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खेत के साथ आंख भी नम, जमीन होते हुए भी रोटी के लिए मोहताज

सेम की समस्या सिर्फ चुनावों के समय ही म़ुद्दा बनती है। बाद में इनसे प्रभावित लोगों को कोई नहीं पूछता। सेम से सीएम प्रकाश सिंह बादल का गृह जिला मुक्तसर सबसे ज्यादा प्रभावित है। फरीदकोट और फिरोजपुर जिलों के कुछ गांव भी चपेट में हैं। कुछ साल पहले तक जमींदार कहलाए जाने वाले किसान आज जमीन होते हुए भी रोटी के लिए मोहताज हैं।

 

 

मुक्तसर जिले के तहत थेहड़ी गांव निवासी परमजीत सिंह को सेम ने कहीं का न छोड़ा। बात चली तो रो ही पड़े। परमजीत की लगभग 15 एकड़ी जमीन सेम की चपेट में है। उसने अपनी बहन की शादी के लिए कुछ साल पहले बैंक से कर्ज लिया था। कर्ज की राशि अब बढ़ कर 25 लाख रुपए हो गई है।

 

पैदावार कम होती गई और कर्ज वापस नहीं हो सका। अब बैंक ने उसे नोटिस भी भेजा है। परमजीत को यही चिंता सता रही है कि इस समय दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल से हो रहा है तो इतना कर्ज कहां से चुकता होगा। इस बार जब बादल मुख्यमंत्री बने तो कुछ आशा बंधी थी लेकिन किसी ने नहीं पूछा।

 

मलोट क्षेत्र के गाँव तपा खेड़ा निवासी साहब सिंह के पास 70 एकड़ जमीन है लेकिन अब वह अपना जीवनयापन करने के लिए दूसरे किसानों की जमीन ठेके पर लेकर फसल की बिजाई करता है। इसी तरह गिदड़बाहा के जगदेव सिंह की 30 एकड़ जमीन सेम प्रभावित है। अब महज दस एकड़ जमीन बची हुई है और उसी से गुजारा कर रहा है। जगदेव सिंह के अनुसार सेम की समस्या दो दशक पहले 2 एकड़ जमीन में शुरु हुई थी जो अब बढ़ कर 30 एकड़ में फैल चुकी है। अभी भी फैल रही है।

 

कुछ ऐसी ही हालत गाँव पक्की टिब्बी निवासी जसवंत सिंह की है जिसके 40 एकड़ सेम प्रभावित है। जसवंत ने कहा- साड्डे तां कर्म ही माड़े ने न साड्डी रब सुणदा है ते न सरकारां। जुगराज सिंह, मनताज गिल, सुखदेव सिंह गिल सहित अनेकों किसान ऐसे हैं जिनकी 30 से 35 एकड़ जमीन सेम की मार झेल रही है। आमदन के पर्याप्त साधन न होने के कारण वे बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाई नहीं करवा पा रहे हैं।

 

यही गिला है कि सीएम का जिला है

करीबन 884 वर्ग किलोमीटर रकबा सेम से प्रभावित है। मुख्यमंत्री का गृह जिला होने के कारण किसानों को पूरी उम्मीद थी कि यह समस्या समाप्त करने में अकाली-भाजपा सरकार कोई कसर नहीं छोड़ेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

 

पिछले बीस वर्षो के दौरान उनकी समस्या को एक बड़ा मुद्दा बना कर सत्ता पर विराजमान होने वाले इन नेताओं ने कभी उनके दर्द को जानने का प्रयास ही नहीं किया। एक किसान के मुताबिक उनकी हालत उस व्यक्ति जैसे है जिसकी संतान किसी बीमारी के चलते नकारा हो जाए और ऐसे में उसे कहना पड़े कि इससे तो वह नि:संतान ही अच्छा था।

 

मुआवजे के नाम पर मजाक

 

किसानों ने बताया कि जब से वे सेम की मार झेल रहे हैं तब से सरकारों ने उन्हें अनदेखा ही किया है। उन्होंने बताया कि कांग्रेस सरकार ने तो कभी उनका दुख तक नहीं जाना। जबकि मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने भी उन्हें मुआवजा देने के नाम पर उनसे मजाक ही किया। उन्होंने बताया कि उन्हें कभी एक वर्ष में 500 रुपये प्रति एकड़ तो कभी 1 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा मिला है।

 

सेम नाले बेकार

 

