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खाने-पीने की चीजों की महंगाई कम करने में विफल रही सरकार

नई दिल्ली। आलू और टमाटर जैसी सब्जियों के साथ-साथ खाने-पीने की लगभग तमाम चीजों के दाम बढ़ने का सिलसिला जारी है। इनकी कीमतें कम करने के लिए निर्यात पर अंकुश लगाने और जमाखोरी पर लागम कसने जैसे उपाय किए गए, लेकिन अब तक उनका असर नहीं नजर आया।

जून की शुरुआत से लेकर अब तक टामाटर के भाव चार गुना से ज्यादा बढ़ गए। आलू की कीमत भी डेढ़ गुनी से ज्यादा हो गई। इन सब्जियों से तैयार होने वाले व्यंजन लग्जरी आइटम हो गए हैं, यानी आम आदमी की थाली से बाहर।

करीब 4,000 रुपए पगार पाने वाली 29 वर्षीय घरेलू नौकरानी निर्मला की प्रतिक्रिया कुछ यूं रही, 'टमाटर खरीदना गहने खरीदने जैसा हो गया है।' इस महिला की तकलीफ समझी जा सकती है क्योंकि इन दिनों टमाटर के साथ-साथ आलू और प्याज के भाव में भी बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है और कम आय वाले लोगों की थाली इन्हीं सब्जियों पर निर्भर होती है।

निर्मला ने कहा, 'पिछले साल प्याज के दाम आसमान पर थे। इस साल टमाटर खरीदना क्षमता से बाहर है, अगले साल कोई और चीज थाली में नहीं होगी। कुल मिलाकर हर साल की कहानी एक जैसी रहती है।'

उम्मीदों पर फिरा पानी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई में लोकसभा चुनाव के दौरान जनता को भरोसा दिलाया था कि वे खाने-पीने की चीजों के बढ़ती कीमतों का सिलसिला रोकेंगे। इसके लिए फौरन प्रभावी उपाय किए जाएंगे। लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। आर्थिक तरक्की के मामले में गुजरात में शानदार उपलब्धि हासिल करने वाले मोदी केंद्र की सत्ता संभालने के बाद महंगाई कम करने के उन्हीं उपायों का सहारा लेते नजर आ रहे हैं, जिनकी मदद पिछली सरकार लिया करती थी।

समस्या की जड़ में बिचौलिए

दरअसल, खाने-पीने की चीजों के बाजार पर एक हद तक बिचौलियों का कब्जा है। पिछली सरकार यह समस्या ठीक नहीं कर पाई थी और नई सरकार भी इस परेशानी की जड़ में जाने के बजाय फौरी उपायों का सहारा लेती नजर आ रही है। दूसरी तरफ कोल्ड सप्लाई चेन दुरुस्त करने के लिए जितनी रकम खर्च करने की जरूरत बताई गई थी, अब तक उसके 10वें हिस्से से भी कम खर्च किया जा सका है।

खाद्य मूल्य स्थिरीकरण कोष

यह नई अवधारणा है, जो प्रभावी साबित हो सकती है लेकिन इसके लिए बड़ी रकम की जरूरत होगी। लेकिन सरकार ने महज 500 करोड़ रुपए का इंतजाम किया है। 1.2 अरब डॉलर की आबादी वाले देश में इस कदर छोटी रकम की बदौलत कीमतों में स्थिरता लाना संभव नहीं है।

नजरिए पर सवाल

दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के वरिष्ठ फेलो राजीव कुमार ने कहा, 'मोदी ढांचागत सुधारों की जगह जिला कलेक्टर की भूमिका पर जोर देते हैं। यह सरकार नौकरशाहों की गिरफ्त में जाती नजर आ रही है, जबकि कीमतें कम करने का सबसे प्रभावी जरिया प्रतिस्पर्धा बढ़ाना है।'

64 फीसद बढ़े सब्जियों के भाव

जनवरी 2012 से लेकर अब तक सालाना आधार पर खुदरा कीमतों पर आधारित महंगाई बढ़ने की औसत दर करीब 9.5 प्रतिशत रही है। लेकिन, इसी दौरान सब्जियों के दाम 64 प्रतिशत तक बढ़े हैं।

महंगाई का एक ही हल

पिछली सरकार के एक सलाहकार अभिजीत सेन ने कहा कि खाद्य महंगाई कम करने का एक ही तरीका है। अधिक से अधिक कोल्ड स्टोर बनाना और खाने-पीने की चीजों की आवाजाही के शानदार इंतजाम करना।

रातोंरात नहीं सुधरते हालात

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी का कहना है कि यदि तत्काल उपाय नहीं किए जाते, तो कीमतें ज्यादा बढ़तीं। उन्होंने कहा, 'लंबी अवधि में इस समस्या से निटपने के तरीके हम जानते हैं, लेकिन उनकी बदौलत रातोंरात मुश्किलें हल नहीं हो जाएंगी।'