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गुजरात में शिक्षा का भगवाकरण,शाखाओं में बंटनेवाली किताबें स्कूलों में- अंकुर जैन

गुजरात सरकार उन किताबों को राज्य के सभी प्राइमरी और हाइस्कूलों में पढ़ाने जा रही है, जिन्हें पिछले दो दशकों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखाओं में बांटा जाता रहा है. अब तक ये किताबें ‘विद्या भारती-अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान' के स्कूलों में भी पढ़ाई जा रही थीं, लेकिन अब ये सरकारी स्कूलों में भी बांटी जायेंगी.

इन पुस्तकों के लेखक आरएसएस के कार्यकर्ता दीनानाथ बत्र हैं. ये वही दीनानाथ बत्र हैं, जिन्होंने अमेरिकी लेखक वेंडी डोनिगर की किताब का जोरदार विरोध किया था और इसके बाद प्रकाशक ने सारी प्रतियां बाजार से वापस मंगवा ली थीं. बत्र की ये किताबें मूल रूप से हिंदी में लिखी गयी हैं, जिनका गुजराती में अनुवाद किया गया है और इन सब पर एक मोटी रकम खर्च की गयी है.

राज्य सरकार के इस फैसले का कुछ लोग विरोध भी कर रहे हैं, लेकिन खुद दीनानाथ बत्र कहते हैं कि सरकार का ये फैसला सही है और इन किताबों को हर राज्य के स्कूलों में बांटा जाना चाहिए. ‘शिक्षा बचाओ' आंदोलन संस्था के अध्यक्ष दीनानाथ बत्र ख़ुद को किताबों का सोशल ऑडिटर कहते हैं.

बत्र ने ये किताबें नब्बे के दशक में लिखी थीं. विद्या भारती राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित स्कूलों और उच्च शिक्षा के संस्थानों का नेटवर्कहै. ये किताबें पिछले दो दशकों से इन स्कूलों में पढ़ाई जा रही हैं और शाखाओं में बांटी जाती रही हैं. गुजरात सरकार ने हाल ही में एक मोटी राशि खर्च करके बत्र की कुल नौ किताबों के 42 हजार सेट गुजरात के प्राइमरी और हाइस्कूलों में बंटवाने का फैसला किया है.

सवाल उठता है कि आखिर इन किताबों में ऐसा क्या है कि गुजरात सरकार ने करीब एक साल तक इनका हिंदी से गुजराती में अनुवाद करवाया और अब उन्हें स्कूलों में वितरित किया जा रहा है.

बत्र उठाते हैं सवाल

दीनानाथ बत्र अपनी एक किताब में बच्‍चों से सवाल करते हैं कि आप भारत का नक्शा कैसे बनायेंगे और फिर कहते हैं कि क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भूटान, तिब्बत, बांग्लादेश, श्रीलंका और बर्मा अविभाजित भारत का हिस्सा हैं. किताब में लिखा है, ‘मित्रों, तैयार हो जाओ अखंड भारत की महिमा और अस्मिता को पुन: स्थापित करने के लिए.

अगर 1700 वर्ष बिना भूमि के रहे यहूदी अपने संकल्प से इस्राइल ले सकते हैं, अगर खंडित वियतनाम और कोरिया फिर एक हो सकते हैं, तो भारत भी फिर से अखंड हो सकता है.'

‘शिक्षा में त्रिवेणी' नाम की किताब में बत्र लिखते हैं, ‘आज के युग में लोगों के पहनावे ने शरीर को बाजार में लाकर सुंदरता की नीलामी में खड़ा कर दिया है. पहनावे से चंचलता और विचारों में उत्तेजना आना स्वाभाविक है.' गुजरात सरकार ने बत्र की इस किताब के अलावा ‘शिक्षा का भारतीयकरण', ‘विद्यालय-कार्यकलाप का घर' और ‘प्रेरणादीप' किताबें गुजराती में छपवाई हैं.

शिक्षा त्रिवेणी किताब में ही बत्र बच्‍चों को पश्चिमीकरण से सावधान रहने को कहते हैं. वे लिखते हैं, ‘वेस्टर्न म्यूजिक, डिस्को जैसे उत्तेजक गीत पशुभाव जागृत करते हैं. बच्‍चों को भजन और देशिभक्ति के गीत सुनने चाहिए.' अपनी किताब ‘शिक्षा का भारतीयकरण' में बत्र बच्‍चों को जन्मदिन पर मोमबत्ती बुझा कर नहीं, बल्किगायत्री मंत्र पढ़ कर मनाने की हिदायत देते हैं.

