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चीनी पर आयात शुल्क की मांग

नई दिल्ली  :  चीनी की कीमतों के 50 रुपए प्रति किलो का स्तर छूने के कुछ हफ्तों बाद ही उद्योग ने जल्द से जल्द खाने योग्य चीनी पर 60 फीसदी आयात शुल्क लगाने के लिए लामबंदी शुरू कर दी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्ची चीनी के दाम सात महीने के निचले स्तर तक गिरने की वजह से चीनी उद्योग में चिंता पैदा हो गई है।

वैश्विक दाम में गिरावट से यह साफ हो गया था कि आने वाले दिनों में चीनी की खुदरा कीमतें निचले स्तरों पर ही रहेंगी। पिछले साल के मध्य में चीनी पर आयात शुल्क शून्य कर दिया गया था और इसे इस साल दिसंबर तक इतने ही स्तर पर रखने का फैसला किया गया ताकि आयात बढ़ाकर कीमतों में नरमी लाई जा सके।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्ची चीनी के दाम सप्ताह भर में 30 डॉलर गिरे हैं। पिछले कुछ हफ्ते में इसकी कीमतों में 20 फीसदी की कमी आई है। विदेशी बाजार में चीनी की कीमतों में कमजोरी का असर घरेलू बाजार पर देखने को मिल रहा है। वैश्विक कीमतों के समर्थन और सरकार की ओर से दाम नियंत्रित करने के लिए उठाए गए कदमों की वजह से भारत में चीनी की खुदरा कीमत जनवरी 2010 के मुकाबले 23 फीसदी कम हो चुकी है।

शुरुआत में संकेत मिल रहे थे कि चीनी की जरूरतें पूरी करने के लिए भारत काफी हद तक वैश्विक बाजार से आयात पर निर्भर करेगा। इस वजह से दाम बढ़ गए थे। हालांकि बाद में घरेलू स्तर पर उत्पादन में जोरदार सुधार और कड़े उपायों की वजह से बाजार में पर्याप्त चीनी उपलब्ध होने का अनुमान हुआ। इसका सीधा मतलब था कि आयात पर निर्भरता कम होना और इस कारण दामों में गिरावट दर्ज की गई।

2010-11 के लिए घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति 2.6 करोड़ टन रहने की उम्मीद है। यह सालाना घरेलू उपभोग से 20 लाख टन ज्यादा है। इसका मतलब यह हुआ कि आने वाले साल में भारत को आयात पर कतई निर्भर नहीं रहना होगा।

आगामी वर्ष में भारत के आयात पर कम निर्भर रहने के संकेतों की वजह से वैश्विक बाजार में कारोबारियों और सट्टेबाज काफी सतर्क हो गए हैं। इसके अलावा दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक मुल्क ब्राजील में भी इस बार गन्ने की बढि़या फसल की उम्मीद है, जिससे चीनी की कीमतों पर और दबाव बढ़ेगा। वहां पेराई का सीजन मार्च-अप्रैल 2010 में शुरू होना है। भारत में गन्ने की पैदावार भी बेहतर होने का अनुमान है, जिससे कीमतें और गिरेंगी।

इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के एक अधिकारी ने कहा, 'हमने सरकार से जल्द से जल्द कच्ची चीनी पर आयात शुल्क दोबारा लगाने की मांग है, क्योंकि हमारा वजूद ही दांव पर लगा हुआ है। कांडला बंदरगाह पर 30,000 रुपए प्रति टन पर चीनी की डिलीवरी हो रही है, लेकिन खरीदार नहीं मिल रहे। वैश्विक कीमतें भी टूट रही हैं, जो मुनाफे के चक्र के अंत का संकेत है।'