Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/छत्तीसगढ़-में-फिर-लहलहाएगी-दुबराज-विष्णुभोग-की-फसल-7383.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | छत्तीसगढ़ में फिर लहलहाएगी दुबराज, विष्णुभोग की फसल | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

छत्तीसगढ़ में फिर लहलहाएगी दुबराज, विष्णुभोग की फसल

दिलीप साहू, रायपुर। दो दशक पहले तक छत्तीसगढ़ की पहचान रहे दुबराज, जवाफूल, बादशाह भोग, विष्णु भोग, चिन्नौर जैसे सुगंधित धान अब विलुप्ति के कगार पर हैं। हाईब्रीड व अधिक उपज देने वाली स्वर्णा, एमटीयू 1010 जैसी किस्मों के विस्तार के साथ परंपरागत क्षेत्रीय सुगंधित धान की किस्में गांवों से ज्यादातर समाप्त हो चुकी हैं। विलुप्त होते ऐसे पारंपरिक सुगंधित धान की 30 से अधिक वेराइटी को फिर से सहेजने का प्रयास किया जा रहा है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कृषि वैज्ञानिक प्रदेशभर के अलग-अलग क्षेत्र से पारंपरिक व गुणवत्ता युक्त किस्मों की पहचान कर उससे फिर से बीज उत्पादन कर रहे हैं।

ऐसे हुई सहेजने की शुरुआत

कृषि वैज्ञानिक डॉ.राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 2010 की गर्मी में ग्राम स्वराज में किसानों के बीच उनकी समस्याओं के निदान के लिए घूमते समय पता चला कि ज्यादातर किसान एमटीयू 1010, 1001, स्वर्णा व महामाया किस्म के धान लगा रहे है, क्योंकि उन्हें परंपरागत सुगंधित धान से ज्यादा लाभ नहीं हो रहा है। इस तरह अधिक उपज देने वाली किस्मों के कारण परंपरागत क्षेत्रीय सुगंधित धान की किस्में ज्यादातर गांवों से समाप्त हो चुकी थीं। केवल कुछ किस्मों को बड़े किसान अपने घर के उपयोग के लिए सीमित क्षेत्र में लगा रहे थे। डॉ.श्रीवास्तव के मुताबिक उन्होंने इसके बाद इन किस्मों के संरक्षण व पुनर्स्थापना के लिए काम शुरू किया। वर्ष 2010-11 में उन्होंने पूरे छत्तीसगढ़ में घूम-घूमकर किसानों से मिलकर सुगंधित धान की 30 से अधिक किस्मों का संग्रहण किया।

गुणवत्तायुक्त किस्मों का बीज उत्पादन

प्रत्येक किस्म का एक-एक बाली का बीज एक-एक पंक्तियों का चुनाव कर उनके बीज को द्विगुणित किया गया। वर्ष 2011 में नौ किस्मों में बिसनी, दुबराज, दुजई, जीराफूल, श्यामजीरा, विष्णु भोग, बादशाह भोग, गोपाल भोग व लोहंदी किस्मों का आठ क्विंटल शुद्ध व द्विगुणित कर कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों को वितरित किया गया। साथ ही अन्य किस्मों में शुद्ध व द्विगुणित करने का काम चलता गया। इस तरह तीन वर्षों में इन 30 किस्मों के 23 क्विंटल धान किसानों को दो-दो किलो के सैंपल पैकेट के रूप में वितरित किया गया।

क्षेत्रवार सुगंधित धान की किस्में

स्थान सुगंधित किस्म

सिहावा-नगरी दुबराज

राजनांदगांव चिन्नौर

अंबिकापुर बिसनी

सूरजपुर श्याम जीरा

पेंड्रा-गोरेला विष्णु भोग, लोहंदी व दुजई

बेमेतरा कुबरी मोहर

जगदलपुर बादशाह भोग व गोपाल भोग

रायगढ़ जीराफूल

पारंपरिक किस्म के फायदे

- उत्पादन के लिए कम रसायनिक खाद।

- एमाईलोज (स्टार्च) की मात्रा अधिक।

- बालियों में छोटा व पतला दाना।

- प्राकृतिक तत्वों की भरपूर मात्रा।

- नई वेराइटियों की तुलना में उत्पादन लागत कम।

- बीजों के लिए बाजार पर निर्भरता नहीं।

पारंपरिक सुगंधित धान की प्रमुख किस्में

सुबंधित धान की प्रमुख किस्मों में कुबरी मोहर, दुजई, लोहंदी, गोपालभोग, जवाफूल, जीराफूल, बिसनी, दुबराज, चिन्नौर, तुलसी मंजरी, कपूरसार, कालिकमोद, आत्मशीतल, जीराधान, शुक्लफूल, इलायची, गंगाबारु, जयगुंडी, अंतरवेद, तुलसीप्रसाद, केरगुल, समुद्रफेन, जौफूल, माई दुबराज, लालू-14, कतरनी भोग, बादशाह भोग, कारीगिलास, ीकमल, तिलकस्तूरी, विष्णुभोग व श्यामजीरा शामिल हैं।

विवि को इसे एक प्रोग्राम की तरह चलाना चाहिए

डॉ.रिछारिया कैंपेन के संयोजक जैकब नेल्लीतनम का कहना है कि डॉ.रिछारिया ने छत्तीसगढ़ में धान की 19 हजार देशी किस्मों की पहचान की थी। इनमें से 1600 देशी किस्मों का चयन कर इसे किसानों के लिए उपयुक्त माना था, लेकिन सरकार व विवि ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। सुगंधित किस्मों को सहेजने का प्रयास अच्छा है। कृषि विवि को सभी देशी किस्मों को किसानों तक पहुंचाने के लिए इसे एक प्रोग्राम की तरह चलाना चाहिए।

सुगंधित धान का समर्थन मूल्य तय हो

कृषि विशेषज्ञ संकेत ठाकुर का कहना है कि छत्तीसगढ़ में सुगंधित धान का मार्केट नहीं है। जीराफुल व दुबराज जैसे चावल यहां 60 से 70 रुपए किलो बिक रहा है। वहीं सरकार इसके धान को पतले धान की ेणी में रखकर करीब 1300 रुपए प्रति क्विंटल खरीद रही है, जबकि इसका वास्तविक मूल्य 2500 से 3000 रुपए प्रति क्विंटल होना चाहिए। इस कारण किसान इसका उत्पादन नहीं कर रहे हैं। वहीं मध्यप्रदेश में कुछ कंपनियां ऐसे धान के किस्मों का उत्पादन कान्ट्रैक्ट बेस पर रहे हैं। इससे किसानों को 2500 से 3000 रुपए प्रति क्विंटल मिल रहा है। यहां भी सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।