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जंगल की मुठभेड़ किसने देखी ?

हाल ही में चार अगस्त को बस्तर के जंगलों में नक्सलवादियों और छत्तीसगढ़ पुलिस के विशेष दल (एसटीएफ) के बीच मुठभेड़ की असलियत पुलिस दावों से कोसों दूर है. अनिल मिश्रा की रिपोर्ट

जोगा का शवदाह हो चुका है मगर ग्रामीण अब भी सहमें हुए हैं. यह तय कर पाना कि जोगा के संबंध नक्सलियों से थे या नहीं कठिन है मगर फोर्स द्वारा पैसे देकर मुंह बंद करने की कोशिश से कई सवाल खड़े हुए हैं4 अगस्त की सुबह दक्षिण बस्तर के कुटरेम गांव में जब कोया कमांडो पहुंचे तो डर के मारे ग्रामीण घरों में दुबक गए. गांव के कोतवालपारा को एक ओर से फोर्स ने घेर रखा था. जहां फोर्स का एंबुश था वहीं पर कुंजामी हिड़में का घर है. उसने सुना कि एक जवान दूसरे से कह रहा था कि फायरिंग मत करो मगर तभी गोली चली और दर्जनों कोया जवान उस ओर लपके जिधर गोली चली थी. हिड़मे ने बाद में देखा कि जवान गांव के ही एक युवक कुंजामी जोगा को घेर कर खड़े हैं. घायल जोगा मां-मां पुकार रहा था जबकि जवान उसे चुप होने के लिए डांट रहे थे. अगले दिन गांव वालों को पता चला कि जोगा की मौत हो गई है. पुलिस की ओर से बताया गया कि गुमियापाल कुटरेम इलाके में पुलिस और नक्सलियों के बीच जबरदस्त मुठभेड़ हुई है पहली बार पुलिस नक्सलियों का एंबुश तोड़ निकलने में कामयाब रही और इस मुठभेड़ में करीब आधा दर्जन नक्सली मारे गए हैं. पुलिस ने एक नक्सली का शव, 12 बोर की एक बंदूक और दो टिफिन बम बरामद करने का दावा भी करते हैं.

जाहिर है इसे फोर्स की बड़ी कामयाबी माना जाता है. मगर तहलका की टीम जब कुटरेम पहुंची तो पुलिस की कामयाबी पर सवाल उठने लगे. ग्रामीणों ने बताया कि 7 अगस्त को कोया कमांडो की टीम दोबारा वहां गई थी. उन्होंने स्कूल के पास गांव वालों को इकट्ठा किया. फोर्स की मीटिंग में मृतक जोगा की चाची ने बताया कि जवान ग्रामीणों से बहुत प्यार पेश आए. उन्होंने महिलाओं के दल को 6 सौ और पुरुषों के दल को 5 सौ रुपए यह कहकर दिया कि इससे पार्टी मनाओ. बच्चों में बिस्किट व मिक्चर (नमकीन) बांटा व जोगा के पिता के पिता कुंजामी लखमा को दो हजार रुपए दिए.

फोर्स ने ग्रामीणों से कहा कि अगर पत्रकार यहां आए तो उन्हें यह मत बताना कि गोली गांव में चली थी. कोई आए तो कहना कि जंगल में मुठभेड़ हुई थी. ऐसा नही किया तो तुम्हें पकड़कर जेल में डाल देंगे. गांव के स्कूल के पास बिस्किट के खाली खोखे से ग्रामीणों के इस बयान की तस्दीक होती है जोगा के पिता लखमा ने बताया कि वह एक दिन घर में खाना खाता था जबकि दूसरे दिन गांव में ही ब्याही अपनी बहन कड़ती बुधरी के घर. जब फोर्स आई तो वह बुधरी के घर से अपने घर जाने के लिए निकला था. ग्रामीणों के मुताबिक जवानों ने बुधरी के घर से खाट लिया और उसमें डालकर जोगा को ले जा रहे थे तब वह जिंदा था. उसे कमर में एक गोली लगी थी. अगले दिन जब ग्रामीण उसका शव लेने किरंदुल थाने गए तो देखा कि उसके शव पर अंडरवियर के अलावा कोई कपड़ा नहीं था.

जोगा का शवदाह हो चुका है मगर ग्रामीण अब भी सहमें हुए हैं. यह तय कर पाना कि जोगा के संबंध नक्सलियों से थे या नहीं कठिन है मगर फोर्स द्वारा पैसे देकर मुंह बंद करने की कोशिश से कई सवाल खड़े हुए हैं.  पुलिस की माने तो इसकी शुरुआत 28 जुलाई को हुई जब नक्सलियों ने किरंदुल में एस्सार प्लांट से लौह अयस्क की ढुलाई में लगे पांच ट्रकों को आग के हवाले कर दिया. जब तफ्तीश आगे बढ़ी तो पता चला कि कि हिरोली के ग्रामीण इस आगजनी में शामिल थे. कुछ स्थानीय जनप्रतिनिधियों की शिनाख्त के आधार पर ग्रामीणों को गिरफ्तार करने के लिए कोया कमांडो व जिला पुलिस की एक टीम तैयार की गई. 4 अगस्त की सुबह 3 बजे जवान जंगल में घुसे. हिरोली में उन्हें आरोपी ग्रामीण नहीं मिले मगर वहीं मैसेज मिला कि गुमियापाल व कुटरेम के बीच नक्सली कमांडर गणेश उइके की टीम मौजूद है. इसके बाद 120 जवानों में से 40 जवान वापस लौट गए जबकि 80 जवान पैदल बिना उच्चाधिकारियों को सूचना दिए नक्सलियों की तलाश में निकल पड़े. सुबह लगभग 10 बजे दंतेवाड़ा मुख्यालय तक सूचना पहुंची कि जवानों की टीम का आपस में संपर्क टूट गया है.

मूसलाधार बारिश के बीच जंगल में लापता जवानों की खबर आग की तरह फैली व टीवी चैनलों में जवानों के शहीद होने की खबरें आने लगी. इस सूचना के बाद दंतेवाड़ा से दिल्ली तक हड़कंप मच गया. पुलिस अधिकारियों के मुताबिक मदद के लिए अतिरिक्त फोर्स भेजी गई. जवानों ने नक्सलियों को घेर लिया था मगर तभी ऊपर से एक आदेश आया कि राजनैतिक रूप से अब एक भी जवान की शहादत बर्दाश्त नहीं होगी. लिहाजा ऑपरेशन ड्रॉप कर दिया गया. लगभग 18 घंटे बाद फोर्स कुंजामी जोगा का शव लेकर पहुंची. जंगल में क्या हुआ था यह जवान ही बता सकते हैं मगर मुठभेड़ के समय को लेकर अनिश्चितता बरकरार है. पुलिस के अफसरों के मुताबिक मुठभेड़ दोपहर साढ़े 11 बजे से लेकर डेढ़ बजे तक चली जबकि मुठभेड़ में शामिल एक जवान ने बताया कि मुठभेड़ दोपहर तीन बजे शुरू हुई. बहरहाल मूसलाधार बरसात के बीच हुई इस मुठभेड़ की असलियत शायद कभी सामने न आए. मामले की मजिस्टीरियल जांच चल रही है मगर बस्तर में ऐसी जांच का नतीजा क्या होगा बताने की जरूरत नहीं है.