Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/चुनावी-प्रक्रिया-में-परिवर्तन-जरूरी-शरत-कुमार-10333.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | चुनावी प्रक्रिया में परिवर्तन जरूरी--- शरत कुमार | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

चुनावी प्रक्रिया में परिवर्तन जरूरी--- शरत कुमार

हम सौभाग्यशाली हैं कि देश की चुनाव प्रक्रिया ही कार्यकारी राजनीतिक शक्ति का एक मात्र मार्ग है. हाल के साफ-सुथरे चुनावी परिणाम इसका सबूत हैं. हालांकि, चुनावी-प्रक्रिया में अनेक सुधारों के बावजूद आज भी आम जनता की राय में चुनावी प्रक्रिया देश की मूल खराबियों का मुख्य कारण है, जैसे कि सरकारी खजाने की चोरी, कालेधन की अपार महत्ता आदि. इन सब से जनता का चुनावी पद्धति और व्यवस्था में विश्वास घटता है. दो वर्ष पहले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त लिंगदोह ने कहा था, ‘हमारी चुनावी-प्रक्रिया हमारे राजकीय कोष की एक खुली और व्यापक लूट है.' स्पष्ट है कि चुनावी प्रक्रिया में संरचनात्मक सुधार आवश्यक है. लेकिन स्वार्थ में नेता इस बात से कन्नी काटते हैं.

चुनाव में जीतना कम समय में धन कमाने का सर्वश्रेष्ठ व्यवसाय बन गया है. हर चुनाव के बाद आपराधिक पृष्ठभूमि के सांसदों और विधायकों की संख्या बढ़ती जा रही है. पार्टियां पुन: सत्ता में आने के लिए ऐसे लोगों को टिकट देती हैं, जो सत्ता-लालसा में कुछ भी करने को तैयार होते हैं. एक सच यह भी है कि ‘व्हिप' (चाबुक) के माध्यम से संसद में वोट देने का कंट्रोल पार्टी के एक या दो शीर्ष नेताओं के हाथ में ही रहता है. यानी संसद द्वारा बनाये गये कानून, जो पूरे देश पर लागू होते हैं, सिर्फ 8-10 नेताओं द्वारा तय किये जाते हैं. 

आज की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों में कोई अंदरूनी ‘डेमोक्रेसी' नहीं है. एक और बड़ा सवाल है चुनाव लड़ने के लिए अपार खर्च करने की बन गयी अनिवार्यता. यह एक खुला सच है कि चुनाव में खर्च की गयी वास्तविक लागत और चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित चुनाव खर्च की सीमा में जमीन-आसमान का फर्क है. यानी कानून बनानेवाले सांसद सरासर झूठे हिसाब बना कर कानून तोड़ते हैं, तो फिर अचरज नहीं कि वे अपने संसद काल में क्या कुछ करते हैं! 

चुनाव हमारे प्रजातंत्र और सत्ता का मूल स्रोत है और इसमें रचनात्मक सुधार लाये बिना व्यापक रूप से फैले भ्रष्टाचार को नहीं रोका जा सकता. चुनाव प्रक्रिया में परिवर्तन के मुख्य बिंदु- 

1. ऐसी कानूनी व्यवस्था बनाना जिसके मुताबिक अपराधी और दबंग किस्म के लोग किसी भी तरह से चुनाव न लड़ सकें. 
2. ऐसा कानून बनाना, जिससे सामाजिक सेवा भाव करनेवाले प्रतिष्ठित लोग, जो चुनावों में खड़े होना चाहें, चुनाव जीत सकें. 
3. चुनाव लड़ने और चुनाव प्रचार से संबंधित अनेक आर्थिक खर्चों, श्रम और समय को कम करने की व्यवस्था बनाना. 
4. उपलब्ध तकनीकी साधनों की समीक्षा और उपयोग करना, जो उपरोक्त बिंदु तीन को सफल बनाने के लिए आवश्यक हैं. 
5. हमारे देश में चौदह सौ रजिस्टर्ड राजनैतिक पार्टियां हैं. इन पार्टियों के अस्तित्व का क्या मकसद है और क्यों इनका रजिस्ट्रेशन रद्द करने का अधिकार चुनाव-अयोग के पास नहीं है. 
6. चुनाव आयोग द्वारा रजिस्ट्रेशन का कानून 1969 में बना और उसके बाद से इसमें कोई संशोधन नहीं किया गया है. सवाल है कि निर्वाचन आयोग इस विषय में क्या कर सकता है और अब तक इस विषय में क्या किया गया है. 

इस बात को समझना भी आवश्यक है कि पिछले अनेक वर्ष में चुनाव-आयोग, प्रख्यात देशवासियों, और सरकार की अपनी कमेटियों ने भी चुनाव कानूनों के विषय बहुत सी अच्छी सलाहें दी थीं. 

लेकिन तत्कालीन सरकारों में से किसी ने भी इन सलाहों पर कोई कार्रवाई नहीं की. शायद केवल इसलिए कि वर्तमान कानूनों के चलते रहने में ही उच्च अधिकारी वर्ग और राजनीतिक नेताओं का स्वार्थ निहित था. यह भी देखना आवश्यक है कि अधिकतर वर्तमान कानून आदि तभी बदले जाते हैं जब गैर राजनीतिक आम लोग दबाव बनाते हैं. 

निर्भया के रेप में भी जब विद्यार्थियों ने जोरदार रूप से प्रदर्शन किया तभी सरकार सात दिन में चार्जशीट दाखिल करने (पुलिस इस काम के लिए दो महीने चाहती थी), और ‘फास्ट ट्रैक कोर्ट' द्वारा इस मुकदमे का फैसला करवाना तय किया था. लोकपाल बनाये जाने का मामला (चाहे जिस किसी भी रूप में वह बनाया गया) भी अन्ना हजारे के आंदोलन के कारण ही तय हुआ था.

उपरोक्त परिदृश्य में यह आवश्यक है कि गैर-राजनीतिक नागरिक समूह बनाये जायें, जो समय-समय पर चुनाव-प्रणाली सुधारों की अत्यावश्यकता पर पक्के सुझाव बनायें. और फिर इन पर उचित कानून बनाने के लिए नागरिक दबाव बनायें. नागरिक समूहों द्वारा बनाये सुझाव उचित सोच-विचार और तर्कशीलता पर आधारित होने चाहिए. सदा यह उचित उद्देश्य होना चाहिए कि नागरिक समूह अधिकारी वर्ग, चुनाव-आयोग और राजनीतिक नेताओं से लगातार सौहार्दपूर्ण संपर्क बनाये रखें, जिससे कि परिवर्तन के लिए उचित कानून बने.

(लेखक आइएमटी गाजियाबाद के पूर्व डायरेक्टर और प्रबंधन संबंधी पुरस्कृत पुस्तक ‘माइंड योर मैनेजमेंट' के लेखक हैं)