Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/गूगल-अर्थ-ने-किया-कमाल-4000-गरीबों-को-दिला-दी-छत-4641.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | गूगल अर्थ ने किया कमाल, 4000 गरीबों को दिला दी छत | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

गूगल अर्थ ने किया कमाल, 4000 गरीबों को दिला दी छत

सांगली. पुणे से ढाई सौ किमी दूर सांगली-मिरज में झुग्गियों में रह रहे चार हजार परिवारों ने अपने घर तोड़ लिए हैं। 29 बस्तियों के इन बाशिंदों को नए मकानों में बसाया जा रहा है।


 

घरों के डिजाइन उनकी रजामंदी से ही बने। न कोई विरोध। न गुस्से का इजहार। ये कमाल हुआ है गूगल अर्थ की बदौलत। झुग्गियों से मुक्ति चाह रहे देशभर के बाकी शहरों के लिए सांगली-मिरज मिसाल बन गया है।


 

पुणो स्थित एनजीओ शेल्टर एसोसिएट्स ने ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) से यह काम किया। देश में पहली बार गूगल अर्थ के जरिए बस्तियों का सीमांकन किया। 78 में से 29 बस्तियां सरकारी जमीन पर अतिक्रमण की शक्ल में सामने आईं।


 

शेल्टर की रिसर्च ने हर घर का ब्योरा कंप्यूटर में फीड किया। तीन साल पहले महाराष्ट्र सरकार को सांगली की यह शक्ल स्क्रीन पर दिखाई गई। इस आधार पर केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने सिर्फ चार हफ्तों में 95 करोड़ रुपए का पुनर्वास प्रोजेक्ट मंजूर किया।


 

अब चुनौती थी झुग्गीवासियों को मनाने की। इससे पहले एक नाकाम कोशिश वाल्मीकि आंबेडकर योजना के तहत सात साल पहले हो चुकी थी। शहर से सात किलोमीटर दूर इन्हें दो हजार घर बनाकर दिए गए।


 

रहने कोई नहीं गया। शेल्टर टीम ने गूगल अर्थ की मदद से शहर के भीतर जमीनें तलाशीं। ताकि किसी को शहर से बाहर न जाना पड़े। झुग्गी वालों से उनकी जरूरतें पूछीं।


 

45 वर्षीय आशा अटनूर सबसे पुरानी झुग्गी बस्ती में बचपन से हैं, जो 1970 में उभरी। अब वे रोज अपने निर्माणाधीन घर का मुआयना करती हैं। आशा ने कहा, ‘यह हमारे सपनों का घर है। हमें उस घड़ी का इंतजार है, जब यहां वापस कदम रखेंगे।’


 

पुणो-सांगली के अफसरों को आश्चर्य है कि सरकारी तंत्र में किसी को यह उपाय क्यों नहीं सूझा। अब यहां सब मान रहे हैं कि शहरों को झुग्गियों से मुक्त करने की यह वैज्ञानिक पहल बेहद कारगर है। शेल्टर की सामाजिक कार्यकर्ता प्रतिमा जोशी लंदन यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर में पोस्ट ग्रेजुएट हैं।


 

1993 में भारत लौटने के बाद सिर्फ गरीबों के बेहतर घरों के लिए उन्होंने शेल्टर की स्थापना की। पुणो के तत्कालीन नगर निगम कमिश्नर रत्नाकर गायकवाड़ ने सांगली-प्रयोग को देखकर देश में पहली बार जीएसआई तकनीक से पुणो की स्लम-डायरेक्टरी बनवाई।


 

जोशी का कहना है कि सारे शहर झुग्गियों के रिकॉर्ड और उनके बेहतर पुनर्वास के लिए इस मॉडल को अपना सकते हैं। बशर्ते ईमानदारी से उन्हें बेहतर घर देने का जज्बा उनमें हो।


 

हर बस्ती, हर घर की अपडेट जानकारियां स्क्रीन पर, झुग्गी माफिया बेअसर


 

ञ्च जीआईएस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल से जमीनी सर्वे व गूगल के नक्शे को जोड़कर स्लम्स की सारी डिटेल्स स्क्रीन पर लाई गई। ञ्च इस तकनीक से तैयार स्लम-डायरेक्टरी एक पारदर्शी रिकॉर्ड।


 

हर बस्ती के हर घर से जुड़े अपडेट आंकड़े स्क्रीन पर। ञ्च रातों-रात नई झुग्गियां जोड़ना नामुमकिन। इसलिए झुग्गी माफिया बेअसर। ञ्च पुणो की 40 फीसदी आबादी स्लम्स में। अब पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए शहर को झुग्गीमुक्त करने की शुरुआत।


 

शहर में ही ठीक से बसा सकते हैं झुग्गीवासियों को


 

झोपड़पट्टियों से कोई शहर अछूता नहीं है। शहरों को इन लोगों की जरूरत है। इन्हें शहर की। इन्हें एक तरफा ढंग से बाहर नहीं कर सकते। कायदे से शहर में ही बसा जरूर सकते हैं। तकनीक इसमें मददगार है। सांगली इसका सबूत है। -प्रतिमा जोशी, सामाजिक कार्यकर्ता, शेल्टर एसोसिएट्स।