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जमीन पर नहीं उतरे 96 हजार करोड़ के प्रस्ताव

पटना। बिहार के पिछड़ेपन को बहुत हद तक मिटा देने के लिए काफी माने गए निजी निवेश के करीब 96,000 करोड़ रुपये के प्रस्ताव जमीन पर नहीं उतर पाए। मुख्य रूप से ऊर्जा एवं कृषि के क्षेत्र में आए इन प्रस्तावों को दो साल पूर्व ही राज्य निवेश प्रोत्साहन पर्षद की मंजूरी मिल चुकी है। पिछले साल दो चीनी मिलों में रिलायंस और एचपीसीएल के लगे 600 करोड़ रुपये के अलावा अब तक ठोस निजी निवेश के रूप में प्रदेश में कोई अन्य राशि नहीं आयी है। आधारभूत संरचना की कमी और प्रशासनिक तंत्र की शिथिलता इसके लिए प्रमुख कारण माने जा रहे हैं।

राज्य सरकार ने सत्ता संभालते ही आधारभूत संरचना के विकास के लिए अलग से एक कानून-'बिहार इंफ्रास्ट्रक्चर एनेब्लिंग एक्ट', बनाया। इस कानून के तहत वर्ष 2007 में इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप्मेंट आथरिटी का गठन किया। आईडीए को निजी निवेशकों को हर प्रकार की मदद के अलावा उन्हें भूमि उपलब्ध कराने के लिए 'लैंड बैंक' बनाना है। लेकिन अब तक लैंड बैंक के पास एक एकड़ जमीन भी उपलब्ध नहीं हो सकी है। अफसरशाही की शिथिलता के कारण ही निवेशकों के लिए सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'सिंगल विंडो सिस्टम' लागू नहीं हो पायी है। आईडीए को आज तक पूर्णकालिक प्रबंध निदेशक भी नहीं मिला है। उद्योग विभाग से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि निजी निवेशकों ने दो साल पूर्व प्रदेश में निवेश के प्रति रुचि दिखाई। सुनील मित्तल,आनंद महिंद्रा जैसे कई बड़े उद्योगपति स्वयं मुख्यमंत्री से मिलने आए। लेकिन इस मौके का लाभ अफसरों ने उठाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। उद्योगों के लिए सबसे अहम आधारभूत संरचना समझी जाने वाली सड़क और बिजली की स्थिति दुरुस्त नहीं की जा सकी है।

केन्द्र की नीतियों का भी प्रदेश में निवेश पर काफी प्रभाव पड़ा है। नेफ्था एवं इथनाल की इकाई लगाने की केन्द्र ने मंजूरी नहीं दी। राज्य सरकार ने बिजली संकट दूर करने के लिए अपनी थर्मल इकाई लगाने की योजना बनायी है, जिसे केंद्र से अब तक 'कोल-लिंकेज' की सुविधा नहीं मिल रही है। परन्तु, बिजली का संकट दूर करने के लिए आए अन्य प्रस्ताव तो प्रदेश की अफसरशाही की ही नजर हो गए। 'सोलर इनर्जी' से सचिवालय सहित अन्य सरकारी दफ्तरों में बिजली सप्लाई का प्रस्ताव ऊर्जा विभाग में धूल चाट रहा है। सोलर इनर्जी के कारण थर्मल बिजली का बड़ा हिस्सा बचाया जा सकता था, जिससे सिंचाई जैसे महत्वपूर्ण कार्य लिए जा सकते हैं। नक्सल गतिविधियां पर नियंत्रण न पाना भी एक अड़चन है। इसके कारण औरंगाबाद एवं गया जैसे जिलों में काफी जमीन रहने के बावजूद उसका अधिग्रहण नहीं किया जा रहा। गया में तो टेकारी के निकट पुराना हवाई अड्डा वैसे ही बेकार पड़ा है। उद्योग विभाग ने खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए दक्षिण भारत के कुछ शहरों में पिछले माह रोड-शो आयोजित किये थे। उत्साहित विभाग को 1500 करोड़ के निजी निवेश की उम्मीद है।