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घर पहुंच कर भी कम नहीं हो रही बिहारी मज़दूरों की दुश्वारियां

-न्यूजक्लिक,

इस सोमवार को बिहार के जहानाबाद जिले के सरता मध्य विद्यालय में क्वारंटीन में रह रहे मज़दूरों और स्थानीय लोगों के बीच झड़प हो गयी और इस झड़प में ग्रामीणों ने इन मज़दूरों पर रोड़े (पत्थर) चला दिये। इसमें एक प्रवासी मज़दूर अंबिका यादव का सिर फूट गया। बाद में पता करने पर इस झगड़े की वजह यह मालूम हो गयी कि स्कूल में बने उप क्वारंटीन सेंटर पर शौचालय की समुचित व्यवस्था नहीं थी, ऐसे में कुछ मज़दूर शौच करने बाहर निकल गये थे। ग्रामीणों ने इस भय से उन पर पत्थर चलाना शुरू कर दिया कि ये कहीं उनके गांव में कोरोना न फैला दें।

सोमवार को लगभग ऐसी ही घटना जहानाबाद से तकरीबन 400 किमी दूर बिहार के फारबिसगंज स्थित एक अन्य क्वारंटीन सेंटर पर घटी। वहां भी क्वारंटीन सेंटर से शौचालय के लिए निकले प्रवासी मज़दूरों और स्थानीय ग्रामीणों के बीच मारपीट हो गयी। ग्रामीणों ने इन प्रवासी मज़दूरों की लाठी-डंडे से पिटाई कर दी। वहीं मुजफ्फरपुर जिले के अमनौर पंचायत में भी प्रवासी मज़दूरों और ग्रामीणों के बीच झड़प हुई, इसकी वजह यह थी कि ग्रामीण चाहते थे, हर हाल में सभी प्रवासी मज़दूरों का कोरोना टेस्ट कराया जाये।

ये कुछ दृश्य हैं, जो यह बताते हैं कि दो महीने की तकलीफ़ और जोख़िम व परेशानी भरी यात्राओं के बाद पहुंचे बिहार के प्रवासी मज़दूरों को अपने गांव में भी चैन नसीब नहीं है। अमूमन गांव के लोग उन्हें कोरोना का वाहक मान रहे हैं। बिहार के आम लोगों में कुछ दिनों से यह धारणा बन रही है कि इन प्रवासी मज़दूरों की वजह से राज्य में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैलेगा। संक्रमण से अब तक सुरक्षित रहे उनके गांव भी अब तेजी से इसके चपेट में आयेंगे।

लोगों की इस धारणा को उस सरकारी बयान से भी बल मिल रहा है, जिसके तहत पिछले तीन-चार दिनों से पॉजिटिव मरीजों की घोषणा के वक्त अलग से यह बताया जा रहा है कि फलां प्रवासी मज़दूर है।

आज, बुधवार, 13 मई को बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार ने अलग से यह जानकारी दी कि चार मई से 12 मई के बीच बिहार आये 190 प्रवासी मज़दूर कोरोना से संक्रमित पाये गये। यह बताते हुए वे एक तरह से यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि प्रवासी मज़दूरों के बिहार आने की वजह से कोरोना के संक्रमण में राज्य में तेजी आयी है। हालांकि उन्होंने इसके साथ यह नहीं बताया कि इस अवधि के दौरान प्रवासी मज़दूरों के कितने सैंपल लिये गये, आम लोगों के कितने। यह भी नहीं बताया कि अब तक राज्य में 900 से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित हैं, उस लिहाज से पिछले एक हफ्ते में राज्य में पहुंचे एक लाख 33 हजार से अधिक प्रवासी मज़दूरों के मुकाबले संक्रमित लोगों की संख्या बहुत अधिक नहीं कही जा सकती।

एनएपीएम के समन्वयक महेंद्र यादव कहते हैं, दरअसल बिहार सरकार शुरुआत से ही प्रवासी मज़दूरों की जिम्मेदारी लेने से हिचक रही थी। वह चाहती थी कि ये मज़दूर इस संकट के दौरान वहीं रहें, जहां वे काम करते हैं। जब ये किसी से तरह आ गये तो अब अपने फ़ैसले को जस्टिफाई करने के चक्कर में राज्य में यह संदेश दे रही है कि इन मज़दूरों की वजह से बिहार में कोरोना बढ़ रहा है। जबकि यही वे मज़दूर हैं, जिनके मेहनत मजदूरी के पैसे से बिहार जैसा गरीब राज्य आ किसी तरह जी रहा है। गांव थोड़े समृद्ध दिखते हैं। ऐसे में इन विपरीत परिस्थिति में सरकार और समाज को इन मज़दूरों के साथ भावनात्मक रूप से खड़ा होना चाहिए था। गांव पहुंचने पर इनका स्वागत होना चाहिए था कि इतना दुख काट कर गांव आये हैं। मगर यहां भी उन्हें दुत्कारा जा रहा है, उन्हें कोरोना की उपाधि दी जा रही है।

महेंद्र यादव की बातों की सत्यता का पता इन्हीं आंकड़ों से चलता है कि पहली मई से शुरु हुए श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से 12 मई तक बिहार पहुंचने वाले मज़दूरों की संख्या महज एक लाख 33 हजार थी। इन ग्यारह दिनों में सिर्फ 115 रेलगाड़ियां बिहार आयीं। जबकि इसी अवधि में मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में चार लाख से अधिक मज़दूर आ चुके हैं। खुद राज्य सरकार ने जानकारी दी है कि राज्य के 30 लाख से अधिक मज़दूरों ने इस लॉक डाउन में उनसे मदद की मांग की है। अगर इसी रफ्तार से राज्य में मज़दूर आते रहे तो सभी मज़दूरों को आने में पूरा साल लग जायेगा। कई दूसरे राज्यों ने मज़दूरों को भेजने के लिए अधिक संख्या में ट्रेनों के परिचालन का प्रस्ताव बिहार सरकार को दिया, मगर सरकार एक बार में अधिक संख्या में मज़दूरों को बुलाने के पक्ष में नहीं थी। 

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