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जनधन में 'ठन-ठन' गोपाल, वादा निभाने में फिलहाल फेल हुई मोदी सरकार- पीयूष बबेले

लाल किले की प्राचीर से 15 अगस्त, 2014 को पहली बार तिरंगा फहराने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबों के लिए एनडीए सरकार की सबसे बड़ी जनधन योजना की घोषणा की.

28 अगस्त को दिल्ली के विज्ञान भवन में योजना के विधिवत उद्घाटन के मौके पर अपने 26 मिनट और 13 सेकंड के भाषण में मोदी ने कहा , '15 अगस्त के मेरे भाषण की एक बात पर टीवी चैनल और अखबारों ने बहुत ध्यान नहीं दिया. लेकिन एक सज्जन ने आकर मुझे बताया कि उनके ड्राइवर ने उनसे कहा कि मोदीजी ने जनधन के माध्यम से हम जैसे गरीबों को एक लाख रुपये का बीमा दे दिया. अब मेरी जिंदगी सुरक्षित है.'

इस योजना की कामयाबी के लिए प्रधानमंत्री ने 7 लाख बैंक अधिकारियों को पत्र लिखे, एक दिन में 77,000 कैंप लगवाए और एक ही दिन में डेढ़ करोड़ लोगों के खाते भी खुलवा दिए. भाषण के अंत में मोदी ने कहा, 'अब गरीब आदमी ब्याज के विषचक्र से दूर होगा, आत्महत्या से बचेगा और सुख का जीवन जिएगा.'

सरकार का एक साल पूरा होने पर प्रधानमंत्री ने 25 मई को मथुरा रैली में भी जनधन योजना को गरीबी हटाने की दिशा में बड़ी कामयाबी बताया. जो आंकड़े सरकार सामने लाई उनमें देश में 15 करोड़ से अधिक जनधन खाते खुलना और इन खातों में 17,000 करोड़ रुपये जमा होना सबसे बड़ी उपलब्धि बताई गईं. लेकिन आखिर कितने लोगों को जनधन योजना में कर्ज मिला, कितने लोगों को दुर्घटना बीमा और जीवन बीमा का लाभ मिला, जिसकी आस में करोड़ों लोगों ने बैंकों का रुख किया था. सरकार इन आंकड़ों पर चुप है, जबकि इन्हीं आंकड़ों से पता चलना है कि आखिर जनधन में खाता खुलवाने वाले लोगों को कुछ फायदा भी हुआ या नहीं, या करोड़ों की भीड़ ऐसे ही खाता खुलवाने टूट पड़ी थी.

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक 2014 के अंत तक महज 40,000 खाता धारक ही ओवरड्राफ्ट के लिए आवेदन कर सके और इनमें से 8,000 लोगों को ओवरड्राफ्ट सुविधा दी जाएगी. इसी तरह सिर्फ 108 लोगों को दुर्घटना बीमा और 152 लोगों को जीवन बीमा का लाभ दिया गया. इस तरह खाताधारकों के अनुपात में लाभार्थियों की संख्या देखें तो वह शून्य फीसदी के करीब बैठती है. उधर चालू वित्त वर्ष पर नजर डालें तो हालात और खराब हैं. इस साल जनधन की बीमा व्यवस्था देख रही न्यू इंडिया एश्यारेंस कंपनी के मुंबई स्थित मुख्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इंडिया टुडे को बताया, 'चालू वित्त वर्ष में बीमा के लिए 14 आवेदन आए. इनमें से तीन आवेदन पिछले वित्त वर्ष के होने के कारण और अन्य तीन आवेदनों को रुपया कार्ड का 45 दिन तक इस्तेमाल न होने के कारण वापस कर दिया गया. शेष 8 बीमा क्लेम पर विचार किया जा रहा है.'

ये 14 दावे ऐसे देश में आए हैं जहां हर साल 1 लाख से ज्यादा लोग तो सिर्फ सड़क दुर्घटनाओं में मर जाते हैं. रुपया कार्ड एक किस्म का डेबिट कार्ड है जो जनधन योजना में खाता खुलवाने वालों को दिया जाता है. आखिर करोड़ों खाताधारक वाली योजना में इतने कम लाभार्थी क्यों हैं? इस सवाल पर बचाव करते हुए वित्त मंत्रालय के संयुक्त सचिव और जनधन योजना के मिशन डायरेक्टर राजेश अग्रवाल कहते हैं, '300 से 400 लोगों को पिछले वित्त वर्ष में बीमा का लाभ मिल सका. योजना की घोषणा अगस्त के अंत में हुई. खाता धारकों को पिन नंबर देने में समय लगा. बीमा का लाभ देने की प्रक्रिया व्यावहारिक रूप से दिसंबर में चालू हुई. इसीलिए ये आंकड़े कम दिख रहे हैं.'

