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जचकी होने दो साहब.. पति को बुलवा लूंगी : प्रशांत बहादुरे

नागपुर। समय, सुबह 8 से 9 बजे। मेडिकल अस्पताल के वार्ड 12 का प्रवेशद्वार। नन्हे बच्चे के सहारे द्वार के पास खड़ी महिला प्रसव वेदना को जैसे-तैसे सह रही थी। उसका पूरा जोर इस बात पर था कि अस्पताल के साहब उसकी फरियाद सुन ले।

प्रसव के लिए उसे वार्ड में दाखिला मिल जाये, लेकिन नियम की बाधा उसके समक्ष खड़ी थी। पति की अनुपस्थिति में उसे प्रसव के लिए दाखिला नहीं मिल रहा था। लंबे समय तक भटकने के बाद उसे दाखिला तो मिला गया, पर उसकी फरियाद भरी पुकार अस्पताल में गूंजती रही।

फरियाद कुछ इन शब्दों में कि जचकी हो जाने दो साहब.. पति को भी बुलवा लूंगी।

दरअसल उस महिला का पति जेल में है। सरकारी अस्पताल में प्रसूति के लिए दाखिले के समय पति की उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है। इसी नियम के तहत उस महिला को प्रवेश नहीं मिल रहा था।
32 वर्षीया कुशवंती देशमुख पारडी क्षेत्र के धरमनगर में रहती है।

किस्मत का फेर कुछ यूं रहा कि उसे बेसहाय सा जीवनयापन करना पड़ रहा है। उसका पति महेश देशमुख गर्ममिजाजी है। आवेश में आकर उसने अपनी मां की हत्या कर दी।

कलमना पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया। उसके बाद कुशवंती परेशानियों से घिर गई। अपराधी की संगीनी कहकर उसे सबने ठुकरा दिया। करीबी नाते-रिश्तेदारों ने बातचीत बंद कर दी। लिहाजा, वह छोटे से कमरे में 3 साल के बच्चे के साथ रहने लगी।

गुजारे के लिए वह घरों में बर्तन मांजने का काम करने लगी। गर्भधारण के बाद वह मेडिकल में नियमित जांच के लिए आती रही। उसे सलाह व दवाएं मिलती रहीं। उससे किसी ने पति के बारे में नहीं पूछा।

लिहाजा, प्रसव वेदना बढ़ने पर वह अपने मासूम बच्चे के साथ अस्पताल पहुंच गई। वहां नियम का हवाला देते हुए चिकित्सकों ने भर्ती कराने से इंकार किया तो वह परेशान हो गई। उसने वहां मौजूद अन्य लोगों को अपनी समस्या बतायी, लेकिन किसी ने मदद नहीं की।

बाद में उसने जोर देकर कहा कि पति जेल में है, आवेदन देकर वह पति को भी बुलवा लेगी, लेकिन उसे तुरंत भर्ती कराया जाये। उसकी फरियाद सुनकर कुछ लोगों ने उससे हमदर्दी जतायी, फिर भी उसे भर्ती नहीं कराया जा रहा था। ऐसे में कुशवंती वार्ड 12 के द्वार पर ही बैठ गई। काफी जद्दोजहद के बाद दोपहर करीब 4 बजे उसे भर्ती कराया गया।

छोड़ जाते हैं लावारिस

मेडिकल में ऐसे भी कई प्रकरण आते हैं, जिनमें गर्भवर्ती महिला को छोड़कर उनके परिजन वापस चले जाते हैं। देखभाल के लिए कोई नहीं रहता। लिहाजा नियमों में थोड़ी सख्ती बरती जाती है। पति, पिता या निकटवर्ती रिश्तेदार की उपस्थिति में ही दाखिला दिया जाता है।
राजाराम पोवार, अधिष्ठाता मेडिकल अस्पताल

भास्कर की पहल पर मिला दाखिला

पीड़िता के बारे में दैनिक भास्कर को सूचना मिली। भास्कर ने इस संबंध में मेडिकल के अधिष्ठाता राजाराम पोवार से संपर्क कर उन्हें जानकारी दी। श्री पोवार ने तुरंत अपने अधीनस्थ अधिकारियों को निर्देश देकर महिला को भर्ती कराया।