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छोटे उद्योग पनपें तो सुधरेगी अर्थव्यवस्था-- भरत झुनझुनवाला

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दावोस में विश्व के निवेशकों को बताया था कि भारत में व्यापार करना अब आसान हो गया है। उन्होंने इस बात के प्रमाण में विश्व बैंक द्वारा ‘व्यापार करने की सुगमता' अथवा ‘इज ऑफ़ डूइंग बिजिनेस' रपट का उल्लेख किया था। लेकिन व्यापार करना आसान होने के बावजूद देश में विदेशी निवेश की मात्रा बढ़ने के स्थान पर घट रही है। अप्रैल से दिसंबर, 2016 की तुलना में 2017 के इन्हीं नौ महीनों में सीधे विदेशी निवेश की मात्रा में चार प्रतिशत की कटौती हुई है। विश्व बैंक कह रहा है कि भारत में व्यापार करना आसान हो गया है लेकिन इसका प्रभाव विदेशी निवेश पर नहीं दिख रहा है। इसका कारण क्या है? कारण है कि विश्व बैंक द्वारा बनाया गया व्यापार करने की सुगमता का सूचकांक भ्रामक है।


विश्व बैंक द्वारा बनाये गए सूचकांक में दस बिंदु लिए गये है। पहला बिंदु है कि भारत में अब टैक्स अदा करना, विशेषकर प्रोविडेंट फंड में धन जमा करना इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से हो रहा है, जो कि टैक्स अदा करने को आसान बनाता है। इसी प्रकार बड़ी कम्पनियों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से कार्पोरेशन टैक्स अदा करना आसान हो गया है। इस बिंदु पर भारत की रैंक 172 से उठकर 119 हो गयी है। दूसरा बिंदु दिवालियेपन का निदान है। भारत सरकार ने दिवालिया कानून बनाया है, जिसमें दिवालिया घोषित करने वाली कम्पनी का शीघ्र निपटारा करने की व्यवस्था है। इस बिंदु पर भारत की रैंक 136 से उठकर 103 हो गयी है। तीसरा बिंदु छोटे निवेशकों की रक्षा है। बड़ी कम्पनियों में छोटे रिटेल निवेशकों को सेबी द्वारा संरक्षण दिया जाता है। इस बिंदु पर भारत की रैंक 13 से उठकर 4 हो गयी है। ये तीनों बिंदु कारगर हैं लेकिन इनका प्रभाव केवल बड़ी कम्पनियों पर होता है। बड़ी कम्पनियों द्वारा ही प्रोविडेंट फंड अथवा कार्पोरेशन टैक्स दिया जाता है। इन्हीं के दिवालियापन पर नया दिवालिया कानून लागू होता है। बड़ी कम्पनियों के ही छोटे निवेशकों को संरक्षण की जरूरत होती है। इन तीनों बिंदुओं में सुधार सच्चा है परन्तु इन सुधारों का छोटे उद्यमियों पर सार्थक प्रभाव नहीं पड़ता।

 

विश्व बैंक द्वारा बनाये गए सूचकांक का चौथा बिंदु ऋण प्राप्त करना आसान हो जाना है। विश्व बैंक ने कहा है कि बैंकों द्वारा दिए गए ऋण की वसूली करना अब आसान हो गया है। संकटग्रस्त कंपनियों की पूंजी में बैंकों द्वारा दिए गए ऋण की वसूली को प्राथमिकता दी जा रही है। इससे बैंकों की ऋण देने में रुचि बढ़ेगी। इस बिंदु पर भारत की रैंक 44 से उठकर 29 हो गयी है। सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम सार्थक है लेकिन साथ -साथ छोटे उद्योगों का कुल ऋण में हिस्सा घट रहा है। वर्ष 2014-15 में बैंकों द्वारा दिए गए कुल ऋण में छोटे उद्योगों का हिस्सा 13.3 प्रतिशत था जो कि वर्ष 2016-17 में घटकर 12.6 प्रतिशत रह गया है।

