Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/गोरखपुर-हादसे-से-लें-सबक-वरुण-गांधी-11825.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | गोरखपुर हादसे से लें सबक-- वरुण गांधी | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

गोरखपुर हादसे से लें सबक-- वरुण गांधी

गोरखपुर के बीआरडी हॉस्पिटल में 7 से 11 अगस्त के बीच साठ बच्चे मर गये. इस झकझोर देनेवाली घटना के लिए कई बातों को जिम्मेदार बताया जा रहा है. खबरों में बताया गया है कि इस अस्पताल में रोजाना इंसेफ्लाइटिलके 200-250 मरीज आ रहे हैं, जिनमें मृत्य दर 7 से 8 फीसदी है. अस्पताल और ऑक्सीजन सप्लायर के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है, इधर राप्ती नदी के तट पर एक मीटर की लंबाई वाली चिताओं का जलना जारी है.

गोरखपुर जिले के स्वास्थ्य और विकास के आंकड़े उत्तर प्रदेश के औसत से ऊपर हैं. गोरखपुर में 12 से 23 माह तक के 65.4 फीसदी बच्चों का पूरी तरह टीकाकरण किया गया है. इसकी तुलना में उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 51.1 फीसदी है.

देश के अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश हेल्थकेयर पर सबसे कम खर्च करता है. यहां दवाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा पर प्रदेश की जीडीपी का मात्र 0.8 फीसदी, यानी 452 रुपये प्रति व्यक्ति खर्च किया जाता है. इसकी तुलना में वर्ष 2014 में उत्तराखंड में 1,042 रुपये में और देश में 647 रुपये खर्च किये गये.

गांवों में प्राइमरी हेल्थ सेंटर पर डॉक्टरों के अनुमोदित पदों में से आधे खाली हैं. भारत में मां-बच्चे के स्वास्थ्य, संक्रमण और गैर-संचारी रोग का गजब का घालमेल है.

यहां 6.3 करोड़ लोगों को डायबिटीज है, जबकि संचारी रोगों से हर साल एक लाख पर 253 मौतें (विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार वैश्विक औसत 178 है) होती हैं. डॉक्टर गिने-चुने हैं. भारत में 6.5 लाख डॉक्टर हैं, जबकि 2020 तक चार लाख और डॉक्टरों की जरूरत होगी.
दशकों तक हेल्थकेयर पर खर्च (सालाना छह खरब रुपये तक) करने के बाद भी देश की हेल्थकेयर प्रणाली न्यूनतम स्वास्थ्य सेवाएं दे पाने में नाकाम है. ऑक्सीजन सिलेंडरों की बात छोड़ दें तो भी अस्पतालों में बेड की उपलब्धता (प्रति हजार आबादी पर 0.9 बेड है, जबकि डब्ल्यूएचओ की सिफारिश के अनुसार कम से कम 3.5 होना चाहिए) बहुत कम है.

12वीं पंचवर्षीय योजना में हेल्थकेयर के लिए 10.7 लाख करोड़ रुपये खर्च का आकलन किया गया था, लेकिन सिर्फ 3.8 लाख करोड़ रुपये आवंटित किये गये और इसमें से भी चौथे साल तक सिर्फ 30,000 करोड़ रुपये खर्च किये जा सके. हमारी आबादी का आकार देखते हुए लग सकता है कि सबको प्राइमरी हेल्थकेयर सेवा के दायरे में लाना आसान नहीं है. हालांकि, ऐसा नहीं है.

चीन का मामला देखें- साल 2008 में, चीन का ग्रामीण हेल्थकेयर सिस्टम बुरे हाल में था. सबसे गरीब 20 फीसद गांवों और कस्बों में प्रसव के दौरान प्रति एक लाख में से 73 महिलाओं की मौत हो जाती थी, जबकि सबसे अमीर 20 फीसद इलाकों में यह आंकड़ा 17 का था. हेल्थकेयर सेवा लगातार महंगी होती जा रही थी.

साल 2009 में चीनी सरकार ने हेल्थकेयर में सुधार के लिए नये उपायों की शुरुआत की. सुधारों में मौजूदा त्रि-स्तरीय ग्रामीण स्वास्थ्य प्रणाली (31 प्रांतों में 2,856 काउंटियों में फैले काउंटी स्तर के अस्पताल, टाउनशिप हेल्थकेयर सेंटर और ग्रामीण क्लीनिक) में सुधार और विस्तार पर जोर दिया गया. साल 2004 से 2011 के दौरान 2.26 अरब युआन ग्रामीण हेल्थ प्रोफेशनल को प्रशिक्षित करने के लिए आवंटित किये गये; साल 2010 तक 16 लाख स्वास्थ्य कर्मचारी काउंटी अस्पतालों में काम कर रहे थे, जबकि 12 लाख टाउनशिप अस्पतालों में.

