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जनेश्वर से छोटे लोहिया तक का सफर

इलाहाबाद । बलिया के बैरिया क्षेत्र के शुभनथहीं गांव में 5 अगस्त 1933 को जन्मे जनेश्वर मिश्र का राजनैतिक कैरियर इलाहाबाद में ही शुरू हुआ। वह इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर वर्ष 1953 में यहां आए। किसान रंजीत मिश्र के दो पुत्रों में बड़े जनेश्वर शुरू से ही सोशलिस्ट विचारधारा से प्रभावित हो गए थे और फिर सोशलिस्टों के साथ ही रहें। चार दशक तक भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले जनेश्वर मिश्र ने देश भर में समाजवाद का परचम लहराया। सात बार केन्द्रीय मंत्री रहने के बाद भी उनके पास न अपनी गाड़ी थी और न ही बंगला।

उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक कला वर्ग में प्रवेश लेकर हिन्दू हास्टल में रहना शुरू किया था। पढ़ाई में शुरू से ही तेज रहे श्री मिश्र जल्दी ही छात्र राजनीति से जुड़ गए। छात्रों के मुद्दे पर वह आगे आने लगे। कई आंदोलन किए, जिसमें छात्रों और शहर के लोगों ने उनका बढ-चढ़ कर साथ दिया। वर्ष 1967 में उनका राजनैतिक सफर शुरू हुआ। वह आंदोलन के तहत जेल में थे तभी लोकसभा का चुनाव आ गया। छुन्नन गुरू और सालिगराम जायसवाल ने उन्हें फूलपुर से विजय लक्ष्मी पंडित के खिलाफ चुनाव लड़ाया। चुनाव सात दिन बाकी था तब उन्हें जेल से रिहा किया गया। उस चुनाव में जनेश्वर को हार का सामना करना पड़ा था। विजय लक्ष्मी राजदूत बन गईं तो उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। इस पर 1969 में उपचुनाव हुआ तो जनेश्वर मिश्र सोशलिस्ट पार्टी से फिर मैदान में उतरे और जीते। उन्होंने कांग्रेस के केशवदेव मालवीय को हराया। लोकसभा में पहुंचे तो राजनारायण ने उन्हें छोटे लोहिया का नाम दिया। कहा कि डॉ.लोहिया की कमी को जनेश्वर ही पूरा करेंगे। वैसे इलाहाबाद में जनेश्वर को पहले ही लोग छोटे लोहिया के नाम से पुकारने लगे थे। फिर 1972 में फूलपुर से ही कमला बहुगुणा को हराया। इसके बाद वर्ष 1974 में इंदिरा गांधी के अधिवक्ता रहे सतीश चंद्र खरे को हराया। इसके बाद जनता पार्टी के टिकट से इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे। तब विश्वनाथ प्रताप सिंह को उन्होंने पराजित किया था। उसी समय वह पहली बार केन्द्रीय पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक मंत्री बने। फिर उनकी तबीयत खराब हो गई और वे दिल्ली के अस्पताल में भर्ती हुए। इस बीच राजनारायण, चौधरी चरण सिंह और मोरार जी देसाई के बीच वैचारिक विवाद हुआ तो उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था। स्वस्थ होने के बाद अस्पताल से वापस हुए तो उन्हें विद्युत, परंपरागत ऊर्जा, और खनन मंत्रालय दिया गया। चरण सिंह की सरकार में जहाजरानी एवं परिवहन मंत्री बने। वर्ष 1984 में वह देवरिया के सलेमपुर संसदीय क्षेत्र से चंद्रशेखर से चुनाव हार गए थे। इसके बाद 1989 में जनता दल के टिकट पर इलाहाबाद से चुनाव लडे़ और कमला बहुगुणा को हराया। इस बार संचार मंत्री बने। फिर चंद्रशेखर की सरकार में 1991 में रेलमंत्री और एचडी देवगौड़ा की सरकार में जल संसाधन तथा इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में पेट्रोलियम मंत्री बनाए गए। वर्ष 1992 से अब तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे। वर्तमान में वह सपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी थे।