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ग्रीष्मकालीन धान फसल का नहीं होगा बीमा, दलहन-तिलहन को वरीयता

कोरबा। रबी फसल के तहत ग्रीष्म धान को प्रधानमंत्री बीमा योजना में इस वर्ष शामिल नहीं किया गया गया है। किसानों को बुआई में इसका लाभ नहीं मिल सकेगा। रबी पुसल के लिए 39 हजार हेक्टेयर क्षेत्राच्छादन का लक्ष्य तय किया गया है। सिंचित व असिंचित क्षेत्र में गेहूं के अलावा दलहन-तिलहन के साथ आलू बुआई को वरीयता दी जा रही है। उक्त पुसलों को लिए प्रधानमंत्री बीमा योजना के तहत ऋणी व अऋणी दोनों तरह के किसानों को बीमा लाभ दिया जाना है। बीमा योजना के तहत एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया को नामांकित किया गया है।


बीमा योजना के तहत किसानों से ली जाने वाली प्रीमियम व क्षति की स्थित में किए जाने वाले भुगतान के बारे में जानकारी दी जा रही है। ग्रीष्म धान को बीमा योजना से हटाए जाने के पीछे शासन की यह मंशा है कि किसान ग्रीष्म में धान की खेती की बजाय दलहन-तिलहन अथवा सब्जियों की खेती को वरीयता दें। विभागीय अधिकारियों की मानें तो धान उत्पादन में पानी की खपत अधिक होती है। 1 किलो धान उत्पादन में 300 लीटर पानी की खपत होती है। ग्रीष्म के समय पेयजल की मारामारी होती है।


जिन जगहों में खासी तादात में किसान धान की पुसल लेते हैं, वहां भूजल स्त्रोत पर असर होता है। ऐसे में पेयजल आपूर्ति को सुचारू रूप से जारी रख पाना मुश्किल होता है। किसानों को ग्रीष्म धान की बजाय दलहन व तिलहन पुसल लेने का आग्रह किया जाना है। नाममात्र का प्रीमियम तय किया गया है, जिसमें किसानों की पुसल क्षति होने की स्थिति में उन्हें प्रति हेक्टेयर दर से बीमा राशि प्रदान की जाएगी। योजना के प्रचार-प्रसार के लिए आरईओ को निर्देशित किया गया है। 31 दिसंबर अंतिम तिथि बीमा योजना का लाभ लेने के लिए किसान 31 दिसंबर तक आवेदन कर सकते हैं। बीमा कराने के लिए निर्धारित प्रपत्र व आवश्यक जानकारी स्थानीय कृषि विस्तार अधिकारियों से ली जा सकती है। विपरीत मौसम अवस्था के कारण बुआई न होने की स्थिति में बीमित राशि का 25 पुीसदी क्षतिपूर्ति दी जाएगी। यह योजना केवल चना पुसल के लिए है।


प्रधानमंत्री बीमा योजना अंतर्गत रबी पुसल के ग्रीष्म धान को शामिल नहीं किया गया है। धान की बजाय दलहन व तिलहन के तौर पर चना, सरसों के उत्पादन को वरीयता देने के लिए किसानों को प्रेरित किया जा रहा है। इन उत्पादों की क्षति की स्थित में बीमा योजना का लाभ किसान ले सकेंगे। कम पानी में अधिक पुसल लाभ किसानों को मिले, इसके लिए उन्हें जानकारी दी जा रही है।


- डीपीएस कंवर, सहायक संचालक, जिला कृषि विभाग