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ग्राउंड रिपोर्ट: सूखे बिहार में इस बार का छठ “पर्व” जैसा नहीं है, क्यों?

'नहाय-खाय' के साथ रविवार से छठ का पर्व शुरू हो चुका है. छठ की परंपरा के अनुसार 'नहाय-खाय' के दिन से ही व्रत करने वाले चार दिनों का अनुष्ठान शुरू करते हैं.

व्रत करने वाले इस दिन जहां संभव होता है गंगा या किसी नदी के जल से या फिर जहां इंतजाम होता है वहां कुंआ अथवा पोखरे के जल से नहाने के बाद लौकी (कद्दु)-चने की दाल की सब्जी और रोटी खाकर खुद को व्रत के लिए शुद्ध करते हैं.

फिर अगले दिन (खरना के दिन) अरवा चावल- गुड़ वाली खीर और रोटी के प्रसाद को सूर्य को चढ़ाने के बाद व्रत करने वाले खुद भी ग्रहण कर छठ का निर्जला उपवास शुरू करते हैं.

भोजपुर के किसान उदय पासवान के यहां भी छठ का पर्व मनाया जा रहा है. लेकिन वे इस बार खुद व्रत नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि, उनकी पत्नी इस बार भी व्रत कर रही हैं.

उदय ने पिछले साल पत्नी के साथ खुद भी छठ का व्रत रखा था.

उदय पासवान कहते हैं, "हम धान पटाने के लिए लाइन लगाए हैं. आज-कल में कभी भी लाइन आ जाएगा. अभी दो बार धान का पटवन (सिंचाई) करना है. यही दो-चार दिन है हाथ में. धान में फर (दाना) लगेगा. सूर्य भगवान की महिमा रही तो अगले साल छठ करेंगे."

भोजपुर के चातर गांव के उदय पासवान ने मालगुजारी पर ज़मीन लेकर ढाई बीघा में धान की खेती की है.

पंद्रह कट्ठे में मक्का भी बोया था लेकिन पानी की कमी के कारण मक्के की फसल खेत में ही सूख चुकी है.

धान की फसल पर पूरे साल का घर टिका था, सूखा होने के बावजूद भी चौदह पटवन देकर धान की फ़सल को बचाए हैं.

पासवान कहते हैं, "जो भी धान अभी बधार में दिख रहा है किसी में सोलह-सत्रह पटवन से कम नहीं लगा है. मेरे पास उतनी पूंजी नहीं थी कि सबकी बराबरी कर सकूं. यहां तो सैकड़ों बीघा फसल खेत में ही सूख चुकी है."


सूखे से ग्रस्त बिहार

ये हाल केवल भोजपुर के किसान उदय का नहीं बल्कि बिहार के लाखों किसानों का है. क्योंकि बिहार में इस साल सूखा है.

सरकार का कृषि विभाग इस सूखे की तुलना 1967 के अकाल से कर चुका है. अगर सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो कुल 38 जिलों में से 24 जिले सूखाग्रस्त घोषित किए जा चुके हैं. करीब 276 प्रखंडों इस सूखे की चपेट में हैं.

15 अक्तूबर को बिहार कैबिनेट ने बिहार को सूखाग्रस्त राज्य घोषित कर दिया.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने थोड़े ही दिनों पहले एक सभा में किसानों को संबंधित करते हुए कहा था कि, "खेत में सूखी फसल को खेत में ही छोड़ दें, जब तक कि सर्वे नहीं हो जाता. उसी फसल के आधार पर फसल सहायता योजना की राशि मिलेगी."

भोजपुर के गांवों में एक तरफ उजड़े खेत दिखते हैं तो दूसरी तरफ सूने खलिहान.

उदय जिस जगह बैठ कर बात कर रहे थे वहां पिछले साल इस समय में भरा-पूरा खलिहान लगा था,

उदय बताते हैं, "इस बार मकई खेत में ही सूख गई. धान अभी तक खेत में है. और ये सब हुआ है इस साल हुई सामान्य से बहुत कम बारिश के कारण. एक तो पहले मानसून दगा दे गया. और जब आया भी तो छटांक भर बरसकर रह गया. हम लोग हथिया (नक्छत्र) से आस लगाए मगर वो भी बिना बरसे निकल गया. एक बार मानसून के चले जाने के बाद फिर कभी बारिश नहीं हुई. अब तो स्वाति भी बीत चुकी है. जो होना था हो गया."