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चीनी महिलाएं, आधे आकाश में-- राजीव रंजन

खुले बाल, हवा के संग लहराते, बेरोक-टोक. ऐसा लगता है जैसे चीनी महिलाओं की स्वच्छंदता और आकाश की नयी ऊंचाईयों को छूने की दास्तां हो. बेबाक हंसी और ठिठोलियां. अपनी पसंद और मर्जी से प्यार और शादी. मर्दों के संग कंधा से कंधा मिलाकर खेतों में, घरों में, आॅफिसों या कंपनियों में, हर जगह दस्तक देती नजर आ रही हैं चीनी महिलाएं! ऐसा नहीं कि ये सब रातोंरात हो गया हो. प्राचीन चीन में महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी. छोटे पैर खूबसूरती का पैमाना था इसलिए सभ्रांत घरों में लड़कियों के पांव को बांधा जाता था. पर यह पैर बांधना कष्टदायक और गतिविधियों को नियंत्रित करती थी.

कन्फ्यूशियस ने चीनी समाज और संस्कृति को अभूतपूर्व रूप से प्रभावित किया है. उन्होंने महिलाओं को पुरुष की अपेक्षा कम महत्व दिया, जिसका स्त्रीवादी पुरजोर विरोध करते हैं. उन्होंने कहा कि नीच पुरुष और महिला के साथ रहना दुश्वर है, संबंध अच्छा हो तो सिर पर बैठ जायेंगे और खराब हुआ तो घृणा करेंगे. नीच यहां जाति नहीं है.

एक बार जब राजा वू (चऊ वंश) ने कहा कि उसके मंत्रीमंडल में दस बुद्धिमान मंत्री हैं, तो कन्फ्यूशियस ने कटाक्ष किया- कितना कठिन हैं दस बुद्धिमान खोजना. आशय था कि कन्फ्यूशियस ने एक महिला मंत्री को बुद्धिमान स्वीकार ही नहीं किया.

मंसिउस (मंगजी) ने ‘पांच संबंध'- पिता-पुत्र प्रेम, राजा-प्रजा कर्तव्य, पति-पत्नी में अंतर, बूढ़े को युवा से सम्मान और दोस्ती में विश्वास की चर्चा की. पिता-पुत्री का प्रेम या पति-पत्नी का प्यार नहीं, बल्कि अंतर को रेखांकित किया.

सोंग वंश के काल में स्त्रियों ने पढ़ना-लिखना शुरू किया. ली छिन्ग्चाओं, सोंग वंश की महान कवयित्री थीं. वहीं ‘लाल हवेली के सपने' या ‘पत्थर की कहानियां', जो चीन के चार महान उपन्यासों में से एक हैं, की नायिकाएं शिक्षित और कवयित्रियां थीं.

चीनी गणतंत्र की स्थापना के बाद महिलाओं की हालत में काफी सुधार आया है. माओ त्सेदोंग ने महिला सुधार के लिए कई प्रयास किये, कहा कि ‘महिलाएं आधा आकाश में हैं'. कुरीतियों पर रोक लगायी, विवाह कानून में बदलाव, महिलाओं को कामगारों की श्रेणी में प्रवेश और पुरुष-स्त्री को बराबर का दर्जा देकर सामंतवादी-पितृसत्ता को नष्ट करना चाहा. हालांकि पुत्र की इच्छा हर चीनी दंपत्ति को रहती है. साल 2015 में लिंगानुपात हर 100 औरत पर 113 आदमी का था.

ऐसा भी नहीं कि चीनी महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी है, पर चीन में महिलाओं का सशक्तिकरण हुआ है, इसमें कोई दो राय नहीं है. हालांकि, चीन के विकास ने कुछ बुराइयों को भी जन्म दिया है.

‘लेफ्टओवर विमेन' एक नयी समस्या के रूप में उभरा है. शिक्षा और नौकरी की तलाश में लड़की की उम्र बढ़ती चली जाती है और लड़के बड़ी उम्र और ज्यादा सफल लड़की से शादी करने में कतराते हैं. या लड़कियां शादी नहीं करना चाहतीं. चीनी समाज इसको लड़कियों की गलती मानकर उसे ‘लेफ्टओवर वीमेन' कहता है. चीन में बहुविवाह की प्रथा कम्यूनिस्टों ने समाप्त कर दी. पर आर्थिक विकास और शहरीकरण ने तलाक और विवाहेतर संबंधों में काफी इजाफा किया है. सुप्रीम पीपुल्स कोर्ट के आंकड़े कहते हैं कि 1.4 मिलियन तलाक के मामले 2016 और 2017 में दर्ज किये गये, जिनमें दो-तिहाई से ज्यादा केस महिलाओं ने दर्ज करवाये. यानी महिलाएं अपनी मर्जी से शादी तोड़ भी रही हैं.

चीन की राजनीति अब भी महिला समावेशी नहीं है. भागीदारी बढ़ी है, पर राजनितिक शक्ति पूर्णत: नहीं आयी है. हालांकि, अभी तक कोई महिला चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वशक्तिशाली पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति का सदस्य या पार्टी का जनरल सेक्रेटरी नहीं बन पायी है.


चीन के इतिहास में भी केवल एक महारानी, वू च-थियन हुई, जिसने एक सम्राट की तरह राज किया. वैसे भी एक-दो सभ्रांत महिला के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बनने से अगर महिला सशक्त होती, तो दक्षिण एशिया में उनकी यह हालत नहीं होती.

अक्तूबर 2017 में कम्युनिस्ट पार्टी के 19वें राष्ट्रीय कांग्रेस में 2287 प्रतिनिधियों में 551 स्त्रियां थीं, महज 24.1 प्रतिशत. लेकिन कोई भी पार्टी के सात सदस्यीय पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति में नहीं चुनी गयीं. वहीं चीन की विधायिका, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में महिला प्रतिनिधियों की संख्या पहले की अपेक्षा बढ़ी है.

नेशनल पीपुल्स कांग्रेस ही चीन का राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कांग्रेस की स्थायी समिति का अध्यक्ष, सुप्रीम कोर्ट का प्रेसिडेंट आदि चुनती है.

आश्चर्य यह है कि चीन में स्त्रियां जहां कंपनियों का नेतृत्व कर रही हैं, वहीं राजनितिक रूप से अब भी हाशिये पर हैं. 31 राज्यों में केवल तीन में स्त्रियां गवर्नर हैं और एक भी महिला राज्य की पार्टी सेक्रेटरी नहीं है. वहां पार्टी सेक्रेटरी का पद गवर्नर से ज्यादा शक्तिशाली है.


निष्कर्ष यह है कि कम्युनिस्ट और आर्थिक विकास ने कहीं हद तक स्त्रियों को समाज में एक न्यायोचित दर्जा हासिल करने में मदद की, तो वहीं यह भी लगता है कि कन्फ्यूशियसिज्म-पितृसत्तात्मक समाज ने अब भी महिलाओं को पुरुष के समकक्ष स्वीकार नहीं किया है. नहीं तो स्त्रियां आज राजनीतिक शक्ति में बराबरी से शिरकत कर चीन के आधे आकाश को धारण करतीं.