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गुर्दा दान करनेवालों में 70% महिलाएं

देश की राजधानी दिल्ली के बड़े अस्पतालों के आंकड़े बताते हैं कि गुर्दा दान करनेवालों में लगभग 70 फ़ीसदी महिलाएं होती हैं. इनमें से ज्यादातर पत्नी या मां होती हैं. कई महिलाएं अपने पति या बेटे को नयी जिंदगी देने के लिए अपनी जान तक जोखिम में डालने से पीछे नहीं हटती हैं. सर गंगाराम अस्पताल में वर्ष 2011 में 190 मरीजों में गुर्दा प्रत्यारोपण किया गया.

इनमें से 131 मामलों में गुर्दा दान करनेवाली महिलाएं थीं. बीते डेढ़ सालों में गुड़गांव के मेदांता मेडीसिटी में 270 गुर्दा प्रत्यारोपण किये गये. 70 फ़ीसदी से ज्यादा मामलों में दाता महिलाएं थीं. अपोलो अस्पताल दिल्ली के मुताबिक, उसने 11 सालों में 1400 से ज्यादा प्रत्यारोपण किये.

इसमें 54 फ़ीसदी दाता महिलाएं हैं. जबकि, जिनको गुर्दा लगा, उनमें महिलाएं सिर्फ़ 22 फ़ीसदी हैं. अपोलो के एक प्रवक्ता ने बताया कि जुलाई 2000 से लेकर अब तक सिर्फ़ 306 महिलाओं में गुर्दा प्रत्यारोपण किया गया है, जबकि पुरुषों के मामले में यह संख्या 1000 से ऊपर है.

समाज-परिवार का दबाव

कई डॉक्टरों से जब इस बारे में बात की गयी, तो वे महिलाओं पर सामाजिक-पारिवारिक दबाव होने और लैंगिक भेदभाव की बात से इनकार नहीं करते हैं. हालांकि अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ प्रत्यारोपण सर्जन डॉ संदीप गुलेरिया कहते हैं कि दबाव की आशंका खत्म करने के लिए दाता का विस्तृत मनोवैज्ञानिक परीक्षण किया जाता है.

डॉ गुलेरिया कहते हैं,‘‘हमने हाल ही में एक अध्ययन किया है कि ज्यादा महिलाएं अंगदान क्यों करती हैं और इसका उनकी जिंदगी पर क्या असर पड़ता है. इसमें हमने पाया कि गुर्दा दान करनेवाली महिलाओं में ज्यादातर मांएं हैं, जो अपने बेटे के लिए अंगदान करती हैं या फ़िर पत्नियां. यह महिलाओं का अपने परिवार के लिए प्यार और त्याग है. ज्यादातर महिलाओं की खुशी इसी में है कि जिसे वे प्यार करती हैं, वह जीता रहे.’’

पुरुष पर निर्भर परिवार

मेदांता इंस्टीटय़ूट ऑफ़ किडनी एंड यूरोलॉजी के अध्यक्ष डॉ राजेश अहलावत कहते है कि अंगदान के लिए पुरुषों को प्राथमिकता इसलिए दी जाती है, क्योंकि उन पर परिवार की निर्भरता होती है. उनसे परिवार का खर्च चलता है. वह कहते हैं,‘‘जब पति या बेटे के लिए बलिदान देने की बात आती है, तो महिलाएं दो बार नहीं सोचती हैं, जबकि पुरुषों के लिए यही बात नहीं कही जा सकती. इसके अलावा अंगदान के लिए महिलाओं पर सामाजिक दबाव भी होता है.’’

दो औरतों ने एक दूसरे के पति को गुर्दा दिया

बेंगलुरू : यह अप्रैल 2011 की बात है. बेंगुलरू की दो महिलाओं ने अपने पतियों की जान बचाने के लिए एक दूसरे के पति को गुर्दा दान किया. केजी रमेश (56) सात सालों से गुर्दे की बीमारी से जूझ रहे थे. वह डायलसिस पर थे. अंतत: उन्हें गुर्दा प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ी. उनकी पत्नी पुष्पलता इसके लिए तैयार थीं. लेकिन ब्लड ग्रुप और अन्य चिकित्सकीय कारणों से उनका गुर्दा पति को नहीं लगाया जा सकता था.

तभी उन्हें पता चला कि मुंबई में भी एक ऐसा दंपती है, जिसमें पत्नी मंजू अपने पति रवि को गुर्दा देना चाहती हैं, पर ऐसा चिकित्सकीय कारणों से संभव नहीं है. इन दोनों दंपतियों ने संपर्क किया. पुष्पलता ने रवि को गुर्दा दान किया और रवि की पत्नी मंजू ने केजी रमेश को. पुष्पलता और मंजू ने अपने पतियों की सलामती के लिए यह फ़ैसला लेने में जरा भी देरी नहीं