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खुद बनायें गांवों की खुशहाली की योजना

पिछले महीने भारत सरकार ने पंचायतों के लिए निर्देश जारी किया है कि वे जनवरी और फरवरी महीने के दरम्यान अपने गांवों में आर्थिक कल्याण के मसले पर एक ग्राम सभा जरूर करें. इस निर्देश में जिक्र है कि इस मौके पर कृषि, पशुपालन, मनरेगा, आजीविका मिशन, बागवानी, मत्स्य पालन, बीआरजीएफ, जलछाजन, मृदा संरक्षण, सिंचाई, विद्युतीकरण, हथकरघा, हस्तशिल्प, खाद्य प्रसंसकरण, लघु एवं सूक्ष्म उद्यम आदि के अधिकारी ग्राम सभा में जरूर उपस्थित हों. जिला एवं प्रखंड प्रशासन को यह निर्देश भी जारी कराया गया है कि वे इस बात को सुनिश्चित करें कि ग्रामसभाएं इस तरह हों कि हर जगह संबंधित अधिकारी बारी-बारी से उपस्थित हो सकें.

पंचायतनामा डेस्क
हालांकि तकनीकी रूप से यह इतना जटिल मसला है कि इसे पूरा करना मुश्किल है. खास तौर पर एक-एक जिले में दो से तीन सौ पंचायतें हैं और हर पंचायत में सामान्यत: दो से चार गांव होते हैं. जिला या प्रखंड प्रशासन के पास इतने संबंधित अधिकारी कहां से आयेंगे कि वे 59 दिनों की अवधि में हजार से अधिक ग्राम सभाओं में हाजिर हो सकें. आम तौर पर हर प्रखंड में इन विभागों से संबंधित एक कर्मी होता है और एक प्रखंड में लगभग 50-60 ग्राम सभाएं होती हैं. इस लिहाज से हर अधिकारी को लगातार इन गांवों में घूमना पड़ेगा, अपने तमाम काम काज को छोड़कर. इसके बावजूद यह एक अच्छा अवसर है, इस अवसर का इस्तेमाल पंचायतें अपने क्षेत्र के विकास में सरकारी अधिकारियों की मदद लेने के लिए कर सकते हैं.

अगर सभी सजग मुखिया अपने पंचायत में एक ही ग्रामसभा करवा सकें तो उनके लिए यह मौका सुनहरा अवसर साबित हो सकता है. दरअसल एक तो इन ग्रामसभा में आर्थिक कल्याण से संबंधित सारे विभाग के अधिकारी मौजूद होकर गांव के लोगों को अपने-अपने विभाग द्वारा संचालित होने वाली योजनाओं की जानकारी और उन्हें हासिल करने के तरीकों के बारे में बतायेंगे और फिर वे आपकी योजनाओं और जरूरतों के बारे में जानकारी लेकर जायेंगे जिससे उन पर काम को पूरा करने का नैतिक दबाव भी रहेगा. इसलिए बेहतर होगा कि खुद जाकर अपने प्रखंड के सभी संबंधित अधिकारियों को इस निर्देश की जानकारी दें और उन्हें अपनी ग्रामसभा में आने का निमंत्रण देकर आयें.

मगर इस काम को खानापूर्ति की तरह नहीं करें. क्योंकि यह एक अवसर है जब आप अपने पंचायत के लोगों को स्वरोजगार से संबंधित योजनाओं से जोड़ सकते हैं. अत: ग्रामसभा में हाजिर होने से पहले कुछ होमवर्क करना काफी जरूरी है ताकि आप वहां कुछ ठोस बातें कर सकें, आप ठोस जानकारी देंगे और ठोस मांगे रखेंगे तो अधिकारियों को इसे स्वीकार करने में भी आसानी रहेगी.

