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चीनी पर सरकारी नियंत्रण चाहते हैं किसान, आयात शुल्क बढ़ाने के पक्ष में सरकार

नई दिल्ली। चीनी की कीमतों को स्थिर रखने के लिए किसान संगठन चीनी को सरकारी नियंत्रण में लाने की मांग कर रहे है वहीं सरकार आयात शुल्क में बढ़ोतरी की वकालत कर रही है। केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान और गन्ना किसानों के प्रतिनिधियों की बुधवार को अहम बैठक हुई है, जिसमें खाद्य मंत्रालय ने जहां चीनी पर लगने वाले आयात शुल्क को 25 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी करने की वकालत की है वहीं किसान संगठन चीनी को फिर से सरकारी नियंत्रण में लाने की बात कही। किसान संगठनों का मानना है कि बाजार में चीनी रिलीज करने के लिए मैकेनिज्म नहीं है जिससे कीमतों में गिरावट आई है।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी. एन. सिंह ने बैठक में किसानों के हितों की रक्षा के लिए कुल 6 सुक्षाव दिए है। उन्होने कहा कि अगर गन्ना भुगतान में देरी होती है, तो किसानों को ब्याज मिलना चाहिए। सिंह ने कहा कि अगर चीनी की कीमतें 2500 रुपए तक भी फिसल जाती है तो भी मिलें भुगतान कर सकती है। क्योंकि मिलों को सिर्फ 240 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से भुगतान करना है। उन्होने कहा कि सच्चाई यह कि चीनी कंपनियों को नुकसान नहीं हो रहा है। कंपनियां अपने शेयरधारकों डिविडेंट दे रही है और किसानों का बकाया चुकाने के लिए पैसा नहीं।
किसानों की क्या है मांग
बैठक में किसान नेताओं ने सरकार से गन्ने का उचित लाभकारी मूल्य (एफआरपी) बढ़ाने की मांग की है। साथ ही सब्सिडी मिलों के माध्यम से नहीं, बल्कि सीधे किसानों को देने पर जोर दिया। इसके अलावा चीनी के आयात पर लगने वाले शुल्क को बढ़ाकर 50 फीसदी करने की मांग की है। इसके अलावा कीमतों में स्थिरता के लिए बफर स्टॉक बनाने की भी मांग सामने आई है।
गुरुवार को गन्ना उत्पादक राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक
खाद्य मंत्रालय ने गन्ना किसानों की समस्‍याओं के समाधान के लिए सभी 13 गन्ना उत्पादक राज्यों के मुख्यमंत्रियों की गुरुवार को बैठक बुलाई है। गन्ना किसानों की खराब आर्थिक हालत को सुधारने के लिए गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, ओडिशा व छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री शामिल होंगे।
किन राज्‍यों में क्‍या है बकाया भुगतान की स्थिति
पासवान ने कहा कि देश भर में मिलों पर गन्ना किसानों के 19,400 करोड़ रुपए बकाया हैं। इसमें उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की देनदारी 9,716 करोड़ रुपए है। वहीं, पिछले साल के बकाया भुगतान को मिला लिया जाए तो देश भर में चीनी मिलों पर कुल बकाया 21,000 करोड़ रुपए से भी अधिक हो गया है। इसमें उत्तर प्रदेश की अकेले देनदारी 10,000 करोड़ रुपए की है। जबकि महाराष्ट्र में यह बकाया 2,864 करोड़ रुपए और कर्नाटक में 2,402 करोड़ रुपए है।
138 चीनी मिलों में पेराई हो चुकी है बंद
देश भर में पेराई सीजन समाप्त होने से पहले ही सौ से अधिक चीनी मिलों ने पेराई बंद कर दी है। 31 मार्च तक 530 मिलों से 138 मिलों में पेराई बंद हो चुकी हैं, जबकि 392 मिलों में पेराई हो रही है। सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 41 चीनी मिलों ने पेराई बंद कर दी है। वहीं, महाराष्ट्र में 36, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 26-26 और कर्नाटक में 10 मिलों में पेराई बंद हो गई है।
ग्लोबल मार्केट में 7 साल के निचले स्‍तर पर हैं भाव
अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें सात साल के निचले स्तर पर आ गई हैं। वहीं देश में उत्पादन खपत से ज्यादा है। जिसके कारण भारत के पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में एक्स-मिल चीनी की कीमतें 2,100-2,200 रुपए प्रति क्विंटल पर आ गई हैं। वहीं, उत्तरी राज्यों में यह कीमत 2,300-2,400 रुपए प्रति क्विंटल है। कीमतों में आई गिरावट के कारण मिलें गन्ना किसानों को एफआरपी का भुगतान करने में भी सक्षम नहीं हैं।
चीनी उत्पादन की स्थिति
31 मार्च 2015 तक देश में चीनी का उत्पादन 28.41 लाख टन बढ़कर 247.20 लाख टन पहुंच गया है। पिछले साल इसी अवधि में 218.79 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार इस देश में 2.6 करोड़ टन चीनी उत्पादन की संभावना है, जबकि पिछले साल 2.44 करोड़ टन उत्पादन हुआ था।