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गंगा किनारे निर्माण पर रोक की तैयारी- पीयूष पांडेय

केंद्र सरकार की ओर से गठित अंतर-मंत्रालयी समूह गंगा और उसकी सहयोगी नदियों के आसपास नए निर्माण पर रोक लगाने की सिफारिश करने का निर्णय लिया है। समूह की ओर से यह सिफारिश सुप्रीम कोर्ट में पेश की जाने वाली रिपोर्ट में की जाएगी, ताकि नदियों के पर्यावरणीय प्रवाह और पारिस्थितिकी को कायम रखा जा सके।

सर्वोच्च अदालत में उत्तराखंड से लेकर बंगाल की खाड़ी तक गंगा और उसकी सहयोगी जलधाराओं को संरक्षित करने के लिए विस्तृत रिपोर्ट जल्द पेश की जाएगी। सूत्रों के मुताबिक अंतर-मंत्रालयी समूह ने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर गंगा और उसकी सहयोगी नदियों के आसपास निर्माण पर रोक लगाने जाने की सिफारिश करने का निर्णय लिया है। विशेषज्ञ समिति ने अलकनंदा और भगीरथी के किनारों पर पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण से पड़े प्रभावों के संबंध अपनी रिपोर्ट समूह को सौंपी थी, जिसमें 2013 में उत्तराखंड में आई त्रासदी और नदियों के किनारों पर निर्माण में संबंध स्थापित किया गया है।

सरकार के सूत्रों के मुताबिक नदियों के आसपास निर्माण से पड़ने वाले सभी पहलुओं और प्रभावों पर विस्तृत रिपोर्ट को समूह अंतिम रूप दे रहा है। इसमें निर्माण की वजह से नदियों के डूब क्षेत्र खत्म होने, सहयोगी नदियों के खत्म होने और संबंधित क्षेत्र में पड़ने वाले प्रभाव को भी स्पष्ट किया जाएगा। याद रहे कि इस समूह में जल संसाधन मंत्री उमा भारती, पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और उर्जा मंत्री पीयूष गोयल शामिल हैं। पांच सदस्यीय समिति में जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशिशेखर भी हैं, जिन्होंने छह में से पांच पनबिजली परियोजनाओं को हरी झंडी देने वाली विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को कचरे मे फेंक दिया था।

सूत्रों के मुताबिक सरकार परियोजनाओं के मालिकों को पैसा लौटाने को तैयार हैं और उर्जा मंत्रालय से यह भी कह दिया गया है कि वह छह परियोजनाओं का अनुमानित खर्च निकाले। गौरतलब है कि छह पनबिजली परियोजनाओं में एनटीपीसी का लता तपवन, एनएचपीसी का कोटलीभेल, एमएमआर का अलकनंदा, सुपरहाइड्रो का खैरो गंगा और बी गंगा व टीएचडीसी का झेलम टकम को मुआवजा देने की पेशकश की गई है।