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गवर्नेस की हिलती बुनियाद- अजय सिंह

आजादी के ठीक बाद लगभग 400 आइसीएस अधिकारियों की जमात देशभर में थी. राजनीतिक तबके में इन अफसरों के खिलाफ जबरदस्त रोष था. परंतु संविधान की कुछ धाराओं की वजह से उन पर कार्रवाई नहीं हो सकती थी. सरदार पटेल ने इन अधिकारियों को सुरक्षा और सम्मान की गारंटी दी थी. अनंतसायनाम अयंगर, जो बाद में लोकसभा स्पीकर भी बने, ने पटेल के आश्वासन पर अपनी असहमति जतायी. वजह साफ थी. राजनीतिक वर्ग इन अफसरों से, जिन्होंने अंगरेजी शासकों की हुक्म उदूली की थी, बदला लेना चाहता था.

पटेल ने संविधान समिति में अयंगर को फटकार लगायी. पटेल ने कहा था, भारत का स्वरूप बिगड़ गया होता अगर इन अफसरों ने सूझ-बूझ और असीम देशभक्ति से काम न किया होता. उन्होंने यहां तक कहा कि संसद की सर्वोच्चता की लाठी भांजना हर समय उचित नहीं है. निस्संदेह पटेल और नेहरू भी उन्हीं नेताओं की जमात में से थे, जिन्हें इन अधिकारियों से शिकायत हो सकती थी, उनकी निष्ठा पर संदेह हो सकता था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इन दोनों नेताओं ने इन्हीं अधिकारियों के जरिये प्रशासन की एक प्रभावी नींव डाली और भारतीय प्रशासनिक सेवा व भारतीय पुलिस सेवा का गठन किया.

आज के संदर्भ में यह सब एक मनगढ़ंत कहानी-सी लगती है. जरा गौर कीजिए मुलायम सिंह यादव व उनके भाई रामगोपाल यादव के बयानों पर. दोनों नेताओं ने केंद्र सरकार को धमकी दे डाली कि वह अपने आइएएस ऑफिसर्स को वापस ले ले. राज्य सरकार अपने अधिकारियों से काम चला लेगी. नाराजगी की वजह है कुछ अधिकारियों में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा और संवैधानिक दायित्व का बोध. आइएएस दुर्गा शक्ति नागपाल इन चुनिंदा अफसरों में एक हैं.

27 साल की इस आइएएस अफसर की यह पोस्टिंग बतौर ट्रेनी हुई है. आखिरकार इस अफसर ने ऐसा क्या कर दिया जो देशभर में विवाद का विषय बन गया है! प्रदेश के प्रशानिक तंत्र में नागपाल की हैसियत बहुत छोटी थी. इसके बावजूद उन्होंने अपने संवैधानिक दायित्वों का मुस्तैदी से निर्वाह करने का बीड़ा उठाया. यही वजह थी कि इस अधिकारी की कर्तव्यपरायणता को प्रदेश के शासकों ने चुनौती के रूप मे देखा.

दरअसल यह पूरा प्रकरण उत्तर प्रदेश की राजनीति के अपराधीकरण और प्रशासनिक पंगुता का बिंब है. दिल्ली से सटा नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद प्रदेश की राजनीति को संचालित करता है. इसका कारण आर्थिक, विशेषकर अंडरग्राउंड इकोनॉमी है. दिल्ली से सटा होने के कारण यहां जमीन की कीमत काफी बढ़ गयी है. नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद में लगभग 10 लाख मकानों का निर्माण अभी चल रहा है. कई लाख और मकान प्रस्तावित हैं. इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से रियल एस्टेट पर आधारित है. पिछले दस साल में कई बड़े बिल्डर्स और रियल एस्टेट डेवलपर्स की एक जमात उभर आयी है, जिनका प्रभुत्व यहां के सामाजिक-राजनीतिक जीवन पर है.

हाल ही में पारिवारिक विवाद में मारा गया पोंटी चड्ढा इस नव धनाढ्य वर्ग का ही हिस्सा था. पोंटी चड्ढा के प्रभुत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि उसकी पहुंच मायावती के शासनकाल में जितनी थी, उतनी ही मुलायम सिंह के शासनकाल में. बीजेपी के प्रमोद महाजन से लेकर राजनाथ सिंह तक, हर बड़े नेता पोंटी चड्ढा के निजी मित्र थे. यही हाल कांग्रेस में भी था, जहां चड्ढा का प्रभाव बड़े से बड़े नेता पर था.

