Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/गरीबों-के-नाम-पर-अर्थव्यवस्था-का-कबाड़ा-तवलीन-सिंह-6038.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | गरीबों के नाम पर अर्थव्यवस्था का कबाड़ा- तवलीन सिंह | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

गरीबों के नाम पर अर्थव्यवस्था का कबाड़ा- तवलीन सिंह

हमारे अपनों ने गरीब जनता के नाम पर पिछले सप्ताह की अर्थव्यवस्था की भयानक अनदेखी। दोष हर उस सांसद का है, जिसने खाद्य सुरक्षा विधेयक को पारित करने के लिए वोट डाला, लेकिन सबसे ज्यादा दोष किसी का है, तो वह है प्रधानमंत्री का, वित्त मंत्री का और सोनिया गांधी का। सोनिया और उनके सुपुत्र राहुल गांधी का हाथ भूमि अधिग्रहण विधेयक में भी है, जिसका पारित होना भी तकरीबन तय है। सोनिया गांधी ने खास दखल देकर तैयार करवाए हैं ये दोनों नए विधेयक, जिनके बारे में आजकल टीवी पत्रकार कहते हैं कि ये कांग्रेस के तुरूप के पत्ते साबित हो सकते हैं 2014 के चुनाव में। ऐसा होगा या नहीं, यह तो� भविष्य बताएगा, लेकिन अभी से हम कह सकते हैं यकीन के साथ कि इन दोनों विधेयकों को जब कानून में तब्दील किया जाएगा, तब संभव है कि भारतीय अर्थव्यवस्था और बदतर स्थिति में चली जाए। आम आदमी के नाम पर खाद्य सुरक्षा कानून सरकार का खजाना खाली करने का काम करेगा।

कृषि मंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में, कि उनको चिंता है अगले वर्ष की, जब करीब सत्तर फीसदी जनता को सस्ता अनाज देने का खर्च लगभग सवा लाख करोड़ रुपये तक जाएगा। सोनिया जी ने खुद कहा लोकसभा में इस विधेयक को पेश करते समय, कि सवाल यह नहीं है कि हम यह खर्च उठा सकेंगे कि नहीं, यह तो हमको करना ही है। इस प्रस्तावित कानून से जुड़ी एक और समस्या है, जो अभी से मुख्यमंत्रियों को सता रही है। भविष्य में, भगवान न करे, कोई वर्ष ऐसा अगर आए, जब अनाज की पैदावार पूरी न हो, तब कहां से आएगा अनाज?

इन सब चिंताओं के बावजूद अगर यकीन होता मुझे कि इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद इस देश के बच्चों में कुपोषण खत्म हो जाएगा और भुखमरी हमेशा के लिए दूर हो जाएगी, तो इस विधेयक का मैं दिल खोलकर समर्थन करती। इसलिए कि मेरा मानना है कि भारत जैसे विशाल देश में एक भी बच्चा अगर रात को भूखा सोया, तो यह महापाप है। लाखों बच्चे अगर रात को भूखे सोते हैं देश के आजाद होने के छियासठ वर्षों के बाद भी, तो सिर्फ इसलिए कि इस किस्म की योजनाओं में हमने निवेश किया बिना सोचे-समझे। इनमें से एक भी योजना कामयाब हुई होती, तो आज हर दूसरा भारतीय बच्चा कुपोषित न माना जाता। याद कीजिए कि आईसीडीएस योजना, जो बच्चों का कल्याण कर रही है 1975 से, लेकिन इतनी बेकार है यह कि भुखमरी जब फैलती है दूर-दराज के जिलों में और बेहद खराब हो जाती है बच्चों की हालत, तभी आईसीडीएस का पैसा मिलता है। फिर उनको अस्पताल में मिलता है चालीस रुपये दैनिक का पोषण। जब ठीक हो जाते हैं बच्चे, तब उनके गरीब मां-बाप उन्हें घर ले जाते हैं, जहां पूरे परिवार के पोषण के लिए दस रुपये भी नहीं होते। ऐसा मैंने अपनी आंखों से देखा है महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले में। मुंबई की गलियों में देखती हूं ऐसे बच्चे, जिनको रोटी-चाय तो मिलती है, लेकिन कुपोषित होते हैं वे, क्योंकि सब्जी-दूध की शक्ल शायद ही कभी देखते हैं वे। इन बेहाल बच्चों के क्या काम आएगा सोनिया जी का सस्ता अनाज?

रही बात भूमि अधिग्रहण विधेयक की, तो यकीन मानिए कि औद्योगिकीकरण पूरी तरह समाप्त हो जाएगा देश में, क्योंकि 50 एकड़ जमीन भी अगर खरीदना चाहेगा कोई निजी खरीदार, तो उसको इजाजत लेनी होगी 80 प्रतिशत स्थानीय लोगों से। इस विधेयक के अन्य प्रावधान ऐसे हैं कि अगर कोई राज्य सरकार भूमि का अधिग्रहण करना चाहे किसी सड़क, किसी बिजलीघर या किसी बंदरगाह के लिए, तो कई-कई वर्ष लग जाएंगे कचहरियों के चक्कर काटते। इसलिए कि जिन लोगों से जमीन ली जाएगी, उनका पुनर्वास करना अनिवार्य हो जाएगा।

अर्थव्यवस्था की हालत खराब होती जा रही है। और संसद में जनता के प्रतिनिधि चूं करने को तैयार नहीं हैं क्योंकि चुनाव करीब आ रहे हैं और कोई नहीं चाहता कि वह ऐसे कानून का विरोध कर गरीबों का दुश्मन दिखे। अर्थव्यवस्था की हालत और खराब होती है, तो सबसे ज्यादा नुकसान होगा गरीबों का, लेकिन अभी इसके बारे में कोई नहीं सोच रहा है। न ही कोई सोच रहा है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार आगे जब निकल जाएंगे, तब भारत का क्या होगा।