Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/खुली-आंखों-से-घाटे-का-सौदा-मोहन-गुरुस्‍वामी-9946.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | खुली आंखों से घाटे का सौदा - मोहन गुरुस्‍वामी | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

खुली आंखों से घाटे का सौदा - मोहन गुरुस्‍वामी

अव्वल तो यही कि हम अपनी धारणाओं को दुरुस्त कर लें। मसलन, विजय माल्या का ही मामला लें तो पाएंगे कि आम धारणा यह है कि माल्या ने शानो-शौकत की जिंदगी बिताने के लिए बैंकों को भरमाकर 9000 करोड़ रुपयों तक का कर्ज ले लिया और जब कर्ज का बोझ बढ़ गया और चुकतारे का कोई रास्ता नजर आना बंद हो गया तो वह भारत छोड़कर फुर्र हो गया। लेकिन हम भूल जाते हैं कि विजय माल्या इस 9000 करोड़ के कर्जे के बाद विजय माल्या नहीं बना था। किंगफिशर एयरलाइंस की स्थापना करने पर भी वह विजय माल्या नहीं बना था। इससे काफी पहले से वह धन-दौलत से खेलता रहा था और शानो-शौकत की जिंदगी बिताना उसका अरसे से शगल रहा है।

जाहिर है, राजनीतिक रसूख के बिना यह सब संभव नहीं था। प्रमुख राष्ट्रीय दलों के नेताओं पर माल्या पैसा उड़ाते रहे थे। इनमें से कुछ तो राष्ट्रीय राजनीति में अहमियत रखने वाले अत्यंत कद्दावर नेता थे। फिर दो बार राज्यसभा की सदस्यता हासिल कर लेना भी कोई हंसी-खेल नहीं है। बताया जाता है कि राज्यसभा की सदस्यता के लिए माल्या ने करोड़ों खर्चे थे। यह भी कहा जाता है कि कांग्रेस ने माल्या को अपेक्षाकृत कम समर्थन दिया है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कांग्रेस या अन्य दलों ने माल्या से लाभ नहीं उठाया है। माल्या आज जब डंके की चोट पर कहते हैं कि वे सबकी पोल खोल देंगे तो वे हवाई बात नहीं करते हैं।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जो 9000 करोड़ रुपयों का कर्ज माल्या के माथे है, वह उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों द्वारा उनकी निजी एयरलाइंस के संचालन के लिए दिया गया था। इसमें से संभवत: 4000 करोड़ रुपयों का कर्ज मूल था और शेष ब्याज था। दरअसल, हुआ यह था कि बैंकें सबकुछ जानते-बूझते हुए भी माल्या को कर्ज पर कर्ज देती रही थीं। निश्चित ही, यह राजनीतिक रसूख के बिना किसी लिहाज से संभव नहीं था।

यह गड़बड़झाला बदस्तूर चलता रहा और माल्या की गाड़ी कहीं भी नहीं अटकी। ऐसा कैसे संभव हो सका? एक अदना-सा संयुक्त सचिव भी उन्हें लाल झंडी दिखा सकता था। एक सांसद या मामूली-सा बैंक प्रबंधक भी इस मामले में चल रही लेतलाली को लेकर अगर सवाल पूछता तो उनकी गाड़ी फिर आगे नहीं बढ़ सकती थी।

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि माल्या ने केवल सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों को ही चकमा नहीं दिया, वह अपनी स्वयं की कंपनियों, जैसे यूनाइटेड ब्रीवेरीज और यूनाइटेड स्पिरिट को भी भुलावे में रखता रहा और अपनी एयरलाइंस को चलाने के लिए उनसे मदद लेता रहा।

यहां समझने वाली बात यह है कि जब कोई बिजनेस घाटे में चल रहा होता है तो इसका यह मतलब नहीं है कि पैसा चुराया जा रहा है। इसका मतलब यही होता है कि बिजनेस में जितना पैसा खर्च किया जा रहा है, उतने की आमदनी नहीं हो पा रही है। इसका यह भी मतलब है कि कर्मचारियों को बराबर तनख्वाह मिल रही है। जब किंगफिशर की उड़ानें रद्द होने लगी थीं, तब भी सप्लाई किए जा चुके ईंधन के लिए तेल कंपनियों को भ्ाुगतान किया ही जाता था। हायर किए गए प्लेन्स के लिए लीजिंग कंपनियों को राशि चुकाई जाती थी। लैंडिंग और पार्किंग फीस चुकाई जाती थी। कैटरर्स को पैसा दिया जाता था। फिर करों-उपकरों को तो हर स्थिति में चुकाना ही पड़ता है। यह आमदनी अठन्‍नी खर्चा रुपय्या का क्लासिक उदाहरण था।

ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि जब किंगफिशर का बिजनेस मॉडल फेल होता सभी को साफ नजर आ रहा था, तब भी आंखें मूंदकर माल्या को कैसे कर्ज दिया जाता रहा। याद रखें, यह वह दौर था, जब एअर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस दोनों का घाटा मिलकर 43000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया था। इसके सामने माल्या के 4000 करोड़ रुपयों के कर्ज की क्या बिसात थी। जाहिर है, राजनीतिक दलों की आपसी सहमति व मिलीभगत से यह गोरखधंधा चलता रहा। उल्टे, नेताओं और नौकरशाहों ने तो घाटे में चले रहे नागरिक विमानन मंत्रालय से भी पैसा कमाया है!

