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खुलेआम बिक रही हैं नकली दवाइयां

भोपाल। राजधानी में नकली दवाओं का बाजार अपनी जड़ें जमा चुका है। चोरी छिपे नहीं, बल्कि खुलेआम इनकी खुदरा और थोक बिक्री की जा रही है। इतना ही नहीं आसपास के जिलों में भी इनकी सप्लाई पर्याप्त मात्रा में की जा रही है। इन नकली दवाओं की मांग इतनी है कि मेडिकल स्टोर्स आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि राजधानी और आस पास के क्षेत्रों में नकली दवाओं के कारखाने चल रहे हैं जिनकी भनक पुलिस को नहीं है।

शहर के हमीदिया रोड स्थित दवाओं के थोक बाजार में इन दवाओं को खुलेआम मेडिकल स्टोर्स संचालकों द्वारा मांग पर बेचा जा रहा है। इन दवाओं के खासियत यह है कि यह पूरी तरह से असली नजर आती हैं। इनके रैपर और डिब्बे असली दवाओं की टू कापी हैं कि जानकार भी धोखा खा जाए। डाक्टर भी ऐसी नकली दवाओं को पहचान नहीं पा रहे हैं। नकली और असली दवा में सिर्फ स्पेलिंग का फर्क है। चूंकि नकली दवाओं की कीमत असली दवाओं की तुलना में काफी कम है इसलिए ग्राहक इन्हें खरीदने में गुरेज नहीं करते। बाजार में यह नकली दवाएं दाम कम पर काम बेहतर कहकर बेची जा रही हैं। ग्राहक इस बात पर संतुष्ट हो जाता है और नकली दवाएं धड़ल्ले से बिक जाती हैं।

जागरण ने इस संबंध में मिली सूचना के बाद जब बाजार में पड़ताल शुरू की तो जो हकीकत सामने आई वह चौंकाने वाली है। आमतौर से सामान्य बीमारियों के लिए जिन दवाओं को घरेलू माना जाता है और जिसके सेवन के लिए डाक्टर की सलाह की आवश्यकता नहीं होती, ऐसी दवाएं मेडिकल स्टोर्स पर बिना डाक्टर के पर्चे के उपलब्ध हो जाती हैं, ऐसी सैकड़ों दवाएं नकली बिक रही हैं। इस तरह से शहर के करीब तीस फीसदी परिवारों में लोग नकली दवाओं का सेवन कर रहे हैं। सिर दर्द, खांसी, जुखाम, हाथ,पैर और पेट दर्द आदि की नकली दवाएं मेडिकल स्टोर्स पर आसानी से उपलब्ध हैं। न ग्राहक इनको गंभीरता से देखता है और न ही पूछ परख करता है। चूंकि रेपर और डिब्बे असली जैसे हैं इसलिए इसके आगे वह कुछ भी नहीं देखता। पड़ताल में पता चला कि बाजार में ऐसी दवाइयां भी बिक रही हैं जिनका फार्मूला तो महंगी दवाओं के सामान है पर दाम एकदम कम। अगर एक ही फार्मूले की दवाई 100 रूपए में बिक रही हैं तो नकली दवा 25 से 40 रूपए में।

हमीदिया रोड़ स्थित दवाओं के थोक बाजार में जब जागरण ने अपना आपरेशन शुरू किया तो तीन ऐसी दुकानों का पता चला जो नकली दवाओं का भरपूर स्टाक जमा किए हुए हैं और इन्हें वह धड़ल्ले से खपा रही हैं। आजाद मार्केट में दो दुकानों का पता चला जो नकली दवाओं का कारोबार कर रही हैं। जागरण ने इनसे सौदा कर करीब दो दर्जन दवाओं का थोक सौदा किया। सौदे से पूर्व दुकान के संचालकों ने पहले भरोसे के लिए अपने नुक्से अपनाए और जब जागरण इस परीक्षा में पास हो गया तो धंधे की सीधी बात शुरू हुई। इन मेडिकल दुकानों ने नकली और असली दवाओं को सामने कर दिया और फायदे की बात की। जब इन दवाओं को सामने लाया गया तो सब कुछ चौंकाने वाला था। इन दवाओं को देखने के बाद अनुमान लगाया कि शहर में करीब तीस फीसदी लोग तो नकली दवाओं का सेवन कर रहे हैं। जागरण ने करीब पचास तरह की नकली दवाओं का थोक सौदा किया और सेम्पल ले आया। दवाओं के इन थोक विक्रेताओं ने बताया कि इन दवाओं की खपत सबसे अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में होती है क्योंकि यहां के लोग आमतौर से दवाओं को रंग, रेपर और डिब्बे से पहचानते हैं। वह असली और नकली को पहचान नहीं पाते।

नकली दवाएं जो जागरण ने खरीदी

कोरेक्स की जगह टोरेक्स, स्पिलोक्स का स्रि्पोफाल्कस, नारफोल्कस टीजेड का नारफो टीजेड, नाईसी का नाईसिप आदि कई दवाइयां एक ही तरह की पेकिंग में हैं। जिनकी पहचान मुश्किल है।

सरकारी प्रयास की बानगी

नियंत्रक खाद्य व औषधि प्रशासन के नियंत्रक राकेश श्रीवास्तव बताते हैं कि भोपाल जिले में कुल 9 इंस्पेक्टर हैं। जो इन सभी दवाई की दुकानों की जांच पड़ताल समय-समय पर करते हैं तथा असली व नकली दवाइयों का निरीक्षण भी करते हैं। शासन को कड़ा रुख अपनाकर इन नकली दवाइयों पर रोक लगानी चाहिए ताकि लोग धोखा खाने से बचें। किसी भी प्रकार की दुर्घटना के होने से लोगों का बचाव हो।

अधिकारी वर्ग अपनी बात कहकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं पर सच्चाई यह है कि नकली दवाएं न तो खाद्य निरीक्षकों की नजर में आती हैं और न ही वह इसकी बिक्री रोकने की दिशा में कोई कार्य करते हैं। ज्ञात हो कि कुछ माह पहले भोपाल के करोद क्षेत्र में हाउसिंग बोर्ड कालोनी में नकली दवाओं की एक फैक्ट्री पकड़ी गई थी। इसके बाद एक और स्थान पर इस तरह की एक और फैक्ट्री पकड़ी गई, लेकिन इसके आगे कुछ नहीं हो सका। सरकारी महकमे की सुस्ती के कारण राजधानी में नकली दवाओं का बाजार खूब पनप रहा है। इस ओर किसी का ध्यान नहीं है।