरिका ने दोनों मुल्कों में बढ़ी हिंसा के बीच सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। स्वराज ने दोहराया कि भारत फलस्तीन का समर्थन करने के साथ ही इजरायल के साथ दोस्ताना रिश्तों की अपनी नीति पर कायम है।

वीजा पर भी दो टूक बात

भारत ने वीजा मामले में भी दो टूक कह दिया कि इमिग्रेशन कानून का उसके मौजूदा स्वरूप में पारित होना भारतीय हितों के खिलाफ होगा। सुषमा स्वराज ने स्पष्ट कहा कि जब भारत अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बना रहा है, उस वक्त अमेरिका से इस तरह के कानून की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

विदेश मंत्री स्तर की बातचीत में सुषमा ने इस मुद्दे को उठाकर इस मामले में भारत की नाराजगी को साफ कर दिया। वैसे, केरी ने कहा कि अमेरिका के लिए भी यह कानून महत्वपूर्ण है। फिलहाल, इस कानून के पारित होने की संभावना नहीं है। तीन महीने के भीतर अमेरिका में कांग्रेस के चुनाव होने हैं।

उसके बाद ही इस बिल को कांग्रेस में पेश किया जा सकेगा। यदि यह इसी स्वरूप में पारित होता है तो भारतीय आइटी उद्योग को इससे भारी धक्का पहुंचेगा।