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ग्रामीण भारत को ‘मेगा पुश’- प्रमोद जोशी

मोदी सरकार ने चार राज्यों के चुनाव के ठीक पहले राजनीतिक जरूरतों का पूरा करनेवाला बजट पेश किया है. इसमें सबसे ज्यादा जोर ग्रामीण क्षेत्र, इंफ्रास्ट्रक्चर, रोजगार और सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों पर है. राजकोषीय घाटे को 3.5 प्रतिशत रखने के बावजूद सोशल सेक्टर के लिए धनराशि का इंतजाम किया गया ोहै. अजा-जजा उद्यमियों के लिए प्रोत्साहन कार्यक्रम भी इसका संकेत देते हैं. 

बजट का संदेश है कि अमीर ज्यादा टैक्स दें, जिसका लाभ गरीबों को मिले. हालांकि सरकार ने पूंजी निवेश के लिए प्रोत्साहन योजनाओं की घोषणा की है, लेकिन कॉरपोरेट जगत में कोई खास खुशी नजर नहीं आती. 

इस बजट से बड़े आर्थिक सुधारों से जुड़ी घोषणाओं की आशा भी थी, लेकिन ऐसा कुछ नजर नहीं आया. सरकार ने ‘बैंकरप्सी कोड' का जिक्र किया है, लेकिन इस सत्र के दूसरे चरण में पता लगेगा कि इस विधेयक का, और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण जीएसटी विधेयक का क्या होता है. 

वित्तमंत्री ने इस बार काला धन निकालने के लिए जो माफी घोषणा की है, उसके भी बड़े परिणाम सामने आ सकते हैं. वित्त मंत्री के भाषण के दौरान सेंसेक्स में गिरावट होती रही. हालांकि, बाद में कुछ सुधार हुआ, पर यह देश के कॉरपोरेट जगत की मनोदशा को नहीं बताता. यह बात विदेशी निवेशकों के बारे में कही जा सकती है. 

बजट का लब्बो-लुवाब है खेती और ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर. आधार कार्ड, खेती और मनरेगा इस सरकार के भी मूलाधार हैं. अगले छह वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों की आय दोगुनी करने और 2018 तक हरेक गांव का विद्युतीकरण करने की योजनाएं ध्यान खींचती हैं. मनरेगा के लिए 38,500 रुपये अब तक की सबसे बड़ी राशि है. इसके साथ प्रधानमंत्री सड़क योजना में 19 हजार करोड़ रुपये इसको आगे बढ़ाते हैं. यानी ग्रामीण विकास के लिए कुल 87,765 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. 

एक तरह से यूपीए सरकार के बजटों की सीरीज का ही हिस्सा मानें या ‘गरीबी हटाओ बजट' कहें, तो गलत नहीं होगा. सरकार ने सबसे बड़ा निवेश इसी इलाके में किया है. उसे उम्मीद है कि देहाती मांग बढ़ने पर ही अर्थव्यवस्था में जान आयेगी. लेकिन, यह भी सच है कि इसमें ग्रामीण इलाके के लोगों को कुछ भी मुफ्त में देने की बात नहीं है. साथ ही सब्सिडी को क्रमशः कम करते जाने और केवल गरीबों तक उसे पहुंचाने और उसे लाभार्थी के बैंक एकाउंट से जोड़ने की रणनीति है. 

इस बजट को इस साल के रेल बजट के साथ भी पढ़ा जाना चाहिए. बजट में रेलवे व सड़क परिवहन पर कुल 2.18 लाख करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की गयी है. सड़कों के लिए 97 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान है. 

10 हजार किमी के राष्ट्रीय राजमार्ग के विस्तार की योजना है. इसके समानांतर करीब 50 हजार किमी के स्टेट हाइवे का विस्तार भी होगा. यह कार्यक्रम भविष्य की व्यापारिक गतिविधियों के लिए रास्ता बनाने के अलावा ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के रास्ते भी खोलेगा. 

ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ सरकार डिजिटल साक्षरता के लिए भी पैसा लगाने जा रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुंच बनाने के पहले इस तथ्य पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि देश के 16.8 करोड़ ग्रामीण परिवारों के पास कंप्यूटर नहीं है. वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि हमने ग्रामीण भारत के लिए डिजिटल साक्षरता मिशन शुरू करने की योजना बनायी है, ताकि अगले तीन साल में करीब छह करोड़ अतिरिक्त परिवारों को इसमें शामिल किया जा सके. इस योजना का ब्योरा अलग से दिया जायेगा. 

इन बातों के बावजूद, बजट को पूरी तरह ग्राम केंद्रित मानना भी गलत होगा. सरकार ने एफडीआइ नीति में कुछ बदलावों की घोषणा इस बजट में की है. इस तरफ मीडिया का ज्यादा ध्यान नहीं गया है. इंश्योरेंस, पेंशन और शेयर बाजार में विदेशी निवेश को और ज्यादा उदार बनाया गया है. फूड प्रोसेसिंग उद्योग में सौ फीसदी एफडीआइ की घोषणा शहर और गांव दोनों को प्रभावित करेगी. 
देहाती इलाकों में फल और सब्जियां उगानेवाले किसानों को इसके सहारे एक नया बाजार मिलेगा. चालू वित्त वर्ष में देश में एफडीआइ में 40 फीसदी की बढ़त हुई है. बाजारों को सातों दिन खोलने की पहल है, जिसे लागू तो राज्य करेंगे, लेकिन केंद्र ने इसकी पहल की है. इससे रोजगार बढ़ेंगे और कारोबार भी. 

अगले तीन वर्ष में एक करोड़ युवाओं को कुशल बनाने की योजना है. इसके लिए 15,000 बहु कौशल प्रशिक्षण संस्थान खोले जायेंगे. अगले दो वर्षों में 62 नवोदय विद्यालय खोलने की योजना भी है. 

सस्ती दवाओं की 3,000 दुकानें खुलेंगी. यह शहरी और ग्रामीण गरीब दोनों के लिए राहत की योजना है. इसी तरह गरीबों के रसोई गैस के लिए 2,000 करोड़ की राशि आवंटित की गयी है, जो शहरी और ग्रामीण दोनों गरीबों के जीवन को बेहतर बनायेगी. हालांकि, इस बार आयकर स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया है, पर छोटे करदाताओं को कुछ राहत मिली है. 

पांच लाख तक की सालाना आय वालों को 3 हजार रुपये की अतिरिक्त छूट मिली है. साथ ही आयकर में छूट के लिए मकान भत्ते को 24 हजार से बढ़ा कर 60 हजार कर दिया गया है. पहली बार 50 लाख तक की कीमतवाले मकान खरीदने पर 50 हजार की छूट मिलेगी. दूसरी ओर एक करोड़ की आय वाले लोगों पर सरचार्ज बढ़ा दिया गया है.

कालेधन को बाहर निकालने के लिए सरकार एक और कोशिश करेगी. एक जून से 30 सितंबर तक अघोषित आय सामने लानेवालों को 45 फीसदी टैक्स लगा कर माफी दे दी जायेगी. ब्लैक मनी निकालने की स्कीम फ्लॉप रही थी, जिसमें केवल 3,770 करोड़ रुपये सामने आये थे. 

बहरहाल सरकार का संदेश है कि अमीरों को ज्यादा टैक्स देना चाहिए. महंगी कारों और डीजल कारों पर अतिरिक्त टैक्स लगा कर आय बढ़ाने के साथ-साथ टैक्स का आधार बढ़ाने की कोशिश भी की गयी है. 

इस बार की आर्थिक समीक्षा से ही अनुमान लग गया था कि बजट में सरकार आयकर में छूट की सीमा नहीं बढ़ायेगी. सर्वे में कहा गया था कि टैक्स नेट में अभी 5.5 फीसदी कामगार आते हैं और जरूरी है कि आनेवाले वर्षों में इनकी संख्या बढ़ा कर 20 फीसदी की जाये. इस लिहाज से संभावनाएं काफी हैं.