इतनी सारी उड़ानों के बीच केवल माल्या की देश से बाहर आखिरी उड़ान को याद रखना तो बेकार ही माना जाएगा। याद तो हमें उन बैंकर्स को रखना चाहिए, जो किंगफिशर एयरलाइंस को दिल खोलकर पैसा देते रहे थे। याद तो हमें वित्त मंत्रालय के बैंकिंग सेवाएं विभाग के उन अफसरों को रखना चाहिए, जिन्होंने किंगफिशर को पैसा दिए जाने संबंधी निर्णयों को स्वीकृति दी। और हमें संबंधित बैंकों के बोर्ड और डायरेक्टर्स को भी नहीं भूलना चाहिए। माल्या को जिस तरह के लोन दिए गए, वे केवल तभी दिए जा सकते हैं, जब सभी को कुछ न कुछ हिस्सा मिला हो। अब जब माल्या ने अपनी सबसे चर्चित उड़ान भर ली है तो इसका यह मतलब नहीं है कि सब खत्म हो गया है और इसके लिए कोई भी जिम्मेदार शेष नहीं रह गया है।

वैसे भी इस बात के आसार ना के बराबर ही हैं कि माल्या निकट भविष्य में भारत लौटकर आएंगे। माल्या की संपत्तियों की भले ही जब्ती, कुर्की, नीलामी जो चाहे करवा ली जाए, लेकिन यह साफ है कि माल्या उन अधिकारियों की पकड़ से बाहर है, जो शायद वैसे भी उसे पकड़ना नहीं चाहेंगे। वे तो शायद यह भी चाहेंगे कि माल्या अब कभी लौटकर ही ना आए और उनके जो संगीन राज माल्या के पास हैं, उन्हें वह अपने साथ ही लेकर अपनी कब्र में जाए। वास्तव में माल्या का यहां से जाना कुछ लोगों के लिए एक मायने में इसलिए फायदेमंद साबित हुआ है, क्योंकि सनसनी के बीच उन कुछ अन्य उद्योगपतियों पर से लोगों का ध्यान हट गया है, जो माल्या की ही तरह ऐशो-आराम की जिंदगी की पेशकश करते हैं। इनमें से कुछ उद्योगपति तो पहले ही विदेशों में जम चुके हैं और वहां पर भारत से ज्यादा पैसा कमा रहे हैं। ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब एक मंत्री को फ्रांस में एक उद्योगपति के याट पर छुट्टियां मनाते देखा गया था। हमारे उद्योगपति इसी तरह से अपनी कंपनी की संपत्तियों का इस्तेमाल दूसरों के मौज-मजे के लिए करते हैं। कंपनी जेट्स और आलीशान घरों का भी इसके लिए इस्तेमाल किया जाता है।

इतना ही नहीं, यह पैसा केवल राजनेताओं तक ही नहीं जाता, बस्तर में नक्सलियों और असम में उल्फा तक भी जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों के पैसों का इस्तेमाल इसी तरह से ऐशो-आराम से लेकर राजनीतिक संघर्षों तक के लिए किया जाता है। ऐसे में आखिर आरबीआई इस पर रोक क्यों नहीं लगाती? कंपनी मामलों का मंत्रालय इस पर चुप क्यों है? वास्तव में समस्या निहित स्वार्थों से जुड़े व्यापक हितलाभों की है। अगर बैंकें कड़ा रुख अख्तियार कर लें तो हमारे शीर्ष कारोबार घरानों का क्या होगा? और ये कंपनियां अगर डूब गईं तो देश की अर्थव्यवस्था में जो भूचाल आ जाएगा, उसका क्या होगा? इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो पाएंगे कि माल्या तो महज एक छोटी मछली है, लेकिन जो बड़ी शार्क हैं, वे तो हमारी बैंकिंग प्रणाली को चौतरफा घेरे हुए हैं!

(लेखक आर्थिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं। ये उनके निजी विचार हैं

- See more at: http://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-loss-trading-by-open-eyes-698006#sthash.aHPP40eq.dpuf