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खेती में गांधीवाद से मिल रही दोगुनी उपज

छतरपुर. हाल ही की सर्दियों में पाला और तुषार से बुंदेलखंड के किसानों की फसलें तबाह हो रही थीं, पर गांधी आश्रम के खेतों में लगी दलहनी फसलें दोगुनी उर्वरता के साथ लहलहा रही थीं। पिछले साल भी क्षेत्र में सूखे के बीच इस आश्रम में भरपूर फसल थी।

यह चमत्कार है गांधीवादी ढंग से की गई जैविक खेती का, जिसके अध्ययन के लिए देश-विदेश के दर्जनों कृषि विशेषज्ञ, विदेशी शोधार्थी और संस्थाएं यहां आ रही हैं। इसके पीछे संजय सिंह और उनकी पत्नी दमयंती की चार सालों की मेहनत है।

वर्धा आश्रम से छतरपुर के गांधी आश्रम आकर इस दंपती ने सबसे पहले गोबर, गोमूत्र और केंचुआ से जैविक खाद बनाने की कई विधियों का प्रयोग किया। इस खाद का खेतों में उपयोग करने से लेकर गोमूत्र से बीज उपचार कर उन्होंने यहां जैविक खेती की आधारशिला रखी।

गांधी आश्रम की छोटी सी गोशाला में वे बुंदेलखंड की काठन नदी के किनारे पाई जाने वाली दुर्लभ काठी नस्ल की गायों का संरक्षण भी कर रहे हैं। देशी बीज संरक्षण-संवर्धन, देशी सब्जियों-फलों को उगाने से लेकर उनके संरक्षण का काम भी इस जैविक प्रयोगशाला में हो रहा है।

बुंदेलखंड में सालों से खेती बदहाल है,ऐसे में यह दंपती सफलतापूर्वक जैविक खेती कर रहा है, नतीजतन अच्छी फसल के साथ-साथ स्थानीय लोगों की बाजार पर निर्भरता कम हो गई है।

संजय सिंह मूलत: बंगाल के हैं,जहां से उन्होंने गांधी-दर्शन में स्नातक किया और गांधी विद्या पीठ,गुजरात से पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री ली। उन्होंने देश के कई आश्रमों और संस्थानों में रहकर भारतीय शिक्षा पद्धति को लेकर अध्ययन किया और अहमदाबाद में पारंपरिक रोजगार मूलक शिक्षा की वैकल्पिक प्रणाली तैयार की, जिसे गुजरात के कई जिलों में लागू किया गया है। उन्हें महसूस हुआ कि गांधी जैसी शिक्षा चाहते थे,उसके अनुकूल मौजूदा शिक्षा पद्धति नहीं है।

इसलिए उन्होंने चार साल तक गांधी आधारित शिक्षा का वर्धा आश्रम में रहकर प्रचार-प्रसार किया और तभी से ऐसा केंद्र बनाने की बात मन में आई, जहां न केवल जैविक खेती का प्रयोग हो,बल्कि रोजगारमूलक,प्रकृतिपरक, हुनरमंद शिक्षा को बढ़ावा देने वाले वे सभी प्रयोग किए जाएं,जो गांधी को वर्तमान संदर्भ में प्रस्तुत करते हों। इस दंपती ने ऐतिहासिक महत्व रखने वाले गांधी आश्रम की 45 एकड़ जमीन पर जैविक खेती के चमत्कारिक परिणाम दिखाकर रासायनिक खेती से जुड़े सभी मिथक तोड़ दिए हैं।

फसल से होने वाली आय से संजय और दमयंती हर साल गांधी आश्रम में स्वचिकित्सा उत्सव करके देशभर के जैविक कृषि विशेषज्ञ,पारंपरिक चिकित्सा के जानकारों,वैद्यों और गांधी-विचार के लिए काम करने वाले लोगों को बुलाते हैं। शेष समय गांव-गांव घूमकर गांधी-विचार का प्रचार करते हैं।

विदेशी भी मुरीद

4 वर्षो में दंपती ने जो कर दिखाया, उसे जानने विदेशी भी आते हैं।

आय भी समाज की

फसल से होने वाली आय से हर साल स्वचिकित्सा उत्सव का आयोजन।