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जनता से ऊपर कोई संस्था नहीं - सुभाष कश्यप

न तो संसद और न ही न्यायपालिका सर्वोपरि है. जो लोग यह दलील दे रहे हैं कि संसद सवरेपरि है, वे गलतबयानी कर रहे हैं. हमारे संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और इसकी जनता सर्वप्रधान है. इसके बाद ही किसी का स्थान आता है.

एक लंबी लड़ाई के बाद देश अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुआ. संप्रभु राष्ट्र का दर्जा हासिल करने के बाद देश के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इसे एकसूत्र में पिरोने की थी. देश की जनता को एकजुट रखने और राजकाज सुचारु रूप से चलाने के लिए आजादी के परवानों ने संविधान बनाया. संविधान देश को नियमपूर्वक चलाने का विधान है. इस संविधान में सभी लोगों के लिए कुछ मौलिक अधिकार सुनिश्चित किये गये. यह संविधान देश और जनता का सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और ओर्थक विकास सुनिश्चित करने का प्रमुख साधन है. यह देश की सीमा के अंदर रहने वाले प्रत्येक इंसान को उसके मौलिक अधिकारों का हनन किये बिना खुली हवा में सांस लेने का अधिकार प्रदान करता है. यह संविधान लोगों को अपनी मांगें मनवाने के लिए विरोध करने, धरना, प्रदर्शन आदि की भी छूट देता है. संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और इसकी जनता सर्वप्रधान है. इसके बाद ही किसी का स्थान आता है. अर्थात् संविधान भी दूसरे स्थान पर आता है.

संविधान के अंतर्गत देश में विधि-व्यवस्था बनाये रखने और इसकी रक्षा के लिए तीन संस्थाओं का निर्माण किया गया है. ये हैं - कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका. इन्हें लोकतंत्र के तीन स्तंभ का दर्जा दिया गया है. संविधान में इन तीनों के अधिकार, कार्य और सीमाएं परिभाषित और परिसीमित किये गये हैं. अर्थात संविधान में इनके कार्य, शक्ति‍यां और सीमाएं अलग-अलग निर्धारित हैं. तीनों संस्थाएं अपनी सीमा में रहकर ही फ़ैसले ले सकती हैं. ये अपनी सीमा का अतिक्रमण नहीं कर सकती हैं. संविधान ने इसके लिए लक्ष्मण रेखा खींच रखी है. इस प्रकार न तो संसद और न ही न्यायपालिका सवरेपरि है. जो लोग यह दलील दे रहे हैं कि संसद सर्वोपरि है, वे गलतबयानी कर रहे हैं. संविधान में इस बात के स्पष्ट निर्देश हैं कि कानून बनाने का कार्य और अधिकार संसद के पास है और उनके द्वारा बनाये कानूनों की व्याख्या करने का अधिकार न्यायपालिका के पास है.

संविधान तैयार करने के दौरान तीनों विधायी संस्थाओं के बीच शक्ति संतुलन पर खास ध्यान दिया गया है, लेकिन किसी भी संवैधानिक स्थिति में देश की जनता को सबसे ऊपर रखा गया है. संविधान निर्माताओं का स्पष्ट मानना था कि सर्वशक्तिमान देश की जनता ही होगी. जनता से बढ़कर कोई संस्था नहीं होगी. जनता को सवरेपरि मानने का मुख्य कारण यह है कि संविधान ने शासन के लिए लोकतांत्रिक प्रणाली को अंगीकार किया है. लोकतंत्र में जनता का शासन होता है और जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि राज-काज चलाते हैं. संविधान के प्रावधानों के अनुसार चुने हुए प्रतिनिधियों को प्रत्येक फ़ैसले जनता के परामर्श से और उनके हक में लेने चाहिए. संविधान निर्माताओं की भावना यही थी कि जनता जो चाहेगी, संसद में वही होगा. लेकिन यहां यह स्पष्ट करना जरूरी हो जाता है कि जनता कौन होगी. कुछ मुट्ठी भर लोग जनता नहीं हो सकते हैं.

भले ही संविधान कानून बनाने का अधिकार संसद को प्रदान करता है, लेकिन लोकतांत्रिक प्रणाली में संविधान ने देश की जनता को भी इसके लिए कुछ अधिकार दिये हैं. चुने हुए प्रतिनिधियों को जनता की बातों पर गौर करना चाहिए. जनता की राय की अनदेखी करना असंवैधानिक है. हालांकि कानून के संबंध में अंतिम निर्णय लेने का हक संसद के पास ही है. जनता अपनी मांग और विरोध दर्ज कराने के लिए प्रदर्शन और आंदोलन कर सकती है, लेकिन संसद को मजबूर नहीं कर सकती है. संविधान ने लोगों को यह अधिकार प्रदान नहीं किया है कि वे अपने अनुसार कानून बनाने के लिए सरकार या संसद को मजबूर करे.जहां तक आमरण अनशन की बात है, यह महात्मा गांधी का एक अचूक हथियार था. अंग्रेजों से लड़ने के लिए उस समय ऐसा करना सही था. लेकिन आज देश स्वतंत्र है और लोकतांत्रित देश में आमरण अनशन करना ठीक नहीं है.

आज देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक माहौल बना है. आम लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध हैं. यहां हमें भ्रष्टाचार के कारणों की गहराई से पड़ताल करनी होगी. जन लोकपाल बिल भ्रष्टाचार के कारणों पर ध्यान नहीं देता है. यह जिन लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, उसकी जांच के लिए एक मशीनरी स्थापित करने और भ्रष्टाचारियों को कड़ी सजा देने की बात करता है. लेकिन हमें भ्रष्टाचार के कारणों पर प्रहार करना चाहिए. उसे दूर करने के उपायों को खोजना चाहिए. हालांकि भ्रष्ट लोगों को कड़ी सजा देने का प्रावधान भी होना चाहिए, लेकिन यह इसका एक छोटा भाग है.

हमारी व्यवस्था में कई खामियां हैं. भ्रष्टाचार भी गलत व्यवस्था की ही उपज है. इसे जड़ से मिटाने के लिए गलत व्यवस्था को बदलना होगा, जिसके लिए हमें आंदोलन करना चाहिए. हमें संसद में ऐसे लोगों को आने से रोकना चाहिए, जो जनता के हित की बात नहीं करते हैं. हमें ऐसे लोगों को चुनना चाहिए, जो जनता के हित में कानून बनाना अपना परम कर्तव्य समङों. आज व्यवस्था की खामियों के चलते ही संसद में आपराधिक और भ्रष्ट छवि के लोग पहुंच गये हैं. यदि संसद में सही लोग चुनकर आते तो आज अन्ना हजारे को आंदोलन करने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

साठ वर्ष पहले की तुलना में आज स्थितियां काफ़ी बदल गयी हैं. वर्तमान चुनाव प्रणाली गलत लोगों को जिताने में मददगार है और सही लोगों को संसद में आने से रोक रही है. संसद में बड़े पैमाने पर ऐसे लोग आ रहे हैं, जो सच्चे जन प्रतिनिधि नहीं हैं. सच्चे जनप्रतिनिधि निर्वाचित होकर संसद पहुंचें, इसके लिए हमें सबसे पहले निर्वाचन प्रणाली में सुधार की जरूरत है. जनता के सच्चे प्रतिनिधि संसद में आयेंगे, तब वे जनता की बात करेंगे और तानाशाही रवैया छोड़ जनता को सर्वोपरि मानेंगे. तभी जनता को अपनी मांग मनवाने के लिए आमरण अनशन की जरूरत नहीं पड़ेगी.

(लेखक संविधान विशेषज्ञ हैं)