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घर में भी नहीं, तो कहां सुरक्षित हैं बेटियां - सभाषिनी सहगल अली

बदायूं का नाम वर्षों तक एक भयानक तस्वीर के साथ जुड़ा रहेगा-एक पेड़ की डाल पर टंगी दो लड़कियों की लाश। पिछड़े वर्ग की दो चचेरी बहनों के साथ हुए बलात्कार और हत्या के आरोपी ही नहीं, लड़कियों के घरवाले की मदद से इन्कार करने वाले पुलिसकर्मी भी उसी जाति के थे, जिस जाति के प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। क्या इसलिए उन्हें किसी का डर नहीं था?

काफी हंगामे के बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया, और फिर नई सच्चाइयां सामने आने लगीं। लड़कियों के साथ बलात्कार हुआ ही नहीं था। बड़ी लड़की की बातचीत आरोपी लड़कों में से एक के साथ मोबाइल पर होती रहती थी। उस दिन रात को भी घर से निकलने से पहले बात हुई थी। लड़की अपनी बहन के साथ दूसरे दिन मेला देखने जाने वाली थी, तो वह शौच के बहाने घर से निकली और लड़के से मिली। मगर इस बार दोनों लड़कियां पकड़ी गईं और फिर मार दी गईं। अंतर्जातीय संबंध की सजा दोनों लड़कियों को उनके ही परिजनों ने दी।

जालौन में इससे विचित्र घटना घटी। दो लड़कियों की लाशें सड़क किनारे नाली से निकाली गईं। एक दंपति ने उनकी शिनाख्त करते हुए कहा कि लाशें उनकी दो बेटियों की है। उन्होंने आगे बताया कि बड़ी लड़की को कुछ लोग इसके पहले भी उठाकर ले गए थे। उन्होंने पुलिस में शिकायत की, पर कुछ हुआ नहीं। लड़की वापस आ गई और फिर दोनों उठा ली गईं। लाशों को लेकर दंपति सड़क पर बैठ गए। कुछ दिन बाद पता चला कि वे दोनों लड़कियां गाजियाबाद में अपने प्रेमियों के साथ रह रही हैं। बताया जा रहा है कि ये लाशें दूसरी दो लड़कियों की थीं, जो अपने प्रेमियों के साथ जाना चाहती थीं, पर उनके परिजनों ने उनकी हत्या कर दी।

सबसे ज्यादा बवाल मेरठ की घटना को लेकर हुआ। मेरठ के एक ऐसे गांव की लड़की ने, जिसमें हिंदू और मुस्लिम की आबादी बराबर है, थाने में रिपोर्ट लिखाई कि उसका अपहरण हुआ, सामूहिक बलात्कार हुआ और जबर्दस्ती उसका धर्म-परिवर्तन किया गया। इससे देश के तमाम हिस्सों में सांप्रदायिक तनाव व्याप्त हो गया। मामले की सच्चाई का पता प्रशासन तो नहीं लगा पाया, पर जब लड़की खुद घर से भागकर पुलिस और न्यायालय की शरण में आई, तो परत खुलती चली गई। परिवार के डर से उसने झूठ बोला और अब जब परिवार को सच का पता चल गया था, तो उसके डर से उसे सच बोलना पड़ा। वह एक मुस्लिम लड़के से प्यार करती थी, पर परिजनों के डर से उसने उसे जेल भेज दिया; अब डर ने उसे इस नतीजे पर पहुंचा दिया था कि उसे उसके साथ हुए अन्याय को खत्म करना होगा।

उत्तर प्रदेश की इन घटनाओं ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या जो बलात्कार पीड़ित हैं, उनके बयान सच माने जाएंगे? क्या लड़की-लड़कों के सांविधानिक अधिकारों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सरकारें निभाएंगी? क्या आपसी संबंधों को लेकर धर्म और जाति के नाम पर राजनीतिक गोलबंदी करने वालों के हौसले और बुलंद होंगे? और अगर लड़कियां अपने घर में भी सुरक्षित नहीं हैं, तो आखिर उनको सुरक्षा कहां मिलेगी?

(लेखिका माकपा की पूर्व सांसद हैं)