1997 के विधानसभा चुनावों के दौरान शिरोमणी अकाली दल ने सेम को एक बड़ा मुद्दा बना कर पेश किया और इसी मुद्दे के नाम पर क्षेत्रवासियों के वोट बटोरे। सरकार बनने के पश्चात सरकार द्वारा क्षेत्र में 250 करोड़ की लागत से सेम नाले बनाने की योजना तैयार हुई। लेकिन सेम नालों का लेवल जमीन के अनुसार रखा ही नहीं गया। इतना ही नहीं सेम नाले योजना अनुसार न बनाए जाने के चलते इनका लाभ मात्र कुछ एरिया को ही मिला। जो नाले कुछ ठीक भी बने है उनकी समय पर सफाई नहीं होती। ज्यादातर में झाड़ उग आए हैं।

 

सब कुछ खत्म हो गया

 

कुलबीर सिंह मुक्तसर के गांव थेहड़ी में 23 साल पहले आए थे। वे किसी दूसरी जगह से अपनी पुश्तैनी जमीन बेच कर यहां बस गए। यहां 10 एकड़ Êामीन ले ली। कुछ दिनों पश्चात ही क्षेत्र में सेम आने लगी और देखते ही देखते उसकी सारी जमीन सेम में डूब गई। कुलबीर की बूढ़ी मां रोते हुए बताती है कि सस्ती जमीन के लोभ में यहां आ गए थे लेकिन सब खत्म हो गया। हालत यह है कि उनके द्वारा खेतों में बनाया गया एक छोटा सा घर भी अब रहने लायक नहीं रहा है। बेटे कुलबीर को मजबूरी में शहर जा कर मजदूरी करनी पड़ती है।

 

थर्मल प्लांट का विरोध

 

गांव थेहड़ी निवासियों को गत् विधानसभा चुनावों में शिरोमणी अकाली दल की ओर से परकाश सिंह बादल और मनप्रीत सिंह बादल ने विश्वास दिलाया था कि सेम प्रभावित जमीन को खरीद कर वहाँ थर्मल प्लांट लगाया जाएगा। किसानों को आस बंधी थी। सरकार का कार्यकाल पूरा होने को है परन्तु थर्मल प्लांट का कोई अता-पता नहीं है।

 

किसानों के अनुसार 2 हजार एकड़ में बनने वाले थर्मल प्लांट के लिए सेम प्रभावित मात्र 400 एकड़ जमीन एक्वायर की गई है। इसका रेट भी बहुत कम दिया जा रहा है। इसे एक्वायर किए डेढ़ साल होने लगा है लेकिन आज तक पैसा नहीं दिया गया। रोषस्वरूप लोगों ने इस थर्मल प्लांट का विरोध किया। इतना ही नहीं जिस जमीन को थर्मल के लिए एक्वायर किया जाना है सरकार ने उसका रिकार्ड सील कर दिया है। अब यदि कोई किसान मजबूरी में अपनी जमीन बेचना भी चाहे तो भी नहीं बेच सकता।

 

बढ़ती गई समस्या

 

क्षेत्र में सेम की समस्या लगभग 22 बरस पहले शुरु हुई जो धीरे-धीरे बढ़ती ही गई। गत् विधानसभा चुनावों के समय में जितना रकबा सेम से प्रभावित था अब उससे डेढ़ गुना रकबा सेम की चपेट में आ चुका है। इससे साफ हो जाता है कि इसकी रोकथाम के लिए जो भी थोड़े बहुत उपाय किए गए उनका कोई असर नहीं पड़ा।

 

जिले में सेम की समस्या के कारण किसानों की हालत बहुत नाजुक है। इस संबंध में अकाली सरकार बहुत दावे कर रही है। लेकिन असलित में जो काम किया जाना चाहिए था, नहीं हुआ। सरकार को चाहिए था कि इस सम्बंध में ग्रांट जारी करने से पहले एक्सपर्ट पैनल के जरिये समस्या का हल निकालते। उसके बाद पैसा खर्च किया जाता।

 

सन्नी बराड़, विधायक एवं कांग्रेस नेता मुक्तसर

 

अकाली-भाजपा सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी सेम की समस्या को समाप्त करने के लिए विशेष ग्रांट जारी की थीं और इस बार भी जारी हुई हैं। लेकिन यह समस्या बहुत गंभीर है और इतनी जल्दी इसका समाधान संभव नहीं है। फिर भी सरकार ने इसको समाप्त करने के लिए प्रयास किए और सेम नालों की सफाई करवाई गई। इससे किसानों को काफी राहत मिली है।

 

मनजीत सिंह बरकंदी,शिअद के जिलाध्यक्ष