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गांव के गरीबों को दिए जाएंगे पक्के मकान

राजेश चतुर्वेदी, भोपाल। केन्द्र से दुखी चल रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में नई योजना लेकर आ रहे हैं। सत्तारूढ़ भाजपा लगातार तीसरी पारी खेलने की तैयारी में जुट गई है और मिशन 2013 को हासिल करने के लिए उसने नई-नई मनभावन योजनाएं परोसना शुरू कर दिया है। ताजा मिसाल 'मुख्यमंत्री आवास मिशन' नामक योजना है, जो नए साल से सूबे में लागू हो जाएगी। गांव के गरीब आवासहीनों के लिए बनाए गए इस मिशन के तहत अगले तीन सालों में कम लागत के लगभग 5 लाख पक्के मकान बनाकर देने की योजना है।

मुख्यमंत्री आवास मिशन राज्य के 52 हजार गांवों में रहने वाले गरीबों के लिए काम करेगा। पांच माह की मेहनत के बाद बनी इस योजना को दक्षिण के राज्यों से प्रभावित होकर तैयार किया गया है। खासतौर पर आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में इस पर अच्छा काम हुआ है। आंध्रप्रदेश में 17 लाख आवास बनाकर दिए गए हैं, जहां लोगों ने इस योजना को हाथों हाथ लिया है।

सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस मिशन के जरिए केन्द्र सरकार, जिस पर वह मध्यप्रदेश के साथ पक्षपात करने का आरोप लगाते रहे हैं, को तगड़ा जवाब देना चाहते हैं। दरअसल चौहान ने कोयला सहित जिन विषयों को लेकर कांग्रेस के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार को निशाने पर ले रखा है, उनमें इंदिरा आवास योजना भी शामिल है। इस मामले में मप्र की शिकायत है कि भारत सरकार इंदिरा आवास का कोटा देने में उसके साथ भेदभाव करती है। 2001-02 के सर्वे के मुताबिक राज्य में कच्चे आवासों की संख्या 34 लाख है और ढाई लाख आवासहीन हैं। मगर मप्र को इंदिरा आवास योजना के तहत हर साल 70 हजार आवास आवंटित किए जा रहे हैं। इसके विपरीत आंध्रप्रदेश को ढाई लाख और बिहार को साढ़े दस लाख आवास दिए जा रहे हैं।

ग्रामीण विकास विभाग, जो नए बनाए गए मिशन का नोडल विभाग है, के एक वरिष्ठ अफसर ने बताया कि इंदिरा आवास योजना के तहत सिर्फ 45 हजार रूपए की राशि प्राप्त होती है, जिससे पक्का मकान नहीं बन पाता। लिहाजा, मप्र सरकार ने कम लागत के पक्के आवास देने की योजना बनाई और यह भी तय किया गया कि हितग्राहियों को मुफ्त में मकान नहीं दिए जाएंगे। इससे उन गरीबों का पक्के आवास का सपना पूरा हो जाएगा, जो केन्द्र सरकार की इंदिरा आवास योजना का लाभ नहीं ले पाते।

इरादा केन्द्र की इंदिरा आवास योजना के मुकाबले इस मिशन को लोकप्रिय बनाने का है, इसीलिए राज्य सरकार ने इसमें पक्के आवास का गणित जोड़ा है। पूरे आवास ईको फ्रेंडली होंगे। भू अधिकार पत्र के आधार पर आवास बनाए जाएंगे। जिनके पास अधिकार पत्र नहीं हैं, उन्हें सरकार जमीन का पट्टा देगी। योजना की खासियत है कि कहीं कोई कागज नहीं चलेगा और हितग्राहियों को उनके गांव में ही सारी चीजें उपलब्ध हो जाएंगी। उन्हें बस ग्राम सभा को एक आवेदन देना होगा। जीपीएस के जरिए जमीन की सेटेलाइट मेपिंग होगी और भू स्वामी का फोटो भी उसमें रहेगा। प्रशिक्षित मिस्त्री अपनी देखरेख में ये आवास तैयार करवाएंगे। विभाग ने 27 डिजायन तैयार की हैं, जिनमें से किसी भी एक को चुनने की सुविधा रहेगी। छत के लिए एमसीआर टाइल्स, आरसीसी या आरबीसी पैनल्स होंगी।

क्या है योजना

- सवा लाख रूपए तक की सालाना आमदनी वाले ले पाएंगे लाभ

- एक आवास पर 70 हजार रूपए खर्च होंगे

- 10 हजार रूपए हितग्राही को देना होंगे

- 30 हजार रूपए का लोन हितग्राही पर होगा और 30 हजार का राज्य सरकार पर

- यह कर्ज 15 सालों में चुकता करना होगा और दोनों पर हर माह 325-325 रूपए की किश्त आएगी

कथन

योजना बनकर तैयार है। आगामी अप्रैल से हर वर्ष लगभग डेढ़ लाख आवास बनाकर देने का लक्ष्य है।

- संजय दुबे, सीईओ मप्र राज्य ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण