Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/जानलेवा-बाढ़-का-अब-तक-नहीं-हो-पाया-कोई-स्थायी-समाधान-4825.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | जानलेवा बाढ़ का अब तक नहीं हो पाया कोई स्थायी समाधान | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

जानलेवा बाढ़ का अब तक नहीं हो पाया कोई स्थायी समाधान

पटना. बिहार के 38 में से 28 जिले बाढ़ प्रभावित माने जाते हैं और 68. 80 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ प्रभावित माना जाता है। ऐसे में पूरे वर्ष भर सरकार बाढ़ को रोकने के लिए कवायद में जुटी रहती है। तटबंधों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं फिर भी यहां बाढ़ की समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सका है।

बिहार में बाढ़ की समस्या काफी पुरानी है। जानकार मानते हैं कि बाढ़ दो तरह की होती हैं। एक बाढ़ ऐसी होती है, जिसमें नदी का पानी तटों पर दूर तक फैल जाता था और दूसरी तरह की बाढ़ में तटबंध टूट जाने से भारी तबाही आती है। तबाही वाली बड़ी बाढ़ वर्ष 1984, 1987, 2002, 2004, 2007 और 2008 में आई थी। इस दौरान सैकड़ों गांवों में पानी भर गया था और सैकड़ों लोगों को जान गंवानी पड़ी थी।

ऐसा नहीं कि सरकार तटबंधों की मरम्मत पर खर्च नहीं करती। आंकड़ों के अनुसार, तटबंधों की मरम्मत पर पिछले 22 वर्षो में 2,752 करोड़ रुपये खर्च किए गए और इसी दौरान 250 से ज्यादा तटबंध टूट भी गए। चालू वित्तवर्ष में भी 406 किलोमीटर तटबंध का निर्माण किया जाना है। बिहार में वर्तमान समय में 3649 किलोमीटर तटबंध हैं।

जल संसाधन विभाग के एक अधिकारी की मानें तो वर्तमान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार ने वर्ष 2006 से 2012 के दौरान तटबंध पर 1791 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए जबकि वर्ष 1987 से 2011 तक राज्य की नदियों पर बने तटबंध 371 बार टूट टूटे। इस आंकड़े में 18 अगस्त 2008 में कोसी नदी के कुसहा तटबंध का टूटना भी शामिल है जिसमें पांच जिलों की 30 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे।

कोसी नदी के तटबंध सबसे ज्यादा 60 बार से ज्यादा टूटे

आंकड़ों पर गौर करें तो बिहार की शोक कही जाने वाली कोसी नदी के तटबंध पिछले 12 वर्षो में सबसे ज्यादा 60 बार से ज्यादा टूटे हैं। इसी तरह अन्य नदियों के तटबंध भी टूटते रहते हैं।

राज्य के पूर्व जल संसाधन मंत्री जगदानंद सिंह कहते हैं कि बाढ़ को रोकने के लिए तटबंधों की मरम्मत आवश्यक है। लेकिन सरकार को यह भी ध्यान देना चाहिए कि तटबंध जल प्रवाह को रोकता है, न कि बाढ़ को। पानी के नियंत्रण के लिए जलाशयों का बनना बहुत जरूरी है।

बाढ़ विशेषज्ञों का मानना है कि तटबंध का पक्कीकरण होने, नदियों में जमी गाद की उड़ाही और नदियों को जोड़ने पर तटबंधों की हर साल मरम्मत करने की योजना से निजात मिलेगी।

बाढ़ के जानकार भगवान पाठक बताते हैं कि तटबंध की राजनीति 'अर्थतंत्र' की राजनीति बनकर रह गई है। वह स्पष्ट कहते हैं कि राजनेताओं के लिए तटबंध ही आर्थिक संरचना को मजबूती प्रदान करता है। वह कहते हैं कि तब तटबंध बनाने के पूर्व नदियों में बड़े-बड़े पुल बनाने की योजना तय की गई थी लेकिन पुल नहीं बने, तटबंध बन गए। तटबंध निर्माण से जहां छोटी नदियों का अस्तित्व समाप्त हो गया, वहीं परंपरागत जलस्रोत भी समाप्त होते चले गए।

वह कहते हैं कि जब तक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं होगी, इस समस्या का समाधान नहीं निकल सकता। अब सरकार तटबंधों के पक्कीकरण की बात कर रही है। वह कहते हैं कि यह भी अर्थतंत्र की ही राजनीति का हिस्सा है। इससे भी तटबंध वाले क्षेत्र के लोगों को नुकसान होगा।

पाठक कहते हैं कि जब मिट्टी के बने तटबंधों के टूटने से इतनी बड़ी आपदा आती है तो पक्के तटबंधों के टूटने से क्या होगा, यह समझा जा सकता है।

राज्य के जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी भी तटबंधों को स्थायी समाधान नहीं मानते। वह कहते हैं कि बिहार की अधिकांश नदियों का उद्गम स्थल नेपाल में है। वहां का पानी बिहार की नदियों में अपने साथ गााद भी लाता है जो नदियों में जमा होती जाती हैं। वह मानते हैं कि नदियों से गाद निकालना भी जरूरी है। बाढ़ के स्थायी समाधान के लिए नेपाल के साथ समझौता आवश्यक है।