संसाधनों का आकलन
सबसे पहले अपने पंचायत के संसाधनों का आकलन करें. कितनी जमीन पर खेती होती है, खेती के अलावा लोग क्या-क्या काम करते हैं, क्या पंचायत क्षेत्र में कोई उद्योग या व्यवसाय होता है, कोई हाट या मंडी है, वन क्षेत्र है, अगर हां तो कितना, कितने तालाब और कुएं हैं. इन बातों की जानकारी आपके पास होनी चाहिये. दूसरी बात पंचायत के कितने लोग रोजगार से जुड़ना चाहते हैं, उन लोगों में कितने लोग प्रशिक्षित हैं या कोई हुनर जानते हैं, कितने लोग किसी विधा का प्रशिक्षण लेना चाहते हैं, लोग मजदूरी करना चाहते हैं या व्यवसाय.

इस तरह की जानकारी होने के बाद आप आसानी से समझ सकेंगे कि आपको आपके पंचायत की आर्थिक उन्नति के लिए आखिर किस तरह के मदद की दरकार है. अपने पंचायत के मुखिया होने के कारण यह जानकारी तो आपके पास पहले से ही होनी चाहिये, अगर नहीं है तो इस मौके का इस्तेमाल करके ये जानकारियां जुटा लें. क्योंकि ये जानकारियां हमेशा आपके काम आने वाली हैं.

अपनी आय के साधन
आपको अपनी पंचायत का विकास के लिए अपनी आय के साधन भी जुटाने होंगे. इसके लिए आपको लघु खनिज और लघु वनोपज पर विशेष ध्यान देना होगा. पंचायती राज और पेसा एक्ट दोनों इन संसाधनों के प्रबंधन का अधिकार पंचायतों को देता है. ऐसे में बैठक में मौजूद अधिकारियों से आपको कहना होगा कि वे इन संसाधनों के प्रबंधन का अधिकार पंचायतों को दिलाने में मदद करें. इसके अलावा हाट-बाजार के संचालन का अधिकार तो है ही. इन अधिकारों के जरिये आप पंचायतों के लिए आर्थिक संसाधन जुटा सकते हैं.

बेहतर नहीं है मौजूदा हालात
झारखंड में पंचायतों को अभी कई विभागों ने अधिकार दिये हैं. मगर अभी भी पंचायत प्रतिनिधि इतने सक्षम नहीं हो पाये हैं कि उन अधिकारों का ठीक से इस्तेमाल कर सकें. कई पंचायत प्रतिनिधियों को तो यह भी मालूम नहीं कि सरकार की कौन-कौन सी ऐसी योजनाएं हैं जिनका लाभ ग्रामीणों को मिल सकता है. इसके लिए सबसे पहले सभी सरकारी योजनाओं की जानकारी और उनका लाभ कैसे लिया जा सकता है यह जानना जरूरी है.

मुखिया जी का श्रमदान
गुमला के विष्णुपुर पंचायत के मुखिया राम प्रसाद बरीक कहते हैं कि उनके गांव में किसान पानी के अभाव में खेती नहीं कर पा रहे थे. जबकि हमलोग देखते थे कि पहाड़ों पर खूब पानी गिरता है और वह पानी बहकर दूर चला जाता था. वे लोग चाहते थे कि किसी तरह पहाड़ों का पानी रोक लिया जाये ताकि उस पानी से गांव के खेतों की सिंचाई की जा सके. वे पाइप के जरिये पहाड़ों का पानी खेतों में उतारना चाहते थे. मगर इसके लिए तकरीबन 5 लाख का खर्च था जो गांव के लोगों के बस की बात नहीं थी. उन लोगों ने कई दफा मंत्रियों और विधायकों से मदद की अपील की. जब आठ साल के प्रयास के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला तो हार  कर उनलोगों ने तय किया कि अब श्रमदान से ही सिंचाई व्यवस्था सुधारेंगे.

जलछाजन योजना मददगार
श्रमदान की बात सुनने में काफी अच्छी लगती है, मगर एक मुखिया भी गांवों के विकास के लिए श्रमदान का विकल्प चुनने लगे तो यह बहुत अच्छी बात नहीं लगती. जल संसाधन विभाग की कई ऐसी योजनाएं हैं जो उनके इस काम में उनकी मददगार हो सकती हैं. रांची में अनगड़ा के दो गांवों में जलछाजन परियोजना के तहत ही पहाड़ों का पानी पाइप से उतार कर बड़े पैमाने पर सिंचाई की जा रही है. अब या तो मुखिया जी को उक्त योजना के बारे में जानकारी नहीं है या सरकारी विभाग उन्हें इस मसले पर ठीक से सहयोग नहीं कर रहा. ऐसे में उन्हें अपने पंचायत फंड से 2.5 लाख रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं.

