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गरीबी उन्मूलन पर विश्व बैंक का ढोंग

विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यांग किम ने कहा है कि वर्ष 2030 तक विश्व से अतिगरीबी समाप्त हो जायेगी. ध्यान दें, शब्द ‘अतिगरीबी' है न कि गरीबी. गरीबी बढ़े और अतिगरीबी घटे ये साथ-साथ चल सकते हैं. जैसे एक भूखे बच्चे को एक रोटी दे दी जाये और गांव के सौ बच्चों को मिली दो रोटी में से एक छीन ली जाये, तो भूखे बच्चे की अतिगरीबी समाप्त हो जायेगी, परंतु सैकड़ों बच्चों की गरीबी बढ़ जायेगी. विश्व बैंक की चाल इसी दिशा में है.

विश्व बैंक की तमाम परियोजनाओं का प्रभावितों द्वारा विरोध होता रहा है. उत्तराखंड में विष्णुगाड पीपलकोटी परियोजना में विश्व बैंक के कार्यकलापों का वास्तविक रूप सामने आता है. विश्व बैंक ने इस परियोजना को लोन दिया है. वर्तमान में पीपलकोटी में अलकनंदा नदी स्वच्छंद बहती है. नीचे से मछलियां ऊपर पलायन करती हैं और अंडे देती हैं.

डैम बनाने के बाद मछलियों का आवागमन अवरुद्ध हो जायेगा और क्षेत्र में रहनेवाले गरीबों को मछली नहीं मिलेगी. वर्तमान में अलकनंदा नदी ऊपर से बालू लेकर आती है. लोग मकान बनाने के लिए बालू को सीधे नदी से उठा लेते हैं. परियोजना बनने के बाद बालू बांध के पीछे कैद हो जायेगी. बांध के पीछे पानी के ठहरने से पानी सड़ने लगता है. झील के ठहरे हुए पानी में मच्छर पैदा होंगे. क्षेत्र में मलेरिया जैसे रोगों का प्रकोप बढ़ेगा. परियोजना में भारी-भरकम सुरंग बनायी जा रही है. इसके लिए भारी मात्र में विस्फोटों का उपयोग हो रहा है. इससे मकानों में दरारें आ गयी हैं. परियोजना के ये तमाम दुष्प्रभाव गरीब पर पड़ेंगे.

परियोजना से उत्पन्न हुई बिजली देहरादून तथा दिल्ली चली जायेगी. जैसे उत्तराखंड में टाटा ने नैनो कार बनाने का कारखाना लगाया. सस्ती बिजली मिली और कार का दाम कम रहा.

इसका लाभ उनको मिलेगा, जो नैनो को खरीदेंगे. मुंबई के एक प्रमुख उद्योगपति के घर में चार लोग रहते हैं. इनके घर का मासिक बिजली का बिल 74 लाख रुपये है. हीटेड स्विमिंग पूल तथा एयरकंडीशन बाथरूम जैसी विलासिता के ऐसे उपयोगों के लिए देश की नदियों को विश्व बैंक द्वारा नष्ट किया जा रहा है.

पीपलकोटी परियोजना का स्थानीय लोगों के एक प्रभावित वर्ग द्वारा विरोध किया जा रहा है. विश्व बैंक का आशीर्वाद प्राप्त कार्यदाई कंपनी द्वारा विरोध करनेवालों को प्रताड़ित किया जा रहा है.

ह्युमन राइट्स वॉच की रपट में बताया गया है कि इन स्थानीय ग्रामवासियों के विरुद्ध कंपनी ने पांच प्राथमिकी दर्ज करायी है. कंपनी के गुंडे इन लोगों को धमकी देते हैं कि विरोध करोगे तो मार डालेंगे. लेकिन विश्व बैंक मस्त है. उसको गरीबों पर हो रहे अत्याचार से कुछ लेना-देना नहीं है, चूंकि दिल्ली के अमीरों को बिजली पहुंचाना विश्व बैंक का अंतिम लक्ष्य है.

बैंक द्वारा उत्तराखंड के बाशिंदों को बताया जाता है कि राज्य में बिजली की किल्लत है. ये परियोजनाएं नहीं लगेंगी, तो बिजली नहीं मिलेगी. पीपलकोटी परियोजना द्वारा जो बिजली बनायी जायेगी, उसकी उत्पादन लागत विश्व बैंक के लोन के दस्तावेजों के अनुसार 5.70 रुपये प्रति यूनिट आयेगी. इस बिजली का 12 प्रतिशत उत्तराखंड को मुफ्त दिया जायेगा. यह मुफ्त बिजली उत्तराखंड सरकार को मिलेगी.

उत्तराखंड सरकार द्वारा यह बिजली उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन को बेची जायेगी. पॉवर कॉरपोरेशन द्वारा इस बिजली को उपभोक्ताओं को बेचा जायेगा. अत: जहां तक उपभोक्तओं को बिजली की उपलब्धता का सवाल है, इसमें कोई अंतर नहीं पड़ता है. सरकार के संपूर्ण खर्च में सरकारी कर्मियों के वेतन का हिस्सा लगभग पचास फीसदी है. अत: इसका लाभ सरकारी कर्मियों एवं दिल्ली के उपभोक्ताओं को होगा, जबकि नुकसान स्थानीय गरीबों को. यही विश्व बैंक का गरीबी उन्मूलन का फॉमरूला है.

मैं जलविद्युत का विरोध नहीं कर रहा. मेरा निवेदन है कि जलविद्युत परियोजनाओं की डिजाइन में परिवर्तन करना चाहिए, जिससे स्थानीय गरीबों को होनेवाला नुकसान कम हो जाये. जलविद्युत बनाने के लिए नदी से पानी इस प्रकार निकालना चाहिए कि मूल धारा खुली बहती रहे. मछली तब अपने प्रजनन क्षेत्र पहुंच सकेगी, स्थानीय लोगों को बालू मिलता रहेगा, बहते पानी में मच्छर पैदा नहीं होंगे.

विश्व बैंक के आंतरिक नियमों के अनुसार, किसी भी परियोजना को लोन देने के पहले विकल्पों पर विचार करना जरूरी होता है. कुछ स्थानीय लोगों के साथ-साथ मैंने विश्व बैंक के सामने डिजाइन में परिवर्तन का यह विकल्प रखा था. परंतु विश्व बैंक ने इसमें रुचि नहीं ली.

विश्व बैंक के नियमों में यह भी है कि परियोजना का समाज के वर्गो पर पड़नेवाले प्रभाव को देखा जाये, लेकिन विश्व बैंक ने आकलन से इनकार कर दिया. स्पष्ट है कि विश्व बैंक गरीबी उन्मूलन नहीं चाहता है. उसका उद्देश्य है कि अतिगरीब को दिन की एक रोटी मुहैया करा दो, जिससे गरीबी उन्मूलन का ढोंग जारी रह सके.