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जमीन नहीं लौटाने के बहाने ढूंढ रहे बुद्धदेव

नई दिल्ली [टी. ब्रजेश]। नंदीग्राम से सिंगुर तक लगातार अपनी भूमि अधिग्रहण नीति का बचाव करते रहे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को अब किसानों को जमीन लौटाने में अपनी पोल खुलने का डर सताने लगा है।

यही वजह है कि किसानों को भूमि लौटाने के नाम पर उन्होंने अपने पैर खींचने की कोशिश भी शुरू कर दी है। वह इस संबंध में तमाम व्यावहारिक दिक्कतों का विवरण देते नहीं थक रहे हैं। कभी अपने ही कामरेडों की तरफ से रोड़े अटकाए जाने की आशंका जताते हैं तो कभी नियम-कानून की जटिलताओं का बहाना बनाते हैं। माकपा पोलित ब्यूरो में जब सिंगुर के किसानों की जमीन लौटाए जाने पर चर्चा हुई तो बुद्धदेव कुछ इसी अंदाज में नजर आए।

वामपंथी सिद्धांतों से भटक रहे कामरेडों को सही दिशा दिखाने के मकसद से तैयार 'सुधार दस्तावेज' के रूप में तो जैसे बुद्धदेव के हाथ अपने तर्को को पुष्ट करने के लिए बड़ा अस्त्र लग गया है। पोलित ब्यूरो में पेश किए गए सुधार दस्तावेज रिपोर्ट को आधार बना कर उन्होंने कह दिया कि निश्चित तौर पर कामरेडों का लगाव पूंजीवादी व्यवस्था के प्रति बढ़ रहा है और यही वजह है कि उन्हें किसानों की जमीन लौटाया जाना नहीं भा रहा है। ऐसे में इस प्रक्रिया में उनकी तरफ से दिक्कतें पेश आ सकती हैं। माकपा नेतृत्व को उनकी कोशिश यही संदेश देने की थी कि अगर जमीन लौटाने में कोई परेशानी होती है तो उसकी वजह ऐसे काडर भी हो सकते हैं जो 'स्वार्थवश' सरकार को ऐसा नहीं करने देना चाहते। हालांकि पोलित ब्यूरो के कुछ सदस्यों का मानना है कि सुधार दस्तावेज की आड़ लेकर यह सीधे-सीधे बुद्धदेव की अपनी कमी छिपाने की कोशिश है। भूमि अधिग्रहण में जो कमियां रहीं वह अब सामने आ जाएंगी क्योंकि जमीन लेते वक्त साफ-सुथरी नीति नहीं होने की वजह से ही अब बुद्धदेव के लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि जमीन कैसे लौटाई जाए।

यह तय है कि सिंगुर में टाटा प्रोजेक्ट के लिए ली गई 977 एकड़ जमीन का कुछ हिस्सा किसानों को लौटाने के लिए बुद्धदेव पर दबाव बढ़ रहा है। लेकिन सूत्रों की मानें तो जमीन के अधिग्रहण के लिए बुद्धदेव की नीति ही ठीक नहीं थी। इसलिए इसे लेकर दुविधा की स्थिति बनती जा रही है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री के हाथ-पांव फूल रहे हैं कि फिर कोई बवाल न खड़ा हो जाए। फिर उनकी राजनीतिक विरोधी ममता बनर्जी तो पहले से ही उन्हें फंसाने का इंतजाम कर चुकी हैं। उन्होंने टाटा के लिए ली गई सिंगुर की जमीन पर अब रेलवे की ओर से फैक्ट्री लगाने का प्रस्ताव दिया है। लेकिन ममता ने यह शर्त लगा कर पेंच भी फंसा दिया है कि तकरीबन आधी जमीन किसानों को लौटाई जाए।