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खाप हत्याओं का जवाब बाल विवाह!

इज्जत के नाम पर युवाओं की हत्या की कीमत लड़कियों से वसूलने का सिलसिला शुरू हो गया है। हाल ही में कुछ अखबारों में प्रकाशित खबरों से पता चला है कि हरियाणा और पड़ोसी राज्यों में कच्ची उम्र में लड़कियों की शादी का सिलसिला चल पड़ा है। सगोत्र विवाह पर अंकुश लगाने के लिए लड़कियों की शादी जल्दी करने पर जोर दिया जा रहा है। खाप पंचायतों और आदिम समाज व्यवस्था के खौफ की कीमत बच्चियों को चुकानी पड़ रही है। लोगों को लग रहा है कि उच्च शिक्षा पाने के बाद लड़कियों के हाथ से निकल जाने की आशंका ज्यादा रहती है। यह भी सच है कि किसी लड़के को उसके परिवार के लोग प्रेम करने के लिए नहीं मारते। हां, कुछ मामलों में वे प्रेमिका के घर वालों का शिकार जरूर बनते रहे हैं।



बहरहाल, यहां मुद्दा बाल विवाह के मामलों में तेजी से हो रही वृद्धि का है। देश में बाल विवाह के खिलाफ कानून को लागू हुए 80 वर्ष से अधिक हो गए हैं। तमाम सरकारी कोशिशों के बावजूद हर साल अक्षय तृतीया (आखा तीज) के अवसर पर राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों के ग्रामीण इलाकों में खुलेआम बाल विवाह होते हैं। वैसे देश में करीब 50 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है। वह भी कानूनन बाल विवाह ही है। हाल ही में लांसेट पत्रिका ने भी इस बात की पुष्टि की है। पत्रिका ने 20 से 24 आयु वर्ग की 22,807 महिलाओं का अध्ययन कर पाया कि इनमें से 22.6 प्रतिशत महिलाओं की शादी 16 वर्ष से कम आयु में और 2.6 प्रतिशत महिलाओं की शादी 13 वर्ष से कम आयु में हो गई थी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट से यह तथ्य प्रकाश में आया है कि बाल विवाह का अनुपात ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा है।



रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 61, राजस्थान में 57, आंध्र प्रदेश में 55, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश व पश्चिम बंगाल तीनों में 53 और छत्तीसगढ़ में 42 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं। हमारे यहां बाल विवाह की बिजली लड़कियों पर ही ज्यादा गिरती है। ऐसी 66.9 प्रतिशत महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार पाया गया। कच्ची उम्र की शादीशुदा बच्चियों के सामने एक बड़ी समस्या घरेलू हिंसा की भी होती है।



बिहार और झारखंड में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार जिन लड़कियों की शादी 18 साल के बाद होती है, उन्हें घरेलू हिंसा का सामना अपेक्षाकृत कम करना पड़ता है। दुनिया भर में 15 से 19 साल के बीच की लड़कियों की मौत का सबसे बड़ा कारण गर्भावस्था होती है। प्रसव के दौरान 20 साल की लड़कियों की तुलना में 15 साल से छोटी बच्चियां पांच गुना अधिक मौत का शिकार हो जाती हैं। शारीरिक रूप से अपरिपक्व होने के कारण कच्ची उम्र की लड़कियां अनेक बीमारियों की शिकार हो जाती हैं। मानव तस्करी की शिकार महिलाओं पर 2002-03 में किए एक सर्वे से यह बात सामने आई थी कि महिलाओं और बच्चों की तस्करी की बहुत बड़ी वजह बाल विवाह है। ऐसी महिलाओं में से 71.8 प्रतिशत का विवाह बचपन में ही कर दिया गया था।



इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुके हमारे समाज के कुछ तबके आज लड़कियों की तकलीफ को कम करने के बजाय बढ़ाने पर अमादा हैं। उस पर तुरंत रोक लगाए जाने की जरूरत है। सरकार भले ही खाप के खिलाफ कानून ला रही है, लेकिन इस काम को कानूनों के बूते करना कठिन है। सामाजिक चेतना बढ़ाने के लिए कुछ गंभीर प्रयास करने होंगे।