जब उनसे पूछा गया कि 45 दिन तक कार्ड स्वैप न होने के कारण बीमा आवेदन खारिज हो रहे हैं, जबकि लोग तो यह मान रहे थे कि जनधन का खाता खुला और उनकी किस्मत बदल जाएगी, लेकिन लोग ओवरड्राफ्ट के लिए तरस रहे हैं. अग्रवाल स्वीकारते हैं, 'योजना के शुरुआती स्वरूप में निषेधात्मक चीजें ज्यादा थीं, अब इन्हें बदला जा रहा है. इसीलिए प्रधानमंत्री ने जो दो नई बीमा योजनाएं शुरू की हैं, उनमें पहले से कहीं ज्यादा लोग पात्र होंगे और लाभ पाना भी आसान है.' हालांकि यहां यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि जब जनधन में खाते खुलवाने की मियाद 15 अगस्त 2014 से 26 जनवरी 2015 तक ही थी, तो बिना मियाद बढ़ाए सरकार नई बीमा योजनाओं को जनधन का हिस्सा कैसे मान रही है.

वैसे न के बराबर लोगों को योजना का लाभ मिलने की असल वजह जनधन योजना की वेबसाइट पर प्रकाशित अपात्र लोगों के क्राइटेरिया में छिपी है. इसके तहत किसी भी तरह का सेवारत या सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी, इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने वाला व्यक्ति, टीडीएस अदा करने वाला व्यक्ति जनधन का पात्र नहीं होगा. इसी तरह चाहे एक घर में कितने भी लोगों ने खाते खुलवाए हों, लेकिन 30,000 रु. के जीवन बीमा का लाभ सिर्फ परिवार के मुखिया को मिलेगा, वह भी तब जब वह ऊपर बताई शर्तें पूरी करे. इसके अलावा वह पहले से बैंक की किसी बीमा योजना का लाभार्थी न हो. तो क्या खाता खोलते समय बैंकों को यह बातें पता नहीं थीं? इसके जवाब में उत्तर प्रदेश में पंजाब नेशनल बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी मुस्कुराते हुए कहते हैं, 'अगर कोई आदमी बैंक में खाता खुलवाने आ रहा है और उसके लिए केवाइसी नियम आसान कर दिए गए हों, तो कोई बैंक अधिकारी उसे क्यों मना करेगा? एक ही परिवार के सारे सदस्य अगर अपना जनधन खाता खुलवा रहे हैं तो हम यह थोड़े ही पूछेंगे कि क्या आप खाता बीमा, लोन या दूसरी सरकारी मदद के लालच में खुलवा रहे हैं?' जनधन खाता खुलवाने वाला व्यक्ति बीमा का लाभ पाने का हकदार होगा या नहीं, यह शुरू से ही बैंकों की चिंता का विषय नहीं था. बैंकों को तो बीमा क्लेम बीमा कंपनी को फॉरवर्ड करना था, उसका मंजूर होना या ना होना बीमा कंपनी और पीड़ित का सिरदर्द था.

हां, बैंकों को इस बात की चिंता जरूर थी कि जीरो बैलेंस के खाते उनके लिए बोझ न बन जाएं. इसके लिए बैंकों ने दो सीधे तरीके निकाले. पहला तरीका भारतीय स्टेट बैंक, इंदौर के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, 'बैंकों ने अघोषित नीति बनाई कि ओवरड्राफ्ट नहीं देना है.' और अगर देना भी पड़ जाए तो छह महीने तक बैंक में रहे औसत बैलेंस के बराबर ओवरड्राफ्ट दिया जाएगा. वित्त मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो बैंकों को जहां ओवरड्राफ्ट देना भी पड़ा, वहां औसत 2,500 रुपये का ओवर ड्राफ्ट दिया गया है. बैंकों के दूसरे तरीके का जिक्र करते हुए झांसी से पीएनबी के एक अधिकारी बताते हैं, 'हर खाते के संचालन के लिए व्यावहारिक रूप से बैंक को कुछ न कुछ लागत आती है. मान लीजिए, किसी की पासबुक खो गई तो नई पासबुक तो देनी ही होगी. ऐसे में अगर जीरो बैलेंस खाता हुआ तो यह पैसे कहां से कटेंगे. इसलिए बैंक ने लोगों को खाते में पैसा जमा करने के लिए प्रेरित किया.' इसी का असर है कि जन धन के खातों में 17,000 करोड़ रुपये जमा हो गए. यह पैसा फिलहाल बैंकिंग सेक्टर के लिए सौगात बन गया.