सबको चाहिए ऐसी किताबें

दीनानाथ बत्र मानते हैं कि सालों तक देश की शिक्षा प्रणाली ने विद्यार्थियों को भारत के गौरवान्वित इतिहास से वंचित रखा और अब समय आ गया है इसे बदलने का. वे कहते हैं, ‘स्कूलों में आज तक सिर्फअकबर और औरंगजब पर कई पेज होते थे, लेकिन शिवाजी और महाराणा प्रताप पर सिर्फ कुछ पंक्तियां ही.
मेरी किताबों में भारत के इतिहास की झलक है, जो स्कूल की किताबों में नहीं होती. बच्‍चों को गलत इतिहास परोसा गया है और इसे बदलना होगा. मैं चाहता हूं कि ऐसी किताबें अन्य राज्य भी बांटें.'

आरएसएस की प्रशंसा

गुजरात के स्कूलों में बंटी बत्र की सभी किताबों में आरएसएस और संघ प्रचारक रह चुके लोगों की जम कर प्रशंसा की गयी है. एक जगह दीनानाथ बत्र लिखते हैं, ‘जो विद्यार्थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में रोज जाते हैं, उनके जीवन में चमत्कारी बदलाव आ जाते हैं.

इनमें से कई विद्यार्थी अपनी पढ़ाई अच्छे नंबरों से पास कर, अब अपनी युवा क्षमता और इच्छाओं का देश हित में उपयोग कर रहे हैं.' सभी किताबों में मौजूदा शिक्षा के ढांचे की तीखी आलोचना करते हुए बत्र बच्‍चाों से कहते हैं कि उन्हें जान बूझ कर इतने सालों तक गलत इतिहास पढ़ाया गया. वो लिखते हैं, ‘इंगलिश शिक्षा ने हिंदू शब्द को विकृत किया है. मेकॉले और मार्क्‍स के पुत्रों ने हमारे इतिहास के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ किया है.'

क्या कहते हैं समाजशास्त्री

समाज शास्त्री अच्युत यागनिक कहते हैं कि पिछले कई सालों से गुजरात की यूनिवर्सिटी के कुलपतियों की नियुक्ति के लिए उम्मीदवार का आरएसएस से ताल्लुक होना जरूरी है. उनके मुताबिक, ‘गुजरात सरकार में कुलपति की नौकरी सिर्फआरएसएस से जुड़े लोगों को ही दी जाती है. पर, अब सरकार कॉलेज की बजाय स्कूली शिक्षा में भी आरएसएस को एंट्री दे रही है.

बत्र की किताबें इसका पहला संकेत हैं. समाज का ध्रुवीकरण और हिंदुत्ववाद फैलाने के लिए अब स्कूल का उपयोग होगा.' वहीं बत्र की किताबों का अनुवाद कराने वाले डॉ जयेश ठक्कर, गुजरात पाठ्यपुस्तक मंडल की अनुसंधान समिति के अध्यक्ष हैं. वो कहते हैं, ‘बच्‍चों को अगर संस्कार और भारत के इतिहास के बारे में बताया जाए, तो इसे लोग भगवाकरण कहते हैं. अरे यह काम तो कांग्रेस की सरकार के वक्त भी होता था.'

शिक्षा क्षेत्र की बदहाली

लेकिन जो गुजरात सरकार बच्‍चों को संस्कार और भारत के इतिहास की सच्ची तसवीर बताने में इतनी तत्पर है, उस राज्य में शिक्षा की तसवीर बहुत अच्छी नहीं है. गुजरात की स्कूली पाठ्य पुस्तकों में गलतियों ने इतिहास के साथ ख़ूब खिलवाड़ किया है. गांधी जी की पुण्य तिथि से लेकर विश्वयुद्ध तक इतिहास के कई हादसे गलत तरह से प्रस्तुत किये गये हैं.

साल 2012 के आंकड़ों के मुताबिक गुजरात के स्कूलों में ड्रॉपआउट रेट 58 प्रतिशत है, जबकि कई अन्य राज्यों में यह 49 प्रतिशत है. यही नहीं, अध्यापक और विद्यार्थी का अनुपात भी गुजरात में राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा है. उच्चतर कक्षाओं में हर 52 विद्यार्थियों के लिए एक अध्यापक है जबकि राष्ट्रीय औसत 34 है.

(साभार: बीबीसी)