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जल सहिया की सक्रियता से स्वच्छ बना बेड़ो का गडरी गांव

आज गडरी का हर ग्रामीण शौचालय निर्माण के बहाने स्वच्छता को अपने जीवन में उतारने की शत-प्रतिशत आदत विकसित कर रहा है. रांची जिले की बेड़ो प्रखंड कार्यालय से सटी है नेहालू कपाड़िया पंचायत. रांची जिला मुख्यालय से 50 किमी की दूरी पर यह जगह स्थित है. बेड़ो प्रखंड कार्यालय से 10 किमी आगे बढ़ने पर लापुंग जाने को एक सड़क बायीं ओर मुड़ती है. मोड़ पर ही एक बोर्ड लगा है. उस पर लिखा है - खुले में शौच मुक्त ग्राम गडरी में आपका स्वागत है.

गांव में 75 परिवार हैं. घर भले सबों के कच्चे अर्धनिर्मित हैं, पर शौचालय सबों के पक्के और ठोस हैं. शौचालय छोड़ कोई भी ग्रामीण अब खुले में शौच को नहीं जा रहा. नेहालू कपाड़िया पंचायत के सात राजस्व गांवों में से एक है गडरी. गडरी में 450 लोगों की आबादी है और 350 मतदाता हैं. कुल 75 परिवार हैं. इनमें से 28 परिवार गरीबी रेखा से ऊपर हैं, जबकि 47 परिवार अंत्योदय कार्ड, बीपीएल कार्डधारियों में से हैं. एक आंगनबाड़ी केंद्र है. एक राजकीयकृत मध्य विद्यालय है, जिसमें 35 विद्यार्थी हैं. इस विद्यालय में एक हेडमास्टर के अलावा तीन पारा टीचर हैं. गडरी की कुल आबादी में ज्यादातर अनुसूचित जनजाति के लोग हैं.

यहां के मुखिया शनिका उरांव हैं. इसके बावजूद वे अपनी पंचायत को संवारने में किसी विशेषज्ञ की तरह सोच रखते हैं. मुखिया शनिका उरांव व पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के मिशन स्वच्छता को सिरे चढ़ाने में यहां की ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति की जल सहिया मेरी उरैन का अहम योगदान है. उन्होंने तमाम परिस्थितियों में लोगों को स्वच्छता अभियान से जोड़ने में सफलता पायी.

दरअसल, इस गांव में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, यूनिसेफ और एनजीओ एक्शन फॉर कम्युनिटी इम्पॉवरमेंट ने गांव में शौचालय निर्माण की पहल की और पंचायत से सहयोग मांगा. ग्राम जल समिति, पेयजल विभाग, यूनिसेफ के सहयोग से गडरी में ग्रामीणों के बीच स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूकता संबंधी सर्वेक्षण कराया गया. सर्वेक्षण में अपेक्षित तौर पर यही नतीजा निकल कर सामने आया कि ग्रामीणों अपने घर और उसके आसपास स्वच्छता और साफ-सफाई के मामले में कमजोर हैं.

गांव को पायलट प्रोजेक्ट के तहत शौचालय निर्माण के लिए चुना गया. ग्रामीणों को बताया गया कि 4600 रुपये का सहयोग सरकार शौचालय निर्माण में देगी. 900 रुपये का अंशदान लाभुक का होगा. पर, ग्रामीणों ने सोचा कि अगर 300 रुपये की लागत और बढ़ जाये, यानी 1200 रुपये की लागत पर एक अच्छी क्वालिटी का दरवाजा शौचालय में लगाया जा सकेगा. इस आधार पर 4600 व 1200 का अनुपात तय हुआ. गरीब परिवारों के लिए 900 से 1200 रुपये का अनुपात तय हुआ. गरीब परिवारों के लिए 900 रुपये से 1200 रुपये का स्वयं का श्रमदान तय किया गया. इस पूरे कार्य में जल सहिया का अहम योगदान है.

शुरुआत सुगी उरैन के घर से की गयी. देखते-देखते जनवरी 2013 में शौचालय निर्माण का काम शुरू हुआ और काम दो महीने में ही पूरा हो गया. सभी 70 परिवारों के घरों में शौचालय बन गये. शौचालय लाभुकों में से एक हैं संगीता कुमारी. संगीता कहती हैं कि पहले खुले में शौच जाना तकलीफदेह व अमर्यादित था. इसलिए पंचायत चुनाव के बाद जल सहिया मेरी उराइन जब शौचालय के लिए सर्वे करने आयीं तो बहुत खुशी हुई. वे कहती हैं : हमने मेरी दीदी से जल्द से जल्द शौचालय निर्माण की मांग की. वे कहती हैं कि अब मेहमान भी आते हैं, तो उन्हें हम शौचालय का ही उपयोग करने के लिए कहते हैं. जल सहिया के प्रयासों से इस गांव में लोगों में इतनी जागरूकता आ गयी है अब कोई भी गंदगी नहीं फैलाता है. जल सहिया दूसरी जल सहिया के लिए भी अपनी उपलब्धियों को लेकर प्रेरक बन गयी हैं.