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छत्तीसगढ़ में एक दशक में घट गए सवा फीसदी आदिवासी

रायपुर। छत्तीसगढ़ में पिछले एक दशक में आदिवासियों की सवा फीसदी आबादी घट गई है। आदिवासी बाहुल राज्य में आदिवासियों की सबसे बड़ी चिंता आबादी के घटने को लेकर है। विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी नेता समाज की आबादी को बढ़ाने के लिए प्लानिंग करेंगे।

आदिवासी नेता अरविंद नेताम, माकपा नेता संजय पराते, सोहन पोटाई, श्रवण मरकाम ने विश्व आदिवासी दिवस से पहले इस बात की चिंता जताई कि सरकार और नक्सलियों के कारण समाज को नुकसान उठाना पड़ रहा है। आदिवासी बाहुल बस्तर में वर्ष 2011 की जनगणना में सबसे आदिवासियों की आबादी में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, सुकमा और कोंटा में दो से तीन फीसदी आबादी घटी है।

सामाजिक कार्यकर्ताओं की मानें तो बस्तर में आदिवासियों की आबादी कम होने के पीछे सबसे बड़ा कारण नक्सल समस्या है। माकपा नेता संजय पराते ने बताया कि बस्तर में पलायन के कारण 600 गांव या तो पूरी तरह से खाली हो गए हैं, या फिर एक-दो परिवार ही बचे हैं। ये परिवार कहां गए, सरकार के पास इसकी कोई जानकारी नहीं है। आदिवासी नेता अरविंद नेताम का कहना है कि आदिम जातियां घोर संकट में है।

100 से सवा सौ की आबादी वाली जनजातियों के संरक्षण में सरकार पूरी तरह से फेल है। आदिवासी नेता आरएन ध्रुव ने बताया कि सरकारी कोटा को पूरा करने के लिए आदिवासियों की नसबंदी की जा रही है। इसके कारण तेजी से आबादी में गिरावट दर्ज की गई है। उन्होंने बताया कि सरकारी अफसर संरक्षित जनजातियों की नसबंदी में भी पीछे नहीं हैं।

बस्तर में आदिवासियों के साथ दुराचार, शोषण, हत्या का मुद्दा प्रमुखता से उठेगा। इसके साथ ही आबादी जमीन के पट्टे का मुद्दा भी उठेगा। आदिवासी समाज को आशंका है कि आबादी पट्टे के नाम पर बाहरी लोगों को पट्टा दे दिया जाएगा। सबसे प्रमुख मुद्दा आदिवासियों की स्कालरशिप का है।

आदिवासियों की स्कालरशिप के लिए दो लाख रुपए का क्राइटेरिया तय किया गया है। जबकि ओबीसी और एससी के लिए छह लाख का क्राइटेरिया तय किया गया है। आदिवासी समाज की मांग है कि या तो दो लाख का क्राइटेरिया खत्म किया जाए, या फिर आदिवासियों के लिए भी छह लाख का क्राइटेरिया तय किया जाए।

प्रभावशाली नेताओं को बना रहे राजनीतिक शिकार

समाज के प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि आदिवासी समाज के प्रभावशाली नेताओं को एक-एक करके राजनीतिक शिकार बनाया जा रहा है। सबसे पहले पूर्व मंत्री ननकीराम कंवर, फिर नंदकुमार साय और अब सोहन पोटाई को भाजपा ने किनारे कर दिया। आरोप लगाया जा रहा है कि भाजपा में वही आदिवासी नेता प्रमुख पदों पर हैं, जो समाज के हितों की जगह सत्ता के हितों पर ज्यादा फोकस है। आदिवासी नेताओं का आरोप है कि आदिवासी कोटे से तीन मंत्री हैं, लेकिन वे समाज के मुद्दों को उठाने में रुचि नहीं दिखाते हैं।