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चुनावी चंदा: राजनीतिक दलों की आय बढ़ी लेकिन टैक्स और RTI से बाहर

500-1000 रुपये के पुराने नोट बंद होने के बावजूद राजनीतिक पार्टियों को पुराने नोटों को बैंकों में जमा करने कर इनकम टैक्स नहीं लगेगा। आईटी ऐक्ट, 1961 के सेक्शन 13A राजनीतिक दलों को टैक्स से छूट प्राप्त है। इसके अलावा राजनीतिक दल सूचना का अधिकार (आरटीआई) के दायरे में भी नहीं आते हैं। हालांकि, पिछले दस सालों में राजनीतिक दलों की आय में करोड़ों रुपये का इजाफा है। इसी साल एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा चुनाव 2004 और लोकसभा चुनाव 2014 के बीच राजनीतिक दलों को मिले चंदे में 478 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।

भले ही नोटबंदी के बाद सरकार डिजिटल ट्रांजेक्शन पर जोर दे रही है लेकिन साल 2004 से 2015 के बीच हुए विधानसभा चुनावों में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को 2,100 करोड़ रुपये चंदा मिला, जिसका 63 फीसदी हिस्सा कैश से आया था। इसके अलावा पिछले तीन लोकसभा चुनावों में मिले फंड में 44 फीसदी हिस्सा कैश का ही था।

10 सालों में 478 फीसदी बढ़ी राजनीतिक दलों की आय

इसी साल मई में आई एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 2004 के लोकसभा चुनाव में 38 राजनीतिक दलों ने 253.46 करोड़ रुपये चंदा एकत्र किया जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों की कुल आय 1463.63 करोड़ रुपये रही। 2004 के लोकसभा चुनाव में 42 दलों ने हिस्सा लिया था जबकि 2014 में यह आंकड़ा बढ़कर 45 हो गया। इसके अलावा 2009 के लोकसभा चुनाव में 41 राजनीतिक दलों ने चंदे के रूप में 638.26 करोड़ रुपये एकत्र किए।

चुनावी ट्रस्टों ने बीजेपी को दिया सबसे ज्यादा चंदा

इसी साल अप्रैल में आई एडीआर के रिपोर्ट के अनुसार साल 2014-15 में चुनावी ट्रस्टों ने 177.55 करोड़ चंदे के रूप में कमाए हैं और उनमें से 177.40 करोड़ अलग-अलग राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में दिया है। इन ट्रस्टों से सबसे ज्यादा चंदा 111.35 करोड़ बीजेपी को मिला है, कांग्रेस को 31.65 करोड़ फिर एनसीपी को 6.78 करोड़, बीजू जनता दल को 5.25 करोड़, आम आदमी पार्टी को 3 करोड़, इंडियन लोक दल को 5 करोड़ और अन्य दलों को कुल मिलाकर 14.34 करोड़ मिले हैं। गौरतलब है कि राजनीतिक दलों और कंपनी के बीच चंदे के लेन-देन में पारदर्शिता लाने के लिए 2013 में सरकार ने कंपनियों के द्वारा चुनावी ट्रस्टों को बनाने की अनुमति दे दी थी। इस नियम के अनुसार इन ट्रस्टों को जितना भी चंदा मिलेगा, वह उसका 95 प्रतिशत राजनीतिक दलों को देंगे।

चेक से कम और कैश से ज्यादा चंदा

2004 से 2015 के बीच हुए 71 विधानसभा चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों ने कुल 3368.06 करोड़ रुपये जमा किया था, इसमें 63 फीसदी हिस्सा कैश से आया। वहीं 2004, 2009 और 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में चेक के जरिए सबसे ज्यादा चंदा (1,300 करोड़ यानी 55%) इकट्ठा किया गया जबकि, 44 फीसदी राशि 1,039 करोड़ रुपये कैश में मिले। 2004 और 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान क्षेत्रीय दलों द्वारा चुनाव आयोग को जमा किए गए चुनावी खर्च विवरण के अनुसार समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, शिवसेना और तृणमूल कांग्रेस को सबसे ज्यादा चंदा मिला है और इन्हीं दलों से सबसे ज्यादा खर्च किया है।

पिछले तीन लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय दलों में समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल और शिरोमणि अकाली दल को सबसे ज्यादा चंदा मिला है और इन्हीं दलों ने सबसे ज्यादा खर्च भी किया है।

20 हजार रुपये तक के चंदे का कोई हिसाब नहीं

भारत में पंजीकृत 1,900 से ज्यादा राजनीतिक दलों में से 4,00 ने कभी कोई चुनाव ही नहीं लड़ा है। नोटबंदी के बाद कालेधन पर निगाह जमाए सरकार की निगाह अब इन पंजीकृत दलों पर है। आपको बता दें कि राजनीतिक दलों को चुनाव के दौरान 20 हजार रुपये तक के चंदे का हिसाब नहीं देना होता है। 2013 में आई एडीआर के एक रिपोर्ट के अनुसार राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली 75 फीसदी रकम का स्त्रोत अज्ञात है। राजनीति से जुड़े जानकारों का मानना है कि इसी प्रावधान का फायदा उठाकर कई दल अपने कालेधन को सफेद कर सकते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी का भी कहना है कि आयोग में पंजीकृत डमी राजनीतिक दल कालाधन को सफेद करने का जरिया हो सकते हैं।

आरटीआई कानून के दायरे में नहीं आती राजनीतिक पार्टियां

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई जिसमें बीजेपी, कांग्रेस, वाम दलों समेत सभी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को 'सार्वजनिक संस्था' घोषित करते हुए उन्हें आरटीआई कानून के दायरे में लाने की मांग की गई थी। इस पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने से उनके सहज संचालन पर असर पड़ेगा। साथ ही सरकार ने कहा कि इससे राजनीतिक विरोधियों को बुरे इरादों के साथ जानकारियां हासिल करने का हथियार भी मिल जाएगा। पिछले कुछ सालों से लगातार राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने की मांग चल रही है।