आत्मनिर्भरता जरूरी
सरायकेला-खरसावां जिला परिषद के उपाध्यक्ष देवाशीष राय कहते हैं कि गांवों की आर्थिक उन्नति के लिए पंचायतों की आत्मनिर्भरता सबसे जरूरी है. इसके लिए वे जोर देते हैं कि लघु वनोपज और लघु खनिज पर पंचायतों को अधिकार दिया जाना सबसे जरूरी है. इनसे गांव के लोगों की आर्थिक उन्नति तो होगी ही पंचायतों के पास अपना फंड भी जमा होगा. इसमें स्थानीय हाट-बाजारों की बंदोबस्ती को भी शामिल किया जाना चाहिये.

लैंप्स पैक्स को मजबूत करें
वे बताते हैं कि मनरेगा और ग्रामीण आजीविका मिशन जैसी योजनाएं काफी कारगर हैं. मगर मनरेगा की तरह पंचायतों को आजीविका से जुड़ी योजनाओं की देखरेख का अधिकार नहीं मिला है. अगर इस योजना की निगरानी पंचायतों के हाथ में आ जाये तो काफी बदलाव हो सकता है. उन्होंने लैंप्स और पैक्सों की स्थिति सुधारने पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि लैंप्स और पैक्स को मजह धान खरीदने की इकाई के रूप में विकसित न करें उसे ग्रामीण बैंक के रूप मे ंविकसित करें जो गांव के किसानों के साथ-साथ स्वरोजगार योजनाओं का लाभ लेने वाले युवाओं को भी आसान शर्तो पर लोन दे सकें. अभी व्यावसायिक बैंकों के असहयोग के कारण युवा स्वरोजगार योजनाओं का ठीक से लाभ नहीं ले पा रहे हैं. जिला उद्योग केंद्र तो अपनी स्वीकृति दे देता है मगर बैंक लोन की रकम देने में आनाकानी करते हैं.

जनसेवक पंचायत में
देवाशीष कहते हैं कि इसके अलावा जनसेवक की स्थापना भी पंचायतों में किये जाने की जरूरत है. वे कहते हैं कि फिलहाल नाम के लिए ही पंचायतों के जनसेवक का निर्देशित करने का अधिकार है. मगर चुकि उसे उसका वेतन जिला प्रशासन के दफ्तर से मिलता है इसलिए वे पंचायतों से जारी निर्देशों की ज्यादा परवाह नहीं करता. ऐसे में जरूरी है कि इऩ जनसेवकों की स्थापना पंचायतों में की जाये. उसे पंचायत भवन में बैठने कहा जाये और उसका वेतन भी पंचायतों से ही जारी हो. इससे उनका ध्यान पंचायतों के विकास पर केंद्रित हो जायेगा.

विशेषज्ञ बहाल हों
जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता और पंचायत समिति सदस्य गुरजीत सिंह भी काफी हद तक देवाशीष राय की बातों से इत्तेफाक रखते हैं. वे मानते हैं कि पंचायतों को अपनी आय अर्जित करना चाहिये. लघु वनोपज, लधु खनिज और हाट-बाजार की बंदोबस्ती का अधिकार तो है ही बस पंचायतें उसे हासिल नहीं कर पायी हैं. उन्होंने सलाह दी है कि पंचायतों की आर्थिक उन्नति से पहले पंचायतों को अपने इलाके के संसाधनों का आकलन करना चाहिये. उन्होंने बड़ी संख्या में विशेषज्ञों की बहाली का भी सुझाव दिया है. उनका कहना है कि ये विशेषज्ञ एक तरफ तो गांव के लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी देंगे तो दूसरी तरफ सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए लोगों की मदद करेंगे. वे सरकारी विभाग और लोगों के बीच सेतु का काम करेंगे. विकास दूत की तरह काम करने वाले इन लोगों की बहाली और उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए सरकार को स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद लेनी चाहिये.