अर्थ हुआ कि बैंकों की ऋण देने में रुचि का बढ़ना भी केवल बड़े उद्योगों को ही लाभ पहुंचा रहा है। विश्व बैंक द्वारा पांचवां बिंदु बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के नियमों का पालन करने की सुगमता है। इस बिंदु पर भारत की रैंक 185 से उठकर 181 हुई है लेकिन इस बिंदु पर दक्षिण एशिया में अफगानिस्तान को छोड़कर हम बाकी शेष देशों जैसे नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका से पीछे ही हैं। इस बिंदु पर हमारी रैंक में सुधार भी बहुत मामूली हुआ है। इसे निष्प्रभावी ही कहा जा सकता है। विश्व बैंक द्वारा छठा बिंदु किसी अनुबंध के अनुपालन में लगे समय का सुधार है। अपने देश में आप किसी अनुबंध को अनुपालन कराने के लिए कोर्ट में जायें तो उसमें बहुत लम्बा समय लगता है। विश्व बैंक के अनुसार इस बिंदु पर हमारी रैंक 172 से उठकर 164 हो गयी है। लेकिन रैंक में यह सुधार भ्रामक है। विश्व बैंक के अनुसार ही अनुबंध का अनुपालन कराने में पूर्व में 1445 दिन लगते थे, आज भी 1445 दिन ही लगते हैं। यानी अनुबंध के अनुपालन में हमारी जमीनी स्थिति में तनिक भी सुधार नहीं हुआ है। इस बिंदु पर जो रैंक में हमारा सुधार हुआ है, उसका कारण यह दिखता है कि दूसरे देशों में स्थिति बदतर हुई है। अतः जिस प्रकार अंधों में काना राजा होता है, उसी तरह भारत में सुधार न होने के बावजूद भारत की रैंक इस बिंदु पर उठ गयी है।


विश्व बैंक के अनुसार आखिरी चार बिंदुओं पर भारत की रैंक में गिरावट आई है। ये हैं नये उद्योग को शुरू करना, विदेशी व्यापार, प्रॉपर्टी का रजिस्ट्रेशन और बिजली का कनेक्शन लेना।


इस प्रकार, दस बिंदुओं में तीन बिंदु यानी टैक्स अदा करने में सुगमता, दिवालियापन का शीघ्र निपटारा और छोटे निवेशकों की रक्षा, इन तीन बिंदुओं में विशेष सुधार हुआ है लेकिन ये सुधार केवल बड़ी कम्पनियों पर लागू होता है। अगले तीन बिंदुओं पर सुधार संदिग्ध है : ऋण देना आसान हो जाने के बावजूद ऋण की उपलब्धता छोटे उद्योगों को घटी है, कंस्ट्रक्शन परमिट में हम सभी दक्षिणी एशियाई देशों से पीछे हैं और अनुबंध के अनुपालन में अभी भी 1445 दिन ही लगते हैं। अंतिम चार बिंदुओं में विश्व बैंक के अनुसार ही हमारी स्थिति में गिरावट आई है।


अंतिम आकलन है कि सुधार केवल बड़ी कम्पनियों पर लागू होता है। छोटे उद्योगों के लिए परिस्थिति विकट होती गयी है। इन्हें ऋण कम मिल रहा है, कंस्ट्रक्शन परमिट प्राप्त करने में समय पूर्ववत लग रहा है, अनुबंध अनुपालन में समय पूर्ववत लग रहा है, नया उद्योग चलाना कठिन होता जा रहा है, विदेश व्यापार करना कठिन होता जा रहा है, प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन में अब ज्यादा विलम्ब हो रहा है और बिजली का कनेक्शन लेना ज्यादा कठिन हो गया है।


देश की अर्थव्यवस्था मूलतः छोटे उद्योगों द्वारा संचालित होती है। छोटे उद्योगों से ही रोजगार बनते हैं। उसी रोजगार से जनता की क्रय शक्ति बनती है, जिससे बड़े उद्योगों द्वारा बनाये गये माल को जनता खरीदती है। यदि छोटे उद्योगों के लिए व्यापार करना कठिन हो गया है तो अर्थव्यवस्था में ढीलाहट होना तार्किक परिणाम है। सरकार को चाहिए कि छोटे उद्योगों के लिए व्यापार करने की सुगमता में सुधार लाये।

ऐसे में विश्व बैंक की इज ऑफ़ डूइंग रिपोर्ट भ्रामक है। पहला कारण है कि जो भी सुधार हुआ है, वह केवल बड़ी कम्पनियों के ऊपर लागू है। दूसरा कारण है कि छोटे व्यापारियों के लिए व्यापार करना कठिन हो गया है। जैसे बाढ़ में जनता डूब रही हो लेकिन जमींदार के ठिकाने में दीवाली मनाई जा रही हो, ऐसी हमारी स्थिति है। अतः सरकार को विश्व बैंक की इस भ्रामक रिपोर्ट से प्रभावित न होकर छोटे उद्यमियों के लिए व्यापार करना सुगम बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए अन्यथा न तो हमें विदेशी निवेश मिलेगा और न ही हमारी विकास दर में वृद्धि होगी।

लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।