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जन विरोधी ऊर्जा का उत्पादन मत कीजिए - भरत झुनझुनवाला -

तमिलनाडु में कुडनकुलम में बन रहे परमाणु संयंत्र का स्थानीय जनता विरोध कर रही है. महाराष्ट्र में अल्फ़ांसो आम के क्षेत्र में बनने वाले जैतापुर परमाणु संयंत्र का किसान विरोध कर रहे हैं. ममता बनर्जी ने पूरबा मेदनीपुर में बनने वाले रूसी परमाणु संयंत्र पर रोक लगा दी है. जर्मनी ने निर्णय लिया है कि 2022 तक देश में सभी परमाणु संयंत्र को बंद कर दिया जायेगा. लेकिन, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह परमाणु ऊर्जा के साथ-साथ थर्मल और जल विद्युत के उत्पादन को दृढ़ संकल्पित हैं. प्रधानमंत्री के इस संकल्प को दो प्रकार से समझा जा सकता है. एक यह कि देश के आर्थि‍क विकास एवं आम आदमी को बिजली उपलब्ध कराने के लिए उत्पादन में वृद्धि जरूरी है.

देशवासियों के विस्तृत हित के लिए कुछ स्थानीय दुष्प्रभावों को बर्दाश्त करना ही पड़ेगा. दूसरी संभावना है, आर्थि‍क विकास और गरीब को बिजली महज एक चाल है जिसके पीछे बड़ी कंपनियों को लाभ कमाने के अवसर एवं अमीरों की खपत की पूर्ति की जा रही है. कुडनकुलन संयंत्र के विरोधियों का कहना है कि योजना का पर्यावरण प्रभाव आकलन नहीं कराया गया है. पर्यावरण संरक्षण कानून के अंतर्गत स्वीकृति नहीं प्रदान की गयी है. पर्यावरण स्वीकृति की प्रक्रिया में जन सुनवाई की जाती है, जिसमें प्रभावितों को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है. विशाखापट्टनम यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर शिवाजी राव बताते हैं कि अमेरिका में परमाणु संयंत्रों के लिए निम्न अध्ययन कराना जरूरी होता है- खतरे की संभावना, परमाणु दुर्घटना की स्थिति का विश्‍लेषण, आपातकालीन योजना और दुर्घटना प्रबंधन योजना. भारत सरकार द्वारा इन अध्ययनों को भी नहीं कराया गया है और इस संबंध में जनता की आशंकाओं का निवारण नहीं किया गया है. सवाल है कि यदि आम आदमी का हित ही इन परियोजनाओं का उद्देश्य है, तो उसी आम आदमी की अनसुनी क्यों की जा रही है? कुडनकुलम संयंत्र में रूस में बने वीवीइआर 1000 रिएक्टर लगाये जा रहे हैं. इन रिएक्टरों का पहला उपयोग भारत में होगा. यानी कुडलकुलम का उपयोग इन रिएक्टर के परीक्षण केंद्र के रूप में किया जा रहा है. उद्देश्य यही हो सकता है कि रूसी कंपनी का रास्ता खोल दिया जाये. भारत ने हाल में परमाणु जिम्मेदारी कानून बनाया है. इस कानून के अंतर्गत परमाणु दुर्घटना होने पर मशीन सप्लाई करने वाली कंपनी पर भी घाटे की भरपाई का भार पड़ता है. लेकिन, कुडनकुलम के रूसी सप्लायर इस जिम्मेदारी को स्वीकार नहीं करते हैं. सी कंपनी का कहना है कि उसके द्वारा सप्लाई 2008 में रूसी एवं भारतीय सरकारों के बीच हुए समझौते से नियंत्रित होगी. इस समझौते में दुर्घटना की पूर्ण जिम्मेदारी भारतीय कंपनी की है. इस समझौते को सार्वजनिक नहीं किया गया है, जो सरकार की जनविरोधी मानसिकता का परिचायक है.

प्रधानमंत्री ने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को लिखे पत्र में आश्वासन दिया है कि सरकार संयंत्र की सुरक्षा को संकल्पित है और इसमें कोई ढिलाई नहीं बर्दाश्त की जायेगी. ऐसे ही आश्वासन जापान के फ़ुकुशिमा संयत्र के लिए दिये गये होंगे. इस संबंध में भारत का रिकॉर्ड भी अच्छा नहीं है. 1987 में कलपक्कम के रिएक्टर में ईंधन डालते समय दुर्घटना हो गयी थी, जिससे वह संयंत्र दो वर्षो तक बंद रहा. 1989 में तारापुर में रिसाव के कारण रेडियोधर्मी आयोडीन का फ़ैलाव सामान्य से 700 गुना अधिक पाया गया. 1995 में राजस्थान में रेडियोधर्मी हीलियम का रिसाव राणाप्रताप सागर में हुआ, जिससे यह संयत्र दो वर्ष तक बंद रहा. इसके अलावा, और भी छोटी-छोटी दुर्घटनाएं हुई हैं. नतीजतन, प्रधानमंत्री का आश्वासन विश्वसनीय नहीं है. प्रधानमंत्री को चाहिए था कि संबंधित रपटों को सार्वजनिक करते.

