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घुमंतू जनजातियां लॉकडाउन की मार झेलने वालों में सबसे आगे हैं तो फिर खबरों में क्यों नहीं हैं?

-सत्याग्रह,

सिराज मियां को कुछ दिन पहले यह सूचना मिली कि गुवाहाटी से ट्रेन सेवा शुरु हो गई है. वे भले ही 65 वर्ष के हों लेकिन इस खबर ने जैसे उनके अंदर करंट भर दिया. ‘ये सुनकर मैं एक छोटे बच्चे की तरह खुशी में इधर से उधर घूम रहा था.’ इस खबर को सुनने के बाद उन्होंने और उनके सभी साथियों - आबिद, साहिल, आमिद और शरीफ - ने देर नहीं की. ये लोग जल्दी से अपना सामान पोटलियों में भरने लगे. बेहद सावधानी के साथ. इसकी वजह बताते हुए सिराज मियां कहते हैं, ‘सामान के नाम पर कपड़े-भांडे तो ज्यादा नहीं है हमारे पास, लेकिन लॉकडाउन की वजह से बिक्री हुई नहीं तो बहुत सा मलहम, खुशबू वाला तेल, मंजन और इत्र की शीशियां जरूर हैं. पूरे साल भर की मेहनत है.’ सिराज और उनके सभी साथी इन चीजों को बेचने का काम करते हैं.

लेकिन अब समस्या यह है कि नगांव से 120 किलोमीटर दूर गुवाहाटी जाएंगे कैसे, यातायात की तो कोई सुविधा है नही. आबिद का पिछले साल ही पेट का आपरेशन हुआ है और एक सप्ताह में दूसरी बार पैदल गुवाहाटी जाना उनके साथ-साथ दूसरे लोगों के लिए भी आसान नहीं है.

सिराज कहते हैं कि ‘हमें किसी ने बताया कि नजदीक के चौराहे से एक लौरी वाला सुबह-सुबह दूध लेकर गुवाहाटी जाता है. हमें वो तो नहीं मिला लेकिन एक फटफटिया में बैठकर किसी तरह हम लोग गुवाहाटी स्टेशन पर पहुंच गए. भला आदमी था. हमारी बात सुनकर हमसे किराये का कोई पैसा भी नही लिया.’

लेकिन रेलवे स्टेशन के बाहर इन सभी लोगों को फिर से सन्नाटा ही मिला. ‘जैसे ही हमने अपनी गठरी का बोझ उतारा तभी वहां पुलिस वाले आ गये’ शरीफ कहते हैं. एक सिपाही ने टूटी-फूटी हिंदी में इन सभी से पूछताछ की. इसलिए भी कि सलवार, कमीज, सर पर गोल टोपी और पैरों में जूतियां पहने राजस्थान के कलंदर समुदाय से आने वाले ये लोग भीड़ में भी अलग ही लगने थे. फिर वहां तो कोई था ही नहीं. असम में तेल, मंजन, मलहम ओर इत्र बेचने आये ये लोग पिछले 50 दिनों से नगांव में ही फंसे हुए हैं. पुलिस वालों को ठीक से सिर्फ यह समझ में आया कि ये सभी मुसीबत के मारे हैं. लेकिन इन सभी को वापस भेजने के अलावा कर वे भी कुछ नहीं सकते थे.

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