मायावती के शासनकाल मे शराब के इस पूर्व व्यापारी को प्रदेश भर में मिड-डे मील के वितरण का ठेका दे दिया गया था. जाहिर है चड्ढा की कहानी को एक व्यक्ति के जीवन के उतार- चढ़ाव के रूप में देखना बेमानी होगी. आज एनसीआर में पोंटी चड्ढाओं की भरमार है. यहां रियल एस्टेट डेवलपर्स की एक बड़ी फौज है, जिनके पास राजनीतिक दलों और इनके नेताओं को पैसा देने की अकूत क्षमता है. साफतौर पर इस तरह की अर्थव्यवस्था की नींव में काला धन होता है. बड़े-बड़े भूखंडों की डील में राजनेता-अधिकारी और बिल्डर्स का नेटवर्क काम करता है. पिछले एक दशक में भ्रष्टाचार का यह स्वरूप लगभग संस्थागत बन गया है. कोई भी अधिकारी इससे छेड़छाड़ करने की हिम्मत नहीं करता.

बालू माफिया भी इसी कहानी की कड़ी है. इमारतों को बनाने के लिए बालू की जरूरत होती है. लिहाजा इसका खनन भी यमुना व हिंडन नदी के इलाकों से किया जाता है. पिछले कुछ सालों में इस खनन ने इन क्षेत्रों में पर्यावरण समस्या भी खड़ी कर दी है. किसी भी समय इस खनन को रोकने का साहस कोई अधिकारी नहीं जुटा पाया. वजह यह थी कि खनन माफिया का सीधा संपर्क उन राजनेताओं व अधिकारियों से था जिनकी छत्रछाया मे रियल एस्टेट डेवलपर्स फल-फूल रहे हैं.

दरअसल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आनेवाले यूपी के इलाकों की हकीकत देख कर एकबारगी यह लगता है कि यह क्षेत्र संस्थागत माफिया की गिरफ्त में है. दिलचस्प यह है कि इस संस्थागत माफिया को वैधानिकता का आवरण प्रदेश के शासक वर्ग प्रदान करते रहे हैं. नागपाल का 41 मिनट में निलंबन कराने का दावा करनेवाले नरेंद्र भाटी को प्रदेश में मंत्री का दर्जा प्राप्त है. इसी तरह कभी मायावती के भाई आनंद का इस क्षेत्र के प्रशासनिक तंत्र पर पूरा नियंत्रण था.

दुर्गाशक्ति ने आइएएस की मसूरी एकेडमी में संविधान की शपथ हाल ही में ली थी. नौकरी के शुरुआती दौर में वह आदर्शवाद से प्रेरित थीं. इसीलिए सत्ता के इस स्वरूप व समीकरण को समझने में विफल रहीं. यही वजह है कि उन्हें राजनीतिक दलों का समर्थन भी मजबूरी में ही मिल रहा है. अपने साथी अधिकारियों में भी खुला समर्थन न के बराबर है.

अगर कुछ अधिकारियों ने समर्थन दिखाया, तो मुलायम सिंह यादव व उनके भाइयों ने सारे आइएएस अधिकारियों को हटाने की धमकी दे दी. जाहिर है मुलायम सिंह जिस तरह राजनीतिक सत्ता को परिवारवाद के विस्तार के रूप में देखते हैं, वह दिन दूर नहीं कि वे उत्तर प्रदेश को भी पारिवारिक जमींदारी समझ बैठें और प्रदेश के शासनतंत्र को भारतीय प्रशासनिक पद्धति से अलग करने की चुनौती दे डालें.

यह एक अजीब सी स्थिति है, जो गवर्नेस के लिए भयावह है. ऐसे में क्या यह कल्पना की जा सकती है कि पटेल ने संविधान सभा के अपने भाषण में कहा कि उन्होंने अपने सचिव और अधिकारियों को फाइल में मंत्री के प्रतिकूल टिप्पणी की इजाजत दी है. सिर्फ इसलिए कि राजनेता और कार्यपालिका संविधान और नियम के दायरे में रह कर काम करें. यह बुनियाद थी राजनीतिक वर्ग व नौकरशाह के बीच एक तालमेल और विश्वास की. दुर्गाशक्ति नागपाल की घटना एहसास कराती है कि नेहरू-पटेल द्वारा रखी गयी गवर्नेस की वह बुनियाद महज एक दिवा- स्वप्न थी. हकीकत सचमुच भयावह है.