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जनेश्वर मिश्र नहीं रहे

इलाहाबाद। छोटे लोहिया के नाम से विख्यात समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र का शुक्रवार को देहावसान हो गया। 77 वर्षीय मिश्र ने अपनी कर्मस्थली इलाहाबाद में अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर पर बेली रोड स्थित भतीजे के आवास पर सभी दलों के कार्यकर्ता श्रद्धांजलि देने के लिए उमड़ पड़े। शनिवार दोपहर संगम के पास उनकी उनकी अंत्येष्टि की जाएगी। उत्तार प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती और राज्यपाल बीएल जोशी ने मिश्र के निधन पर शोक जताया है।

समाजवादी पार्टी के उपाध्यक्ष एवं राज्यसभा सदस्य जनेश्वर मिश्र का स्वास्थ्य कई दिनों से खराब चल रहा था। बावजूद इसके उन्होंने चार दिन पहले महंगाई एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ पार्टी के प्रदेश व्यापी आंदोलन में इलाहाबाद का नेतृत्व किया। चिकित्सकों के मना करने के बावजूद उन्होंने आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। गिरफ्तारी देने भी पहुंच गए थे। हालांकि पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया था। तब से वह इलाहाबाद में ही थे। गुरुवार रात उन्हें नई दिल्ली रवाना होना था, लेकिन ट्रेन लेट होने के कारण उन्होंने अपना कार्यक्रम रद कर दिया था।

शुक्रवार सुबह करीब दस बजे तबीयत खराब होने पर भतीजे संतोष मिश्र उर्फ मुन्ना ने करीबियों को सूचना दी। शिव प्रसाद मिश्र समेत कई लोग वहां पहुंचे और उन्हें पीजीआई लखनऊ ले जाने की तैयारी करने लगे। इससे पहले ही उनकी हालत गंभीर हो गई। तब परिजनों की सूचना पर टीबी सप्रू हास्पिटल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डा. जीके त्रिपाठी और उनके पारिवारिक चिकित्सक डा. एसएम त्रिपाठी घर पहुंचे। उन्हें टीबी सप्रू हास्पिटल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान दोपहर लगभग 11.55 बजे उनकी सांसें थम गईं। पार्थिव शरीर को उनके भतीजे संतोष के आवास निरुपमा कालोनी ले जाया गया। सूचना मिलने पर उनकी दोनों बेटियां शांति व मीना भी वहां पहुंच गई। बलिया से छोटे भाई तारकेश्वर मिश्र भी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ पहुंच गए। वहीं, सपा राष्ट्रीय महासचिव एवं सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री रामपूजन पटेल, ओमप्रकाश सिंह, भाजपा के वरिष्ठ नेता केशरीनाथ त्रिपाठी समेत तमाम नेता उनके आवास पर पहुंच गए। शाम को सांसद अमर सिंह व जयाप्रदा ने इलाहाबाद पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। अमर के साथ बांदा के सांसद आरके सिंह पटेल और गाजियाबाद से विधायक मदन चौहान भी थे। सायंकाल तक श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा रहा। शनिवार को उनकी अंत्येष्टि की जाएगी। इसमें सपा के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव समेत तमाम नेता उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचेंगे।

वहीं, सपा के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने बताया कि सैफई महोत्सव रद कर दिया गया है। वहां भी शोक सभा हुई और मौजूद मौजूद लोगों ने मिश्र को श्रद्धांजलि अर्पित की।

जनेश्वर से छोटे लोहिया तक का सफर

बलिया के बैरिया क्षेत्र के शुभनथहीं गांव में 5 अगस्त 1933 को जन्मे जनेश्वर मिश्र ने राजनैतिक पारी इलाहाबाद से शुरू की। 1953 में वह इलाहबाद पहुंचे। किसान रंजीत मिश्र के दो पुत्रों में बड़े जनेश्वर मिश्र सोशलिस्ट विचारधारा से प्रभावित थे और फिर सोशलिस्टों के साथ ही रहे। चार दशक तक देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले जनेश्वर मिश्र को 'छोटे लोहिया' की उपाधि दी गयी। सात बार केन्द्रीय मंत्री रहने के बाद भी उनके पास न अपनी गाड़ी थी और न ही बंगला।

उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक कला वर्ग में प्रवेश लेकर हिन्दू हास्टल में रहकर पढ़ाई शुरू की और जल्दी ही छात्र राजनीति से जुड़े। छात्रों के मुद्दे पर उन्होंने कई आंदोलन छेड़े। जिसमें छात्रों ने उनका बढ-चढ़ कर साथ दिया। 1967 में उनका राजनैतिक सफर शुरू हुआ। वह जेल में थे तभी लोकसभा का चुनाव आ गया। छुन्नन गुरू व सालिगराम जायसवाल ने उन्हें फूलपुर से विजय लक्ष्मी पंडित के खिलाफ चुनाव लड़ाया। चुनाव सात दिन बाकी था तब उन्हें जेल से रिहा किया गया। चुनाव में जनेश्वर को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद विजय लक्ष्मी राजदूत बनीं। फूलपुर सीट पर 1969 में उपचुनाव हुआ तो जनेश्वर मिश्र सोशलिस्ट पार्टी से मैदान में उतरे और जीते। लोकसभा में पहुंचे तो राजनारायण ने 'छोटे लोहिया' का नाम दिया। वैसे इलाहाबाद में उनको लोग पहले ही छोटे लोहिया के नाम से पुकारने लगे थे। उन्होंने 1972 के चुनाव में यहीं से कमला बहुगुणा और 1974 में इंदिरा गांधी के अधिवक्ता रहे सतीश चंद्र खरे को हराया। इसके बाद 1978 में जनता पार्टी के टिकट से इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे और विश्वनाथ प्रताप सिंह को शिकस्त दी। उसी समय वह पहली बार केन्द्रीय पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक मंत्री बने। इसके कुछ दिन बाद ही वह अस्वस्थ हो गये। स्वस्थ होने के बाद उन्हें विद्युत, परंपरागत ऊर्जा और खनन मंत्रालय दिया गया। चरण सिंह की सरकार में जहाजरानी व परिवहन मंत्री बने। 1984 में देवरिया के सलेमपुर संसदीय क्षेत्र से चंद्रशेखर से चुनाव हार गये। 1989 में जनता दल के टिकट पर इलाहाबाद से लडे़ और कमला बहुगुणा को हराया। इस बार संचार मंत्री बने। फिर चंद्रशेखर की सरकार में 1991 में रेलमंत्री और एचडी देवगौड़ा की सरकार में जल संसाधन तथा इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में पेट्रोलियम मंत्री बनाये गये। 1992 से अब तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे। वर्तमान में वह सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी थे।

विवि में किंगमेकर की थी भूमिका

छोटे लोहिया वैसे तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पदाधिकारी कभी नहीं रहे लेकिन यहां उनकी भूमिका किंगमेकर जैसी रही। उनके कई करीबी छात्रनेता पदाधिकारी बने। जिनमें विनोद चंद्र दुबे, सतीश अग्रवाल, श्यामकृष्ण पाण्डेय, परमानंद मिश्रा, केवला प्रसाद शुक्ला, मोहन सिंह, अशोक सारस्वत व बृजभूषण तिवारी आदि शामिल रहे।

जन-जन के थे जनेश्वर

जनेश्वर मिश्र के निधन से एक युग की समाप्ति हो गई। हमने एक संरक्षक खो दिया।

मुलायम सिंह यादव, सपा अध्यक्ष

जनेश्वर मिश्र ऐसे समाजवादी नेता थे, जो कभी डर कर सच बोलने से हिचकिचाते नहीं थे।

रीता बहुगुण जोशी, उत्तार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष

वैचारिक असहमति के बावजूद जनेश्वर मिश्र सभी दलों में लोकप्रिय थे।

रमापति राम त्रिपाठी, उत्तार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष

जनेश्वर मिश्र और ज्योति दा के निधन के बाद देश से बड़े राजनीतिज्ञों की पीढ़ी चली गई। मिश्र विरोधियों के भी हितैषी थे।

अमर सिंह, सांसद