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छत्तीसगढ़-- फीस जमा करने में देर की तो स्‍कूल से काट दिया बेटी का नाम

सूरज यदु. राजनांदगांव। बालिका शिक्षा के लिए खोले गए शहर के पदुमलाल पुन्‍नालाल बख्शी स्कूल ने फीस जमा करने में देर करने पर नौंवी कक्षा की छात्रा दिलेश साहू का नाम ही काट दिया है।

छात्रा ने अपने पिता की बीमारी के चलते खुद को समय पर फीस जमा करने में अक्षम बताते हुए जल्द ही शुल्क जमा करने का भरोसा भी दिलाया था। इसके बाद भी स्कूल प्रबंधन ने नियमों के साथ मानवीयता को दरकिनार कर छात्रा को स्कूल से निकाल दिया। अब बच्ची को स्कूल से निकाल देने की जानकारी मिलने के बाद बीमार पिता जैसे-तैसे बिस्तर से उठकर उच्‍चाधिकारियों के कार्यालयों में अर्जी विनती करते भटक रहा है।

समय मांगा पर नहीं माने

शहर के श्रमिक बहुल सागर नगर में रहने वाली छात्रा दिलेश पिता रामसुख साहू बीते तीन सालों से बख्शी स्कूल में ही पढ़ाई कर रही है। दिलेश के पिता रामसुख छोटी सी वेल्डिंग दुकान में काम कर अपना घर चलाते हैं। रामसुख बीते डेढ़ माह से अस्वस्थ्य होने के चलते काम पर नही जा पा रहे हैं। जिसकी वजह से वे अपनी बच्ची की फीस भी जमा नहीं कर पाए हंै। दिलेश ने पिता के बीमार होने की जानकारी भी स्कूल प्राचार्य को दी थी। इसके बाद भी स्कूल प्राचार्य ने मजबूर परिवार के लिए बगैर कोई वैकल्पिक व्यवस्था किए सीधे उसका नाम ही खारिज कर दिया।

कमजोर होने का हवाला

पूरे मामले में बख्शी स्कूल के जिम्मेदारों का पक्ष है कि स्कूल की फीस वैसे तो 30 जुलाई तक जमा करना अनिवार्य होता है। बच्ची का शिक्षा का स्तर भी काफी कमजोर था। इसलिए उसके फीस की व्यवस्था के लिए भी कोई रास्ता नहीं था। स्कूल ने फीस जमा करने तीन दफे बच्चें के घर में पत्र भेजा था, लेकिन कोई भी घर से स्कूल नहीं पहुंचा। इस बीच बच्ची भी नियमित रूप से स्कूल नहीं पहुंच रही थी। जिसके चलते नाम काटने की कार्रवाई करनी पड़ी, लेकिन नाम काटे जाने के लिए इन सब कारणों को आधार बनाया जाना उचित नहीं माना जा रहा।

पापा बीमार थे तो नहीं गई

नियमित स्कूल नहीं जाने को लेकर भी 'नईदुनिया" ने जब दिलेश से बात की तो उसने बताया कि पापा के बीमार होने के चलते वो घर पर ही उनकी देखरेख कर रही थी। उुपर से फीस जमा नहीं होने का भी डर उसके मन में बना हुआ था। वह शिक्षकों के डर से रोजाना स्कूल जाने हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, लेकिन स्कूल ने उसकी अनुपस्थिति को ही आधार बनाकर दाखिलें से नाम काट दिया।

प्रावधान की भी अनदेखी

सरकारी स्कूलों में फीस जमा नहीं कर पाने वाले बच्चों के लिए फीस माफी का भी प्रावधान रखा गया है। जिसमें बच्चे के घरेलू स्थिति के आधार पर स्थानीय स्तर पर ही अधिकारी फीस माफी की अनुशंसा कर सकते हैं। इसके अलावा जनभागीदारी से भी बच्चे की फीस जमा करने वैकल्पिक व्यवस्था की जा सकती है, लेकिन पूरे मामले में स्कूल प्रबंधन ने कहीं भी इन प्रावधानों का इस्तेमाल नहीं किया।

एक्सपर्ट व्यू

नाम काटना गलत

सर्व शिक्षा अभियान के तहत हर बच्चें को पढ़ाई का अधिकार दिया जाना है। फीस जमा नहीं होने से नाम काटना गलत फैसला है। स्कूल प्रबंधन के पास बहुत से फंड मौजूद होते हैं, जिसे सामान्य प्रक्रिया के माध्यम से ऐसे ही बच्चे की फीस में उपयोग किया जा सकता है। नाम काटने से इस तरह के बच्चों का मनोबल बुरी तरह प्रभावित होता है।

डॉ. हेमलता मोहबे, शिक्षाविद

सीधी बात

एस.खरे, प्राचार्य, बख्शी कन्या स्कूल

0 क्या दिलेश नाम की किसी बच्ची का नाम स्कूल से काटा गया है?

00 हां, काटा गया था लेकिन अब हमने दोबारा दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

0 नाम क्यों काट दिया गया था?

00 30 जुलाई तक सबका फीस जमा होना रहता है, लेकिन उसकी फीस जमा नहीं हुई थी।

0 तो उसके परिवार से आपने कोई संपर्क किया गया था?

00 हां तीन बार रिमाइंडर भेजा था, लेकिन कोई भी जवाब देने नहीं आया।

0 नाम काटने से पहले आपने किसी उच्च अधिकारी को इसकी जानकारी दी?

00 नहीं, यह तो हमारे हाथ में होता है। न फीस जमा किया जा रहा था, न बच्ची स्कूल आ रही थी।

0 फीस में छूट भी तो दी जा सकती थी?

00 होनहार बच्चों को छूट देते हैं। दिलेश पढ़ाई में पहले ही कमजोर है।

छात्रा के पिता मुझ तक शिकायत लेकर पहुंचे थे। मैंने तत्काल प्राचार्य को दाखिला देने का निर्देश जारी कर दिया है। फीस जमा करने उसके पिता को समय भी दिया गया है।

बीएल कुर्रे, डीईओ