नतीजा- कस्बों में प्रति हजार की आबादी पर हेल्थ वर्कर का आंकड़ा 1.3 तक पहुंच गया. ग्रामीण स्वास्थ्य बीमा योजना द न्यू रूरल कोऑपरेटिव मेडिकल स्कीम का दायरा बढ़ाकर वर्ष 2011 तक इसके तहत 83.2 करोड़ (ग्रामीण आबादी का 97.5 फीसद)लोग लाये गये. नतीजा- ग्रामीणों द्वारा अपनी जेब से किया जानेवाला खर्च तीन साल में 73.4 फीसद से घटकर 49.5 फीसद पर आ गया.

हेल्थकेयर फाइनेंस को लेकर हमारा नजरिया बदलने की जरूरत है. वर्ष 2020 तक भारत में हेल्थकेयर पर होनेवाला खर्च 280 अरब डॉलर पर पहुंच जाने का अनुमान है. हमारा मौजूदा सिस्टम कर-आधारित फंडिंग की सोच पर खड़ा है, जबकि कुल स्वास्थ्य खर्च का बमुश्किल पांच फीसदी स्वास्थ्य बीमा के दायरे में आता है. वर्ष 2015 में देश में सिर्फ 5 हेल्थकेयर बीमा कंपनियां और 17 जनरल बीमा कंपनियां हेल्थकेयर बीमा स्कीम बेच रही थीं, जबकि इसकी तुलना में यूके में 911 कंपनियां हैं.

सार्वजनिक क्षेत्र में सुधार के लिए अक्सर मुक्त बाजार की हिमायत की जाती है, लेकिन बात जब हेल्थकेयर सेवाओं की हो, तो ऐसा नहीं होता. ज्यादातार विकसित और विकासशील देशों में हाइ कैपेसिटी हेल्थकेयर सिस्टम बनाने की पहल की गयी है, जिसमें पूरे सिस्टम को बनाने-चलाने में सरकार की भागीदारी है.

इसके लिए फंडिंग सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है- टैक्स बढ़ाकर या फिर अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा से इलाज के लिए पैसा जमा किया जाता है. इस पैसे का प्रबंधन आमतौर पर विशाल सरकारी ट्रस्ट, बीमा संस्थान (जैसे कि ओबामा केयर) या कोई एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा संस्था (जैसा कि थाइलैंड में है) करती है. ऐसी व्यवस्थाएं हेल्थकेयर की स्थिति में सुधार ला सकती हैं.

भारत के हेल्थकेयर नीति पर 1946 में आये पहले श्वेत पत्र में एक महत्वाकांक्षी हेल्थकेयर सिस्टम बनाने की बात कही गयी थी, जिसके माध्यम से केंद्र सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का संचालन करेगी, जबकि राज्य सरकारें सहायक भूमिका निभायेंगी. सात दशक बाद भी भारत के सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रम का दायरा सीमित और बिखरा हुआ है.

प्राइमरी और सेकेंडरी हेल्थकेयर की सेवा निम्न स्तर की है और इसका खर्च बढ़ता जा रहा है. भारत को अन्य देशों के कामयाब तरीकों से सीख लेने की जरूरत है. हेल्थकेयर सिस्टम के लिए सेस लगाकर अतिरिक्त फंड जुटाया जा सकता है और जरूरत पड़े, तो तंबाकू व अल्कोहल और खनन कंपनियों पर ज्यादा टैक्स लगाकर मुफ्त दवाओं, जांच और इमरजेंसी केयर के लिए फंड का इंतजाम किया जा सकता है.

सभी राष्ट्रीय और राज्यों की स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को मिलाते हुए उनका फंड एक साथ जोड़ दिया जाना चाहिए, जिसके द्वारा गंभीर बीमारियों के लिए चिकित्सा जांच और हेल्थकेयर बीमा दिया जा सके. इस अनिश्चित समय में, सस्ती और समय पर मिलनेवाली हेल्थकेयर हर भारतीय नागरिक का मूल अधिकार होना चाहिए.