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चाइनीज राखियों से तबाह हो रहा घरेलू कुटीर उद्योग

आयातित राखियों से सरकार को खास आमदनी नहीं हो रही है, क्योंकि एक कंटेनर माल को दिखाया जाता है महज कुछ सौ डॉलर का
अगर सही इम्पोर्ट ड्यूटी व टैक्स चुकाया जाए तो चीन की राखियां काफी महंगी पड़ेंगी, लेकिन ये मंगवाई जाती हैं अंडर इनवाइस पर
राखी का कोई स्पेसिफिक रेट नहीं, इसलिए कस्टम वाले भी कुछ नहीं कर सकते हैं

इस बार आप जब राखी खरीदने बाजार जाएंगे तो कुछ ज्यादा ही फैशनेबल और रंग-बिरंगी, कार्टून करेक्टर से सजी राखियां देखने को मिलेंगी। देखने में चटखदार ये राखियां न सिर्फ बच्चों को आकर्षित कर रही हैं, बल्कि बड़ेे भी इसके आकर्षण से नहीं बच पा रहे हैं।

चीन से आ रही ये राखियां भले ही लोगों को आकर्षित कर रही हों, लेकिन इससे जहां एक तरफ हमारा घरेलू उद्योग तबाह हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ यह हमारे चालू खाता घाटे (सीएडी) रूपी आग को बढ़ाने में भी घी का काम कर रही है।

कस्टम क्लियरिंग का काम करने वाले एक कारोबारी ने बताया कि इस बार तो रिकॉर्ड मात्रा में राखियों का आयात हुआ है। राखियां सबसे ज्यादा मुंबई स्थित जेएनपीटी में आई हैं, जबकि कोलकाता के बंदरगाह पर भी इसके कुछ कंटेनर आए हैं। इससे सरकार को कितनी आमदनी हो रही है, इस सवाल पर वह बताते हैं कोई खास नहीं क्योंकि एक कंटेनर माल को महज कुछ सौ डॉलर का दिखाया जाता है।

चूंकि राखी का कोई स्पेसिफिक रेट नहीं है, इसलिए कस्टम वाले भी कुछ नहीं कर सकते हैं। इस पर कुल मिला कर 33 फीसदी का पीक रेट लगता है। तब भी बाजार में खुदरा में ये 10 रुपये से लेकर 75 रुपये की दर से बेची जा रही हैं। वहीं, दूसरी ओर कन्साइनमेंट में जो रेट दिखाया जाता है वह प्रति राखी महज 2 से 50 पैसे के बीच बैठता है।

अब नजर डालें इसके काले पक्ष पर। राखियां बनाने के लिए भारत में कोई कारखाना नहीं है बल्कि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता एवं कुछ अन्य शहरों में ये थोक बाजार की आसपास की बस्तियों और मोहल्लों में बनाई जाती हैं।

रक्षा बंधन से दो महीने पहले लोग बाजार से कच्चा माल ले आते हैं और उसे बना कर फिर उसी दुकान पर दे आते हैं। बदले में उन्हें मजदूरी मिल जाती है। वैसे तो अब भी ऐसा हो रहा है, लेकिन इसकी संख्या घट गई है।

चांदनी चौक के एक आयातक ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि चीन से आई राखियां फैंसी होती है, इसलिए वे हाथों-हाथ बिक जाती हैं जबकि यहां बनी राखियां देखने में वैसी नहीं रहती हैं और दाम भी ज्यादा रहता है।

चीन की राखियां क्यों सस्ती पड़ती हंै, इस पर वह बताते हैं कि अगर सही इम्पोर्ट ड्यूटी और टैक्स चुकाया जाए तो ये काफी महंगी पड़ेंगी, लेकिन ये अंडर इनवाइस पर मंगवाई जाती हैं। मतलब यह कि 10 रुपये के माल को चार आने का दिखा पर उसी पर कस्टम ड्यूटी लगाई जाती है।

इससे सरकारी खजाने को भी चूना लगता है और आयात में विदेशी मुद्रा भी खर्च होती है। कस्टम से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि राखी को आमतौर पर ट्वायज एंड गेम्स प्रोडक्ट हेड में आयात किया जाता है जिस पर 10 फीसदी कस्टम ड्यूटी, 1 फीसदी लैंडिंग चार्ज, 12 फीसदी सीवीडी, 3 फीसदी सेस, 3 फीसदी एजुकेशन सेस और 4 फीसदी एसएडी लगाया जाता है।

यदि कोई व्यक्ति 100 डॉलर मूल्य की राखी आयात करता है और उस पर 10 डॉलर शिपिंग चार्ज और 10 डॉलर इंश्योरेंस लगता है तथा एक डॉलर की कीमत 60.69 रुपये मानें तो उस पर कुल 2232.47 रुपये की कस्टम ड्यूटी भी लगेगी। लेकिन सही मूल्य घोषित नहीं करने से ड्यूटी का बोझ कम हो जाता है।