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गरीबी से तंग आकर बच्चों को आश्रम में छोड़ा

जागरण ब्यूरो, भोपाल। मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के कोरकू आदिवासी दुकाली ने गरीबी से तंग आकर अपने दो बच्चों को सारणी के एक आश्रम को दान कर दिया है। भोपाल से सटे हुए बैतूल आदिवासी अंचल की इस घटना ने केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं की कलई खोलकर रख दी है।

यह घटना उस वक्त हुई जब राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आदिवासियों में भारतीय जनता पार्टी का जनाधार बढ़ाने के लिए वनवासी यात्रा पर निकलने की तैयारी कर रहे हैं। यात्रा पिछले माह चालू होना थी, लेकिन अयोध्या मामले के कारण इसे टाल दिया गया था। अब यात्रा इस माह के अंत में शुरू होगी। बैतूल जहां कि कोरकू समुदाय के आदिवासी द्वारा बच्चे दान करने की घटना हुई है, यह क्षेत्र आदिवासी कल्याण मंत्री विजय शाह के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है। वे खुद भी आदिवासी समुदाय से हैं। केन्द्र में आदिवासी विभाग का नेतृत्व करने वाले कांतिलाल भूरिया भी मध्यप्रदेश के ही है। इसके बाद भी जिला प्रशासन बच्चे दान करने की घटना से पूरी तरह पल्ला झाड़ रहा है।

बैतूल जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी बी.एस. जामोद कहते हैं कि आदिवासी बच्चे रखें या दान करें, इससे उन्हें कोई लेना देना नहीं है।

यहां उल्लेखनीय है कि प्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद मैदानी स्तर योजनाओं के अमल का जिम्मा भी उसे सौंपा गया है। दुकाली आदिवासी को सरकार द्वारा चलाई जाने वाली किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला है। ना राशन, ना पानी। दुकाली वन ग्राम जुआझर का रहने वाला है। दुकाली और उसकी पत्‍‌नी जंगलों से लकड़ी चुनकर सारणी शहर में बेचकर जैसे-तैसे अपना घर परिवार चला रहे हैं।

वन ग्राम जुआझर में 17 परिवार हैं, जो आदिवासी और अति गरीब हैं। केंद्र एवं प्रदेश सरकार इस गांव में कई योजनाओं का क्त्रियान्वयन करने का ताल ठोक रही हैं। वन ग्राम जुआझर सभी सुविधाओं से कोसों दूर हैं। इस गांव के दुकाली आदिवासी ने अपने 10 वर्षीय श्यामलाल और छह वर्षीय रामलाल को सारणी के जय बाबा मठारदेव वृद्धाश्रम में पिछले सप्ताह दान किया है।

वृद्धाश्रम के संचालक एवं सेवानिवृत शिक्षक सीएस वराठे इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं कि भारत को आजाद हुए भले ही 63 वर्ष हो गए हैं, लेकिन आदिवासी और कोरकू समुदाय को आज भी दो वक्त के भोजन के लिए जंगलों की खाक छाननी पड़ रही है। वराठे बताते हैं कि दुकाली की आंखें मेंअपने बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना था। बच्चों के भविष्य की चिंता को देखते हुए पति-पत्‍‌नी ने छह अक्टूबर को अपने दोनों बच्चों को आश्रम को दान किया है ताकि दोनों का भविष्य माता पिता की तरह न हो। दोनों बच्चों को अच्छी शिक्षा देने का संकल्प 72 वर्षीय आश्रम संचालक एवं सेवानिवृत शिक्षक सीएस वराठे ने लिया है।