इस स्थिति का बचाव करते हुए वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा कहते हैं, 'ओवर ड्राफ्ट इसलिए कम लोगों को मिल रहा है क्योंकि बैंक पहले यह देखेगा कि छह महीने तक खाता सही ढंग से चला या नहीं. ग्राहक की क्रेडिट हिस्ट्री देखने के बाद ही उसे ओवरड्राफ्ट जारी करने का अप्रूवल दिया जाएगा.'

यानी बैंक और वित्त राज्य मंत्री दोनों ही मान रहे हैं कि जनधन में खाता खुलवाना बैंक से कर्ज मिलने की गारंटी नहीं है. कर्ज पाने के लिए आपको बैंक की बुनियादी शर्तों को पूरा करना पड़ेगा. इस पर तंज करते हुए उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष निर्मल खत्री कहते हैं, 'सूट-बूट की सरकार तो उन कंपनियों से भी ज्यादा छलावा कर रही है जो नियम और शर्तें बहुत महीन अक्षरों में नीचे लिख देती हैं. यहां तो करोड़ों खाते प्रधानमंत्री की जुबान के भरोसे खुल गए और बाद में महीन अक्षर में नियम शर्तें लगा दी गईं. अगर लोगों को पहले से यह बातें पता होतीं तो वे खाते खुलवाते ही नहीं.'

तो अब रास्ता क्या है? इस सवाल पर अग्रवाल कहते हैं, 'योजना की शुरुआती निषेधात्मक शर्तों को व्यावहारिक कठिनाइयों के बाद हटाया जा रहा है.' इतनी बड़ी आबादी को जोड़ने वाली योजना में व्यावहारिक दिक्कतों के हिसाब से बदलाव जरूरी हैं. इसीलिए अब पूरी योजना को जनधन योजना तक सीमित न रखकर इसे जन सुरक्षा योजना कहा जा रहा है. इसमें अटल पेंशन योजना, जन सुरक्षा योजना की दोनों बीमा योजनाओं को भी वृहत्तर योजना का हिस्सा मान लिया गया है. सिन्हा समझाते हैं, 'मोबाइल नंबर, आधार कार्ड और बैंक खाते ये तीन चीजें लोगों को वित्तीय व्यवस्था से जोड़ने के नींव के पत्थर हैं. ये तीनों चीजें मिलकर लोगों को वित्तीय व्यवस्था से जोड़ने का ढांचा खड़ा करेंगी और लोगों को गरीबी के दुष्चक्र से निकालेंगी.'

यानी जब तक जन-धन योजना की बारीकियां सामने आईं और लोग उसके नफे-नुकसान का जायजा लेने निकले, सरकार ने नई योजनाएं जोड़कर इस आकलन को और जटिल बना दिया. फिलहान नई बीमा योजनाएं शुरू हुई हैं और इनकी बीमा पॉलिसी सामने आने के बाद ही पता चलेगा कि असल में इनमें है क्या. फिलहाल लोग उसी उत्साह से जन सुरक्षा की नई योजनाओं से जुड़ने में लग गए हैं, जिस तरह छह-सात महीने पहले वे जनधन से जुड़े थे.

ऐसे में सरकार को यह तो सुनिश्चित करना ही होगा कि वह कौन-सी योजना होगी जो लोगों को वाकई वे वादे मुहैया करा सके जो प्रधानमंत्री के रौबीले भाषणों में प्रकट होते हैं. वैसे भी एक योजना को दूसरी योजना में जोड़ते चले जाने और बार-बार संशोधन करने से लोगों में भ्रम फैल रहा है. आखिर 2011 में मनमोहन सिंह सरकार की तरफ से भी ऐसी ही योजना शुरू हुई थी. तब 2000 से अधिक आबादी वाले गांवों को बैंक से जोड़ा जाना था, अब हर घर को जोड़ा जाना है. जनधन शुरू करते समय ही सरकार ने अपने दस्तावेजों में माना था कि यह योजना पुरानी योजना का विस्तार है. ऐसे में जनधन का अंजाम भी पुरानी योजना जैसा न हो और मोदी जी का भाषण सुनकर अपनी जिंदगी सुरक्षित मानने वाले ड्राइवर का भरोसा न टूटे, उसके लिए सरकार को खड़ी चढ़ाई चढ़नी होगी.

(साभार- इंडिया टुडे)