यह स्वीकार करना होगा कि देश में बिजली की मांग बढ़ रही है. इसकी पूर्ति के लिए उत्पादन बढ़ाना जरूरी है. तमाम गांवों में बिजली उपलब्ध नहीं है. पॉवर कट लगातार हो रहे हैं. इस समस्या के लिए प्रधानमंत्री का समाधान है कि बिजली का उत्पादन बढ़ाओ. निश्चित ही हर देशवासी को बिजली चाहिए. परंतु बिजली का उत्पादन इस प्रकार होना चाहिए कि जनहानि न्यून और जनलाभ अधिक हो. प्रधानमंत्री की नीति में समस्या है कि जनहानि अधिक और जनहित न्यून है. जन हानि अधिक है चूंकि रेडियोधर्मी रिसाव ओद से आम आदमी ही ज्यादा प्रभावित होता है. जनहित न्यून है चूंकि उत्पादित बिजली अमीरों के एयर कंडीशन मॉल को या अमीरों की खपत के लिए कार बनाने की फ़ैक्टरी को सप्लाई कर दी जाती है. महाभारत में किसी प्रसंग में पूछा जाता है कि गाय किसकी है? उत्तर दिया जाता है कि गाय न चराने वाले की है, न किसान की है, न दूध के व्यापारी की है. गाय उस व्यक्ति‍ की है जो दूध पीता है, चूंकि देश सभी के कार्य उसके निमित हैं. इसी तरह कुडनकुलम उन लोगों का है, जो इस संयंत्र से उत्पादित बिजली का उपयोग करेंगे.

चेन्नई की फ़ैक्ट्रियों में बनने वाली कार की जो खपत करता है कुडनकुलम उसी का है. देश में वर्तमान में उत्पादित बिजली का केवल दो प्रतिशत ही देश के संपूर्ण गरीबों को 30 यूनिट प्रति माह उपलब्ध कराने को पर्याप्त है. मात्र दो प्रतिशत को गरीब को देने के स्थान पर प्रधानमंत्री जी उत्पादन बढ़ाने में गरीब को और गहरे गड्ढे में ढकेल रहे हैं. कुडनकुलम के पक्ष में दूसरा तर्क वैश्विक स्पर्धा का है. चीन जैसे दूसरे देशों में बिजली का दाम कम होने से विश्व बाजार में उनका माल सस्ता बिकता है. वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए जरूरी है कि हम भी बिजली का दाम न्यून रखें. इसलिए पर्यावरण स्वीकृति न लेना, नये रिएक्टर का परीक्षण करना, दुर्घटना के भार को अपने ऊपर लेना आदि‍ क्षम्य है. यह तर्क स्वीकार्य नहीं है. वैश्वीकरण का अर्थ है कि हर देश को उस देश का अनुसरण करना होगा, जो सबसे अधिक जनविरोधी नीतियां लागू करता है.

यदि चीन में कैदियों से श्रम कराकर सस्ता माल बनाया जाता है, तो हमें भी ऐसा ही करना होगा, नहीं तो उत्पादन लागत ज्यादा आयेगी. वैश्वीकरण के चौखटे में इस समस्या का समाधान उपलब्ध नहीं है. इस समस्या का विकल्प है कि हम वैश्वीकरण की सीमा में बांध दें. वैश्वीकरण का उद्देश्य जनहित है अत जहां वैश्वीकरण जनहानि पैदा करें, वहां उसे सीमित कर देना चाहिए. दूसरे देशों द्वारा जनविरोधी तरीकों से बनाये गये सस्ते माल पर आयात टैक्स आरोपित करके अपनी जनहितकारी अर्थव्यवस्था को टिकाया जा सकता है. प्रधानमंत्री को चाहिए कि ऊर्जा नीति पर मौलिक पुनर्विचार करें. परमाणु, थर्मल एवं जल विद्युत सभी का पूरा देश में जनता विरोध कर रही है. जनता की इस आवाज को एयरकंडीशन माल को बिजली सप्लाई करने के लिए एवं बड़ी कंपनियों को लाभ कमाने के लिए नहीं दबाना चाहिए.

(लेखक जानेमाने अर्थशास्‍त्री हैं.)